सलमान को सब जानते हैं, सरिता को कोई नहीं…खुशदीप


पिछले तीन दिन से सलमान
सुनामी ने पूरे देश को हिला रखा है। रिपोर्टिंग करते वक्त मीडिया का व्यवहार ऐसा
रहा, जैसे चीन युद्ध से भी बड़ा संकट देश पर आ गया हो। सलमान अब अपने घर पर है।
अपने घर की बॉलकनी
 से दो उंगलियों से
विक्टरी का निशान बनाकर अपने भक्तों को कृतार्थ करते हुए। बॉम्बे हाईकोर्ट में जब
तक मामले की सुनवाई पूरी नहीं हो जाती कम से कम तब तक सलमान को जेल जाने का कोई ख़तरा
नहीं है। हाईकोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट तक क्या-क्या हो सकता है, ये देखने की
दिव्यदृष्टि या तो सिद्ध ज्योतिषियों के पास हो सकती है या टीवी चैनल्स के एंकर्स के
पास।

वैसे सलमान पर कुलजमा तीन
तरह की प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं….


1. सलमान को
सेलेब्रिटी होने का खामियाज़ा भुगतना पड़ रहा है…इतने लोगों की मदद करने वाला
सलमान, बीमारियों से जूझता सलमान…बेचारा सलमान…


2.  मैनेज कर लिया
गया…इस देश में पैसे वाले सब मैनेज कर लेते हैं भाई…देश में दो क़ानून है…एक
पैसे वालों के लिए…दूसरा औरों के लिए…


3. तीसरे किस्म की
प्रतिक्रिया देने वाले बुद्धिजीवी टाइप के लोग होते हैं…ये ऐसा मिश्रित बयान देते
हैं कि किसी के पल्ले कुछ पड़े ही ना…और कोई नाराज़ भी ना हो….ये पीड़ितों का भला
करने की बात करते हैं…कहते हैं जो हुआ ग़लत हुआ…नहीं होना चाहिए था…फिर ये
सरकार पर आ जाते हैं…फुटपाथ पर लोग सोते हैं तो इसके लिए सरकार जिम्मेदार
है…वो क्यों रहने के लिए सब के सिर पर छत मुहैया क्यों नहीं कराती…मुंबई में
जैसे हर एक के लिए घर उपलब्ध कराना सरकार के लिए खाला जी का घर हो…दबे शब्दों
में सलमान के लिए सॉफ्ट कार्नर भी दिखा जाते हैं….


खैर छोड़िए सलमान
गाथा। तीन दिन से ये नाम सुन सुन कर आप पहले से ही पके हुए हैं, मैं और पकाने आ
गया। ऊपर शीर्षक में मैंने सलमान के साथ सरिता का ज़िक्र किया है। आप कहेंगे, कौन
सरिता
? सरिता पर आने से पहले एक छोटी सी जानकारी
और…बॉलिवुड के एक और सुपरस्टार आमिर ख़ान को भी आज गुजरात हाईकोर्ट से बड़ी राहत
मिल गई। फिल्म लगान में संरक्षित जीव चिंकारा का गोली लगने से मरने का एक दृश्य
था। गुजरात हाईकोर्ट ने इस मामले में आपराधिक शिकायत को रद्द करते हुए आमिर
खान के खिलाफ़ आपराधिक कार्यवाही खत्म कर
दी।


चलिए दो स्टार्स
की बात हो गई। अब आता हूं असली मुद्दे पर। सरिता पर। सलमान गैर इरादतन ही सही एक
शख्स की हत्या के अब दोषी है। दूसरी और सरिता ने खुद ही अपनी जान दे दी है। मेरी
नज़र में सरिता की स्टोरी सलमान से बहुत बड़ी है। सरिता ने सिस्टम से हार कर गले
में फंदा डालकर खुद ही मौत को गले लगाया। 22 वर्षीय सरिता एक किसान की बेटी थी।
एमए तक पढ़ी थी। एक ही सपना था पुलिस में भर्ती होने का। उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती
बोर्ड की शारीरिक परीक्षा (2014-15) में कामयाबी भी हासिल कर ली। लेकिन चयन फिर भी
नहीं हो सका। आखिरकार उसका हौसला जवाब दे गया और उसने गुरुवार सुबह पेड़ से लटक कर
खुदकुशी कर ली।



