2021 में मनोज कुमार ने ख़ुद के बीजेपी से जुड़े होने पर स्थिति की थी साफ़
मनोज कुमार ख़ुद को धार्मिक बताते थे लेकिन धर्मांध नहीं, सबसे बड़ी पूजा कर्म को मानते थे
तीन प्रधानमंत्रियों से मनोज कुमार के अच्छे रहे संबंध, इमरजेंसी में सरकार से टकराए थे
-खुशदीप सहगल
नई दिल्ली, (9 अप्रैल 2025)|
मनोज कुमार के दुनिया के जाने के साथ देशभक्ति की फिल्मों के एक सुनहरे युग पर पर्दा गिर गया. हिन्दी सिनेमा में एक्टर, डायरेक्टर, प्रोड्यूसर और राइटर के तौर पर मनोज कुमार ने अपना लोहा मनवाया. लेकिन एक सवाल उठता है कि उनका पॉलिटिकली झुकाव किस पार्टी की ओर था? ऐसा अक्सर सुनने में आता है कि 2004 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले 8 मार्च को मनोज कुमार बीजेपी में शामिल हो गए थे, क्या वाकई में ऐसा हुआ था? क्या मनोज कुमार ने सच में बीजेपी की विचारधारा को अपनाया था.
क्या था मनोज कुमार के बीजेपी से जुड़ने का सच? किन प्रधानमंत्रियों से अच्छे रहे मनोज कुमार के संबंध और किस प्रधानमंत्री से हुई तल्खी? धर्म को लेकर मनोज कुमार के क्या थे विचार?
लाल बहादुर शास्त्री के कहने पर बनाई ‘उपकार’

मनोज कुमार के कम से कम तीन प्रधानमंत्रियों के साथ मधुर संबंधों का रिसर्च में संकेत मिलता है. 1965 में मनोज कुमार की शहीद भगत सिंह, शहीद सुखदेव और शहीद राजगुरु पर आधारित फिल्म ‘शहीद रिलीज़’ हुई थी. तब तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने मनोज कुमार से अपने नारे ‘जय जवान जय किसान’ पर फिल्म बनाने के लिए कहा. इसी थीम पर मनोज कुमार ने ‘उपकार’ फिल्म का निर्माण किया जो 1967 में रिलीज़ हुई. हालांकि, इस फिल्म को खुद लाल बहादुर शास्त्री नहीं देख पाए थे. ताशकंद से लौटने के बाद लाल बहादुर शास्त्री इस फिल्म को देखने वाले थे. लेकिन ताशकंद में उनका निधन होने के बाद ऐसा संभव नहीं हो पाया.
इंदिरा गांधी से कभी अच्छे तो कभी तल्ख़ संबंध

इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद मनोज कुमार के उनसे भी अच्छे संबंध रहे. लेकिन इमरजेंसी के दौरान इन संबंधों में तल्खी आ गई. कहा जाता है कि मनोज कुमार को इमरजेंसी के समर्थन में डॉक्यूमेंट्री डायरेक्ट करने का प्रस्ताव दिया गया था. कहानी अमृता प्रीतम ने लिखी थी. लेकिन मनोज कुमार ने इस काम के लिए मना कर दिया. मनोज कुमार ने अमृता प्रीतम को भी इस मुद्दे को लेकर फोन पर झकझोरा. उन्होंने अमृता प्रीतम को सुनाते हुए कहा था कि क्या आपने लेखक के रूप में समझौता कर लिया है. अमृता प्रीतम इस बात से शर्मिंदा हो गई थीं और उनसे स्क्रिप्ट फाड़ कर फेंक देने के लिए कहा. तत्कालीन सरकार ने तब मनोज कुमार की एक्टिंग वाली फिल्म ‘दस नंबरी’ पर बैन लगा दिया था. इस फिल्म की रिलीज के लिए मनोज कुमार को कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाना पड़ा था.
अटल बिहारी वाजपेयी पसंदीदा शख्सियत

1996 में पहली बार प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी वाजपेयी से भी मनोज कुमार के बहुत अच्छे संबंध थे. मनोज कुमार ने खुद एक इंटरव्यू में बताया था कि वो उनकी स्पीच के कायल थे. इसी इंटरव्यू में मनोज कुमार ने कहा था, ‘अटल जी मुझे व्यक्तिगत रुप से पसंद थे. जो आदमी देश के प्रति सच्चा है, जो अच्छा बोलता है, जिसके पास विचारधारा है. मैं 1964-65 से अटल जी को सुनता था और 67-68 से मेरे उनके घरेलू संबंध हैं. इतने घरेलू कि मैं आपको बता नहीं सकता.’ लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने के बाद मनोज कुमार कभी उनसे मिलने नहीं गए. इस पर उन्होंने कहा था, ‘जितनी देर वो प्रधानमंत्री बने रहे मैं दिल्ली उनसे मिलने नहीं गया. क्योंकि वो प्रधानमंत्री हैं मैं उनका समय क्यों बर्बाद करूं.’
मनोज कुमार के बीजेपी से जुड़ाव का सच

