नोस्टेलजिया का सफ़र- रेडियो, ट्रांजिस्टर, रिकॉर्ड प्लेयर…खुशदीप

दो दिन पहले खबर आई थी कि वॉकमैन अब अतीत की बात हो जाएंगे…वॉकमैन बनाने वाली कंपनी सोनी ने घटते उत्पादन की वजह से इनका उत्पादन बंद करने का फैसला किया…आई-पॉड के ज़माने में वॉकमैन की भला अब क्या पूछ…

ज़ाहिर है चढ़ते सूरज को ही सलाम किया जाता है…वॉकमैन के सहारे बीते कल को टटोलना शुरू किया तो ऐसी कई चीज़ें और इनसान याद आ गए जो कभी दिलो-दिमाग पर छाए हुए थे…आज बात सिर्फ चीज़ों की करूंगा…जैसे कि बचपन में घर के ड्राइंगरूम में रखा बड़ा सा रेडियो…क्या-क्या नहीं सुनाता था वो मरफी के घुंघराले बालों वाले बच्चे की तस्वीर लगा रेडियो…समाचार, क्रिकेट-हॉकी की कमेंट्री, नाटक, फिल्मी गीतों के कार्यक्रम, स्पान्सर्ड प्रोग्राम…

लेकिन रेडियो के साथ दिक्कत ये थी कि उसे पास बैठ कर ही सुनना पड़ता था…फिर ट्रांजिस्टर आए…उनसे ये सुख हो गया कि लाइट हो या न हो आपका पसंदीदा प्रोग्राम मिस नहीं होता था…ट्राजिस्टर का सबसे बड़ा फायदा था, उसे कहीं भी ले जा सकते थे…घर में चुपके से गाने सुनने हो तो रजाई के बीच में ट्राजिस्टर के जरिए लता, रफ़ी, किशोर और मुकेश को जो सुनने का मज़ा आता था बस पूछो नहीं…

जिन दिनों क्रिकेट मैच हो रहे होते थे तो स्कूल में भी बस यही जानने की धुन सवार रहती थी कि स्कोर कितना हो गया होगा…अब स्कूल से बाहर तो जा नहीं सकते थे…आज की तरह मोबाइल का भी ज़माना नहीं था कि झट से एसएमएस किया और स्कोर जान लिया…ऐसे में पॉकेट ट्रांजिस्टर आए तो बड़ा सकून मिला…रोज़ कोई न कोई साथी स्कूल में जेब में छुपा कर पाकेट ट्रांजिस्टर ले ही आता था…फिर स्कूल के गॉर्डन में किसी पेड़ के नीचे जो क्रिकेट कमेंट्री सुनने का मज़ा आता था कि कि दिल गार्डन-गार्डन हो जाता था…

रेडियो-ट्रांजिस्टर के साथ दिक्कत ये थी कि उन दिनों हर वक्त तो आज के एफएम की तरह प्रोग्राम आते नहीं थे…हर प्रोग्राम का एक टाइम निर्धारित होता था…फिल्मी गानों का भी…बेवक्त फिल्मी गाने सुनने होते थे तो वो शौक ज़रा महंगा था…आप एचएमवी या पॉलिडोर के रिकॉर्ड लाकर रिकॉर्ड-प्लेयर पर गाने सुन सकते थे…

तब हर फिल्म के रिकॉर्ड रिलीज़ होते थे…इन रिकॉर्डों की जैकट बड़ी मनमोहक होती थीं…फिल्म के हीरो-हीरोइन की फोटो और गीत-संगीत से जुड़े हर कलाकार का नाम क्रेडिट में…

मेरे ताऊजी के घर पर ऐसा रिकॉर्ड प्लेयर भी था जो बिजली से नहीं बल्कि हाथ से चाभी भरने के बाद चलता था…

रिकॉर्ड प्लेयर की अगली जेनेरेशन के रूप में कैसेट प्लेयर मार्केट में आए…रिकॉर्ड़्स की जगह कैसेट्स ने ले ली…

