सुनिए जहांपनाह हुजूर..खुशदीप

मुगल शासक जहांगीर के वक्त दरबार-ए-आम की व्यवस्था थी…आगरा फोर्ट के
बाहर 60 घंटों में से किसी एक को बजा कर कोई भी शख्स सीधे बादशाह तक फरियाद पहुंचा
सकता था…इन्हें इनसाफ का घंटा कहा जाता था…500 साल बाद दिल्ली में सड़क पर केजरीवाल
जनता दरबार लगा रहे हैं…जहांगीर के वक्त कार्यपालिका जैसी व्यवस्था का पता नहीं
लेकिन आजकल बाबुओं, बड़े बाबुओं और सेक्रेटरी साहबों का बड़ा अमला केजरीवाल की मदद
करने के लिए मौजूद हैं…लेकिन केजरीवाल दिल्ली के हर नागरिक की समस्या खुद सुनना
चाहते हैं…आज बताते हैं कि केजरीवाल के पहले जनता दरबार में करीब 50 हज़ार
फरियादी पहुंचे…निर्धारित डेढ़ घंटे में ज़ाहिर है कि कितने लोगों की फरियाद खुद
केजरीवाल सुन सकते…ऐसे में हंगामा होना तो तय था…केजरीवाल को दरबार बीच में
छोड़कर ही जाना पड़ा…



अब ऐसे जनता-दरबारों के ज़रिए लोगों के प्रार्थना-पत्र लेकर
बाबुओं तक ही पहुंचाने हैं तो ये सारी नौटंकी किस लिए…क्या सिर्फ मीडिया के
ज़रिए लोगों को दिखाते रहने के लिए कितने आम आदमी हैं दिल्ली के सीएम अरविंद
केजरीवाल…यही रंग-ढंग रहे तो लोगों के प्रार्थना-पत्रों का अंबार बढ़ता
जाएगा…उन पर कार्रवाई ना हुई या देर से हुई तो आप की सरकार को जनता की दुत्कार
मिलने में देर नहीं लगेगी…केजरीवाल जी ये मुगल काल नहीं है…ना ही यहां कोई अब
जहांपनाह है कि जो खुद ही सारी फरियाद सुनकर इनसाफ़ करेगा…ज़रूरत आज सरकारी अमले
के नट-बोल्ट कसने की है…व्यवस्था जितनी जल्दी दुरुस्त होगी, उतनी जल्दी लोगों को
राहत मिलेगी…अगर बाबू खुद ही ईमानदारी से अपना काम करने लगे तो लोगों को सबसे
ऊंचे हाकिम के पास जाने की नौबत ही क्यों आए…और शिकायतें इकट्ठी ही करनी है तो
फिर आपके पास प्रिय एसएमएस, ई-मेल, सोशल मीडिया जैसे संवाद के मॉर्डन टूल्स भी
मौजूद हैं…

सुन रहे हैं ना जहांपनाह…

(फर्स्ट पोस्ट में संदीपन शर्मा के लेख से
साभार)
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