लखनऊ के काकोरी
के मलाहा गांव के सवर्ण किसान गिरीश द्विवेदी की 22 वर्षीय बेटी सरिता ने सुइसाइड
नोट भी छोड़ा है। घरवालों के मुताबिक सरिता पुलिस भर्ती घोटाले से परेशान थी। पढ़ाई
के दौरान एनसीसी कैडेट रह चुकी सरिता ने सुइसाइड नोट में उत्तर प्रदेश सरकार और
आरक्षण व्यवस्था के ख़िलाफ़ नाराज़गी का इजहार किया है।

सरिता ने सुइसाइड
नोट में जो जो लिखा वो हिला देने वाला है-


सामान्य वर्ग में
जन्म लेने का यह अभिशाप या सजा है। सभी जगह आरक्षण
, अभिशाप। यदि हम
कोई फार्म भरते हैं तो उसके पैसे कहां से लाएं। पापा
, आपके पास भी तो इतनी ताकत नहीं रही।


मम्मी मेरा सपना था वर्दी पहनने इंसाफ की लड़ाई लडऩे का इसलिए मैं दौड़दौड़कर पेट की मरीज बन गई 100 नंबर दौड़ में पाने के बाद मैं और आप लोग बहुत खुश थे।

पापा मैंने हार
नहीं मानी क्योंकि हमें सामान्य जाति के होने का अभिशाप था। कहीं लंबाई
, कहीं पढ़ाई,
कहीं आरक्षण तो क्या करें जी कर। क्योंकि ज्यादा पढ़ाई यहां प्रोफेशनल कोर्स करना या कराना हम लोगों की क्षमता से
बाहर है।

पापा मैं तो जा
रही। पापा इन हत्यारों से ये पूछना कि जब सामान्य वालों के लिए कहीं जगह नहीं है
तो हर हास्पिटल में ये बोर्ड न लगवा दें कि सामान्य वर्ग के स्त्री के शिशु जन्म
लेने से पहले ही मार डालें। …अपना-अपना जातिवाद फैला लें। समाज की क्या स्थिति
होती जा रही है। लड़कियों के 20-20 टुकड़े करके फेंके जा रहे हैं।

पापा, लोग लड़कों को पढऩे के लिए भेजते हैं पर आपने भरोसे के साथ भेजा। मैं बार-बार
कह रही थी मैं हार नहीं मानूंगी। बस
, आरक्षण अभिशाप के कारण
मैं जीना नहीं चाहती।

 मम्मी इतना जरूर पूछना कि जब मेरिट रिलीज हुई थी
तब जनरल लड़की की कोई मेरिट नहीं बनी।


जय धरती माता की
मुझे गोद में स्थान दो। जय भारत माता की।…हम पुलिस
, हम पुलिस, हम पुलिस, ..खत्म इंतजार।


सरिता भी ख़त्म
हो गई और सरिता का इंतज़ार भी। कुछ कहने वाले कह सकते हैं कि सरिता को पुलिस में
भर्ती का सपना पूरा ना होने पर कोई और रास्ता अपनाना था। पढ़ी लिखी थी जीविका का
कोई और साधन भी ढूंढ सकती थी। बहादुरी से चुनौतियों का सामना करना चाहिए था। मैं
भी यही कहता हूं कि जीवन अनमोल है, इसे लेने का किसी को भी हक़ नहीं। लेकिन ऐसा
कहते वक्त हमें ये भी सोचना होगा कि सरिता ऐसा अतिवादी कदम उठाने से पहले किस
मनोदशा से गुज़र रही होगी। वो लड़की जो पुलिस में भर्ती की शारीरिक परीक्षा पास करने के लिए दौड़ दौड़ कर पेट दुखा लेती थी। सब कुछ करने के
बाद भी उसके हाथ आई तो सिर्फ निराशा।

