जीना इसी का नाम है…
सेल्फी युग में किसी मरीज या गरीब को केला, अमरूद तक देते हुए अपनी फोटो फेसबुक पेज पर डाल दी जाती है, खुद को धर्मात्मा दिखाने के लिए, ऐसे में राजस्थान के शिशुरोग विशेषज्ञ डॉ रामेशवर प्रसाद यादव
ने जो किया, उसके लिए उन्हें सैल्यूट… जो उन्होंने किया, उसे बताने से पहले उनका थोड़ा परिचय करा दूं…
ने जो किया, उसके लिए उन्हें सैल्यूट… जो उन्होंने किया, उसे बताने से पहले उनका थोड़ा परिचय करा दूं…
डॉ रामेश्वर की छोटी उम्र में ही तारावती से शादी हो गई थी. बेटी भी हो गई. 1976 में वो मेडिकल एंट्रेस एग्जाम की तैयारी कर रहे थे तो उनकी छह महीने की बेटी हेमलता को तेज बुखार हो गया. डॉक्टर के इंजेक्शन देने के बाद हेमलता का शरीर नीला हो गया और उसकी मौत हो गई.

इस घटना के 40 साल बाद डॉ रामेश्वर एक दिन पत्नी के साथ अपने गावं चुरी जा रहे थे तो रास्ते में भीगती चार छात्राओं को देखा. दंपती ने उन्हें अपनी कार में लिफ्ट दी.
छात्राओं ने बताया कि उन्हें रोज़ अपने कॉलेज तक पहुंचने के लिए बहुत विषम स्थितियों का सामना करना पड़ता है. बस स्टॉप तक पहुंचने के लिए ही 3 से 6 किलोमीटर तक उबड़-खाबड़ रास्तों पर पैदल चल कर आना होता है. फिर 18 किलोमीटर दूर कोटपुतली में स्थित कॉलेज जाने के लिए बस में भी लड़के उनसे अक्सर बुरा बर्ताव करते हैं. इसी वजह से कई लड़कियां कॉलेज जाना पसंद नहीं करती और उनकी कॉलेज में उपस्थिति कम हो जाती है.
छात्राओं की इस बात ने डॉ रामेश्वर और उनकी पत्नी को बेचैन कर दिया. घर पहुंचने के बाद डॉ रामेश्वर की पत्नी ने उनसे पूछा कि हम इन बच्चियों के लिए क्या कर सकते हैं…
सरकारी सेवा से रिटायर्ड हुए डॉ रामेश्वर अब अपना क्लिनिक चलाते हैं. डॉ रामेश्वर ने अपने पीएफ का करीब 75 फीसदी हिस्सा (17 लाख रुपए) निकाला. निजी सेविंग्स से और दो लाख रुपए डाले. और छात्राओं के लिए 19 लाख रुपए में 40 सीटों वाली बस खरीदी. यह जयपुर जिले के चुरी, पावला, कायमपुरा बास और बनेती गांवों की लड़कियों को कॉलेज तक पिक और ड्रॉप करती है. डॉ रामेश्वर ने जिन चार छात्राओं को कभी कार में लिफ्ट दी थी, उन्हीं से बस सेवा का उद्घाटन कराया.
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फोटो साभार: नवभारत टाइम्स |
इस बस सेवा का नाम उन्होंने निशुल्क बेटी वाहिनी रखा. अब इस बस को चलते हुए एक साल हो गया है. इस बस पर ड्राइवर के अलावा कोई पुरुष नहीं चढ़ सकता. डॉ रामेश्वर ने छेड़खानी जैसी कोई घटना ना हो इसलिए ड्राइवर की ज़िम्मेदारी भी बहुत सोच समझ कर लक्ष्मण सिंह नाम के शख्स को दी. डॉ रामेश्वर खुद भी इस बस पर नहीं चढ़ते. वे खुद 12 साल पुरानी मारुति 800 से चलते हैं. जब से ये बस सेवा शुरू हुई है, कोटपुतली के पाना देवी गर्ल्स कॉलेज में छात्राओं की उपस्थिति बढ़ी है. छात्राओं का कहना है कि इस बस से उनके रोज 40 रुपए के साथ-साथ एक घंटे का टाइम भी बचता है. अब इलाके में बच्चियों के अभिभावक भी बच्चियों की सुरक्षा को लेकर निश्चिंत हो गए हैं.
डॉ रामेश्वर पिछले साल जुलाई में सरकारी सेवा से रिटायर हुए. वे नीम का थाना से करीब 50 किमी दूर एक प्राइवेट क्लीनिक चलाते हैं. टोल तो माफ हो गया लेकिन उन्हें हर महीने 5,000 रुपए रोड टैक्स देना पड़ता है. डॉ रामेश्वर ने इसके लिए अथॉरिटी को चिट्ठी भी भेजी लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है. बस सेवा का इस्तेमाल करने वाली लड़कियों का अब कॉलेज में पढ़ाई में भी अच्छा प्रदर्शन हो रहा है. कोई लड़की सेना में जाना चाहती है तो कोई दिल्ली पुलिस में.
एक लड़की नर्स बन कर दूसरों की सेवा करना चाहती है. वैसे तो दान-पुण्य बड़े बड़े धन कुबेर भी करते हैं लेकिन डॉ रामेश्वर ने जो किया, वैसी मिसाल देश में बहुत कम होंगी. ईमानदारी से नौकरी में पीएफ से जीवन भर जो पैसा जोड़ा वो उन बेटियों के भले के लिए लगा दिया, जिनका उनसे कोई नाता नहीं था. लेकिन डॉ रामेश्वर और उनकी पत्नी तारावती ऐसा नहीं समझते. वो कहते हैं कि पहले हमारी एक ही बेटी हेमलता थी, अब हमें लगता है कि हमारी पचास हेमलताएं हैं. वाकई, अपने लिए जिए तो क्या जिए, तू जी ऐ दिल ज़माने के लिए…
डॉ रामेश्वर
आपको शत शत नमन…
आपको शत शत नमन…
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