सोचो क्या पाया इनसां होके…खुशदीप

पंछी, नदिया, पवन के झोंके,
कोई सरहद न इनको रोके,
सरहदें इनसानों के लिए है,
सोचो तुमने और मैंने क्या पाया इनसां होके…

ये खूबसूरत गीत जावेद अख्तर साहब ने फिल्म रिफ्यूज़ी के लिए लिखा था…सरहद से बंटने का दर्द क्या होता है, शिद्दत के साथ इस गीत में महसूस किया जा सकता है…भारत और पाकिस्तान के बीच जब भी बातचीत होती है, सरहद का ख्याल ज़ेहन में आ ही जाता है…लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा कि इस सरहद के मायने क्या होते हैं…आप एक घर में रहते रहें…फिर अचानक उसी घर के बीच दीवार खड़ी कर दी जाए…आप दीवार के उस पार नहीं जा सकते…दीवार के उस पार वाले इधर नहीं आ सकते…

गृह मंत्री पी चिदंबरम पाकिस्तान में हैं…पाकिस्तान समेत सार्क के सभी देशों से आतंकवाद के मसले पर बात कर रहे हैं…कल विदेश सचिव निरुपमा राव ने पाकिस्तान के विदेश सचिव सलमान बशीर से बात की थी…15 जुलाई को विदेश मंत्री एस एम कृष्णा इस्लामाबाद में ही पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी से बात करेंगे…बात तो दोनों देशों के बीच 175 से ज़्यादा बार पहले भी की जा चुकी है…लेकिन नतीजा क्या निकला…नतीजा निकल भी नहीं सकता…

दरअसल राजनीति, कूटनीति इस मुद्दे को सुलझा लेंगे, ये बहुत दूर की कौड़ी लगता है…इस मसले को सुलझाएंगे दोनों देशों के लोग ही…वो लोग जिनके लिए सरहद का मतलब ज़मीन पर खिंची हुई एक लकीर नहीं बल्कि भावनाओं से जुड़ा मसला है…इसलिए जितना ज़्यादा दोनों ओर के लोग आपस में मिलेंगे उतना ही शक और अविश्वास का माहौल दूर होगा…

पाकिस्तान का कोई बच्चा जिसके दिल में छेद है, भारत आकर बैंगलुरू में डा देवी शेट्टी से आपरेशन करा कर भला चंगा होकर वतन लौटता है तो उसकी मां के दिल से कितनी दुआएं निकलती होंगी, ये भावना की भाषा के ज़रिए ही समझा जा सकता है…या इस भाषा को समझा जा सकता है उस कश्मीर सिंह की पत्नी और 3 बच्चों के ज़रिेए जो 35 साल पाकिस्तान की जेल में काटकर 4 मार्च 2008 को वाघा बार्डर से भारत लौटा था…उसकी रिहाई संभव हो सकी थी पाकिस्तान के ही एक मानवाधिकार कार्यकर्ता अंसार बर्नी के ज़रिए…अंसार बर्नी ने कश्मीर सिंह की रिहाई के लिए अदालत से लेकर पाकिस्तान की हुकूमत तक पर जो दबाव बनाया, उसकी जितनी तारीफ की जाए कम है…उनकी कोशिशों के दम पर 35 साल बाद एक पत्नी को पति के दीदार हुए…बच्चों को फिर से पिता का प्यार मिला…

सरहद की बंदिशों के चलते कोई इनसान इतना बेबस हो जाए कि अपनों की एक झलक पाने को ही तरस जाए, तो सोचिए क्या बीतती होगी उसके दिल पर…आज़ाद मुल्क में जन्मे होने की वजह से हमें यही लगता है 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान के वजूद में आने के साथ ही दोनों देशों के बीच ऐसी लकीर खिंच गई, जिसने ज़मीन के साथ-साथ लोगों के दिलों को भी हमेशा के लिए बांट दिया…लेकिन ये हक़ीक़त नहीं है…क्या है इस सरहद का सच, ये मैं आपको कल अपनी पोस्ट में बताऊंगा…

क्रमश:

 

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