ये नज़्म है, ग़ज़ल है…क्या है मैं नहीं जानता…किसने लिखी है, उसे भी मैं नहीं जानता…ई-मेल पर भेजने वाले ने शायर का नाम नहीं लिखा..आपको पता हो तो बताइएगा…लेकिन जिसने भी लिखी है, उसके हाथ चूमने को जी करता है…
तेरी डोली उठी
मेरी मय्यत उठी
फूल तुझ पर भी बरसे
फूल मुझ पर भी बरसे
फ़र्क सिर्फ़ इतना सा था
तू सज गई
मुझे सजाया गया
तू भी नए घर को चली
मैं भी नए घर को चला
फ़र्क सिर्फ़ इतना सा था
तू उठ के गई
मुझे उठाया गया
महफ़िल वहां भी थी,
लोग यहां भी थे
फ़र्क सिर्फ़ इतना सा था
उनका हंसना वहां
इनका रोना यहां
काज़ी उधर भी था, मौलवी इधर भी था
दो बोल तेरे पढ़े, दो बोल मेरे पढ़े
तेरा निकाह पढ़ा, मेरा जनाज़ा पढ़ा
फ़र्क सिर्फ़ इतना सा था
तुझे अपनाया गया
मुझे दफ़नाया गया
स्लॉग गीत
ये गीत जब भी मैं सुनता हूं, न जाने मुझे क्या हो जाता है…आप भी सुनिए…
जब भी ये दिल उदास होता है
जाने कौन आस-पास होता है…
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