कंप्यूटर युग शुरू हुआ तो कैसेट्स की जगह सीडी पर गीत-संगीत का आनंद लिया जाने लगा…वक्त के साथ चीज़ों का भी अंदाज़ बदलता जाने लगा…

नये ज़माने में भी कभी पुराने ज़माने का रेडियो या रिकॉर्ड प्लेयर देखने को मिल जाता है तो खुद-ब-खुद बीता सुनहरा दौर याद आ जाता है…नोस्टेलजिया के इस सफ़र में और भी बहुत चीज़ें हैं याद करने को…लेकिन आज की कड़ी में बस इतना ही…अब आप क्या सोचने लगे…जाइए फ्लैश बैक में…और करिए शेयर यहां मेरे साथ अपने गोल्डन लम्हे…

क्रमश:

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शरद कोकास

मै तो हिसाब लगा रहा हूँ कि इन सब चीज़ो को खरीदने मे मुझे कितना पैसा लगा होगा । लेकिन पैसे वसूल हो गये यह बात तो है ।

prasant pundir
14 years ago

CD DVD bhi gujare jamane kee baat ho jayengi

DVD Players bhi in radio kee tarh purane ho jayenge

प्रवीण पाण्डेय

बड़ा लम्बा रास्ता नापा है, संगीत ने अब तक।

दिनेशराय द्विवेदी

हमारे पास था एक टू-इन-वन। यानी रेडियो कम टेपरिकार्डर/प्लेयर न जाने कब वह दीवान में घुस गया। अभी मकान बदलने पर बाहर निकला। तब न केबल कनेक्शन था और नेट भी टेलीफोन स्थानान्तरित न होने से अनुपलब्ध था। तब उस ने बहुत राहत प्रदान की। आकाशवाणी और विविध भारती सुनते रहे।

Khushdeep Sehgal
14 years ago

मुझे लगा था कि नोस्टेलजिया (अतीत की मधुर यादों) को जीना सबको अच्छा लगता होगा…लेकिन मैं गलत निकला…ज़माना वाकई बदल गया है…

जय हिंद…

Manoj K
14 years ago

आज तक कसेट्स को संभालकर रखा है, पर टेप नहीं मिलता उन्हें चलाने के लिए..

अब तो मोबाइल पर ही गाने सुने जाते हैं..
टेक्नॉलोजी कितना कुछ बदल देती है

राज भाटिय़ा

बहुत खुब जी…. आया हे मुझे फ़िर याद वो जालिम, गुजरा जमाना…
धन्यवाद

मुकेश कुमार सिन्हा

yado ka jharokha achchha laga…

Unknown
14 years ago

ateet ki yadee bahut sukh pradan karti hai.
lagata hai koie purana saath kahi mil gaya
yeh usi ki yad dilati hai.

उस्ताद जी

6.5/10

रेडिओ से आई-पॉड तक का यह सफ़र मनमोहक है.
सुन्दर यादों को समेटे बहुत सुन्दर पोस्ट
पोस्ट की विविधता आपकी सोच और क्रियेटिविटी को दर्शाती है.

राजीव तनेजा

बदलते वक्त के साथ हर चीज़ बदलती जाती है…
समय के साथ चलना है तो खुद को बदलना ही पड़ेगा…
बजाज ने स्कूटरों का उत्पादन बन्द कर दिया तो 'मरफी' ने अब मोबाईल बेचने शुरू कर दिए हैं…

Satish Saxena
14 years ago

बड़ी पुरानी यादें दिलाएं आज !मक्खन और ढक्कन कहाँ भेज दिए ?? कुछ हो जाए

संगीता पुरी

पुरानी यादों में ले जाने वाली .. अच्‍छी लगी ये पोस्‍ट !!

Udan Tashtari
14 years ago

वाकई फ्लैश बैक में चले गये और स्पूल वाला टेप रिकार्डर तक याद कर आये.

बहुत शानदार पोस्ट.

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