‘सूट-बूट की, सूट-बूट द्वारा, सूट-बूट के लिए’…खुशदीप

अब्राहम लिंकन साहब ख़ामख़्वाह ही डेमोक्रेसी के लिए कह गए…of the people, by the people, for the people…लिंकन महोदय आज ज़िंदा होते तो शुक्र कर रहे होते कि वो उस देश में पैदा हुए जिसकी खोज क्रिस्टोफर कोलम्बस ने की थी…खुदा-ना-खास्ता यदि कहीं वास्को-डि-गामा के खोजे देश में पैदा हुए होते तो आज उनके ख़्याल भी पलट गए होते…


वो भी भारत का ‘लोकतंत्र’ देख कर कह रहे होते…of the suited booted, by the suited booted, for the suited booted… हैरत है कि अभी तक राहुल गांधी की इस जुमले पर नज़र क्यों नहीं पड़ी?  राहुल ने पहले कहा- ‘ये सूटबूट की सरकार है’…सरकार से पहला जवाब संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद की ओर से आया…‘ये सूटकेस की सरकार नहीं है’...


फिर वित्त मंत्री बोले…‘ये सूझ-बूझ की सरकार है’…मंगलवार को लोकसभा में राहुल ने सरकार पर फिर वार किया… ‘सुना था कि चोर सिर्फ रात को आते हैं, छुपकर आते हैं, खिड़की के अंदर से कूद कर आते हैं, लेकिन सबसे बड़े चोर दिन दहाड़े आते हैं, सबके सामने आते हैं, और सूट पहनकर आते हैं’…


ये सारी राजनीतिक जुमलेबाज़ी है और इसका महत्व भी वही ख़त्म हो जाता है…दो कम सत्तर साल होने को आए इस देश को आज़ाद हुए…इस देश ने और देखा क्या है…नेता लोक के हित की बात करते हुए तंत्र में आते हैं…तंत्र में आते ही लोक को भूल जाते हैं…फिर याद रहता है तो बस ‘सूट-बूट वालों’ का हित…और हो भी क्यों ना…संविधान ने बेशक लोक को सर्वोपरि माना है…लेकिन तंत्र सूट-बूट वालों का ही है… of the suited booted, by the suited booted, for the suited booted…


ये व्यवस्था आख़िर क्यों ना हो…कौन नहीं जानता कि राजनीतिक दलों की फंडिंग होती कहां से है…सूट-बूट वाले बिना किसी भेदभाव के सभी राजनीतिक दलों पर ख़ून-पसीने (अपना नहीं मज़दूरों का) से कमाया हुआ धन लुटाते हैं…अब भईया…धंधे में पैसा तभी लगाया जाता है जब मोटे रिटर्न की उम्मीद हो…इसलिए जो घोड़ा फॉर्म में होता है उसी पर सबसे अधिक दांव लगाया जाता है…लेकिन यहां दूसरे घोड़ों की अनदेखी भी नहीं की जाती है…उन्हें भी ख़ुराक दी जाती रहती है…क्या पता कल वो फिर रेस में आगे आ जाए….


ये सियासत का रेसकोर्स है जनाब…यहां घोड़े कोई भी दौड़ें, कभी भी दौड़ें, उनका रिमोट ‘सूट-बूट’ के हाथ में ही रहेगा।


स्लॉग ओवर


दृश्य 1
एक दीन-हीन किसान मात्र एक लँगोटी में अपने ख़ेत में खड़ा होता है…तभी नेता एक इंची-टेप लेकर उसकी तरफ़ आता है…आकर उससे कहता है…फ़िक्र मत कर तेरा बढ़िया वक्त आ गया है…हम तुझे सूट सिलवाकर देंगे…इसलिए तेरा नाप लेना पड़ेगा…किसान बहकावे में आकर नाप देने को तैयार हो जाता है…


दृश्य 2
नेता इंची-टेप लेकर उसकी तरफ़ हाथ बढ़ाता है….और…और…ये क्या…


दृश्य 3
नेता उस किसान की लँगोटी लेकर भागा जा रहा है…सामने दो सूट-बूट वाले खड़े हैं…नेता उन्हें जाकर वो लँगोटी देते हुए कहता है…लो ये भी ले आया तुम्हारे लिए…


दृश्य 4
किसान बेचारा दोनों हाथ आगे कर अपनी लाज छुपाने की कोशिश कर रहा है…आंखों के आगे घूमते तारे लिए…
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kavita verma
9 years ago

badiya vyangya ..

निर्मला कपिला

बहुत अच्छा व्यंग।

निर्मला कपिला

बहुत अच्छा व्यंग।

मन के - मनके

व्यंग अच्छा है?

Khushdeep Sehgal
9 years ago

शुक्रिया वंदना जी,

जय हिंद…

वन्दना अवस्थी दुबे

बहुत सही दृश्य उकेरा है.

Khushdeep Sehgal
10 years ago

द्विवेदी सर,
इंसानों की सरकार तो कल्पनालोक में ही संभव है…

जय हिंद…

दिनेशराय द्विवेदी

इंसानों की सरकार की तैयारी करें।

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