2004 में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मनोज कुमार के बीजेपी में शामिल होने की बात सुनने को मिलती है. लेकिन इसके पुख्ता सबूत कहीं नहीं दिखते. उस वक्त अटल बिहारी वाजपेयी ही देश के प्रधानमंत्री थे. हालांकि बीजेपी की ओर से इंडिया शाइनिंग के नारे के साथ लड़े गए उस चुनाव में बीजेपी हार गई थी.
मनोज कुमार ने खुद बाद में साफ़ किया किया था कि वो पॉलिटिक्स या राजनीतिक दल से हर्गिज़ हर्गिज़ तौर पर कभी नहीं जुड़े. मनोज कुमार ने 2021 में फिल्म पत्रकार राणा सिद्दीकी ज़मान को दिए इंटरव्यू में खुल कर इस पर अपनी बात रखी थी. राणा हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री के वेटरन्स पर किताब लिख रही थीं, इसी सिलसिले में मनोज कुमार से मुंबई में उनके घर जाकर मिली थीं.
राणा सिद्दीकी ने जब मनोज कुमार से बीजेपी के जुड़ाव के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, “किसने कहा? कभी नहीं, मैं बीजेपी का आदमी नहीं हूं, न ही किसी विचारधारा से संबंध रखता हूं. एक दिन, वो मेरे पास आए. मुझे बहुत सम्मान दिया. मुझे भगवा साफ़ा और शॉल दिया. मेरे लिए ये रंग बलिदान और सूफ़ीवाद का प्रतीक है. मैं उनके प्यार और सम्मान से अभिभूत था. उन्होंने मेरा सम्मान किया. मुझे कुछ मीटिंग्स में ले गए. बस वहीं बात खत्म हो गई. मैंने ज़िंदगी में कभी भी कहीं भी किसी पार्टी के हक में भाषण नहीं दिया. उनका क्या एजेंडा था, मैं उस बारे में जानकारी नहीं रखता था. उन्होंने मुझे बताया कि मैं उनके लिए देशभक्ति, भारत एक राष्ट्र का प्रतीक था. ये सब इसलिए क्योंकि मेरी फिल्में मुझे राष्ट्रवादी दिखाती थीं. लेकिन मैं सच में हूं, किसी एजेंडा के चलते नहीं. खुदा कसम, ये राजनीति वाले हम फिल्म वालों को हमारी इमेज को मिसयूज़ करते हैं. मेरा उनसे कोई सियासी राबता नहीं है.”
एक और इंटरव्यू में मनोज कुमार ने कहा था कि वो अपने को राजनीति के लिए फिट नहीं मानते थे. मनोज कुमार का ये भी कहना था- “चुनाव के दिनों में राजनीतिक पार्टियां अपने कैम्पेन में फिल्म से जुड़े लोगों को बुलाती हैं. तो मुझे भी बुलाया गया. मैं भी गया. दो-तीन और भी एक्टर्स थे. मैं बीजीपी के लिए गुजरात में 15 साल 16 साल पहले कंपेन करने भी गया था. एक कैंपेन के दौरान ही मुझे एक रसीद थमा दी गई लेकिन उसमें क्या था वो मुझे नहीं पता था.”
धार्मिक हूं लेकिन धर्मान्ध नहीं
मनोज कुमार का ये भी कहना था कि वो धार्मिक व्यक्ति थे लेकिन धर्मांध नहीं. वो पूजा कहीं भी बैठे घर में हो दफ्तर में या कार में ही कर लेते थे. उनका मानना था कि कर्म सबसे बड़ी पूजा होता है.
बहरहाल मनोज कुमार अब इस दुनिया में नहीं हैं. उन्होंने राजनीति में आए बिना ही लोगों के दिलों में भारत की अपनी छवि जो बनाई वो हमेशा अमर रहेगी.
इस स्टोरी का वीडियो यहां देखें-
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I throughly enjoyed the video and the article.its true Manoj Kumar wasn’t affiliated with any political party during his lifetime he was just a patriot.
Thanks a lot