सरिता का केस एक
साथ देश के कई ज्वलंत सवालों पर सोचने को मज़बूर कर देता है। बेशक इन सवालों में
सलमान जैसा ग्लैमर नहीं जुड़ा है। भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, आरक्षण, शिक्षा की
उपयोगिता, बेरोज़गारी। इन मुद्दों में आरक्षण सबसे संवेदनशील है। आप इसके विरोधी
हो या समर्थक, लेकिन सरिता जैसी घटनाएं ये सोचने को तो मजबूर करती हैं कि क्या ऐसा
कोई रास्ता नहीं निकाला जा सकता कि फिर किसी युवा प्रतिभा को खुद ही अपनी जान ना
लेनी पड़े। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव युवा है। उन्हें मलाल है कि
समाज के लिए अनेक कल्याणकारी योजनाएं चलाने के बाद भी प्रदेश के कई लोग उन्हें
नहीं पहचानते। अखिलेश जी आप जिस दिन भाई-भतीजावाद को पीछे धकेल कर सरिता जैसी युवा
प्रतिभाओं का दर्द सच्चे मन से खुद महसूस करना शुरू कर देंगे, आपको हर कोई अपने आप
पहचान लेगा।

आख़िर में एक
सवाल उस मीडिया बिरादरी से जिससे मैं खुद भी आता हूं….सलमान पर 24
X7 लाइव रिपोर्टिंग से आप लोकतंत्र के चौथे स्तंभ होने का
दायित्व पूरा कर सकते हैं या सरिता से जुड़े सवालों पर सार्थक बहस कराने से….
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Jyoti Dehliwal
10 years ago

मिडिया के सामाजिक भूमिका पर रौशनी डालता विचारणीय लेख …जब हम सेलेब्रेटीज को थोडा नजरंदाज कर, असली समस्याओं की तरफ ध्यान देना सीखेंगे तब ही सरिता जैसी प्रतिभाओं को अपनी जन से हाथ नहीं धोना पड़ेगा .

Ismail.
10 years ago

ये इस देश की विडंबना ही है कि, एक हीरो से सम्बंधित बहोत ही मामूली खबर को मीडिया देश व्यापी चिंतन और मनन का विषय बना देता है जिसपर बुद्धिजीवी अपने विचारों की जुगाली करते रहते हैं वहीँ एक आम इंसान की खबर, खबर होकर भी खबर नहीं बन पाती. कृपया मेरे ब्लॉग में भी एक नजर डाल कर उसे बेहतर बनाने के लिए सुझाव दें.
http://www.differentcolorsofindia.blogspot.in

Khushdeep Sehgal
10 years ago

अजय भाई, विकल्प शीघ्र ही अपने लिए रास्ता निकाल लेंगे…आप देखिएगा दो-तीन साल में देश में समाचार का ढांचा ही पूरी तरह बदल जाएगा..और सब आपकी उंगलियों पर होगा…

जय हिंद…

Khushdeep Sehgal
10 years ago

कैलाश जी, बच्चा कहां पैदा होता है, इसमें उस बेचारे का क्या क़सूर…दरअसल सारी समस्या शिक्षा में भेदभाव की है…अगर हमारे देश में सब बच्चों को समान और गुणवत्तापरक शिक्षा देना अनिवार्य तौर पर सरकार की जिम्मेदारी हो तभी कुछ हल निकल सकता है…

जय हिंद…

अजय कुमार झा

सरिता और सरिता जैसे कितनो के दर्द को यहाँ समेट लाने के लिए आभार खुशदीप भाई | मीडिया रिपोर्टिंग की तो बात न ही की जाय तो बेहतर है ….सोच को झकझोरने और अब रुक कर सोचने के लिए बाध्य करती पोस्ट

Kailash Sharma
10 years ago

आरक्षण के दानव का न जाने कितने लोग शिकार हो रहे हैं..बहुत दुखद स्तिथि..

Khushdeep Sehgal
10 years ago

शुक्रिया ओंकार जी,

जय हिंद…

Khushdeep Sehgal
10 years ago

सतीश भाई,
क्या ऐसे ही होगा भारत का विकास…आप तो खुद ही यवतमाल में अन्नदाता की बदहाली को देखकर आए हैं…

जय हिंद…

Onkar
10 years ago

सही प्रश्न उठाया है आपने

Satish Saxena
10 years ago

दर्दनाक जवान मौत ,
पर इस जंगल में राजा लोग सिर्फ ५ साल के लिए आते हैं , वे धन जोड़ें कि इन छोटी मोटी बातों पर ध्यान दें 🙁

Khushdeep Sehgal
10 years ago

शुक्रिया शास्त्री जी…

जय हिंद…

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