अब ये ठहरा छपास रोग…भईया इसे मिटाना भी तो है…ये न्यूजपेपर वाले बिना सेटिंग के घास डालते नहीं…जो अपना लेख छपा देखकर तीनों लोक का आनंद आ जाए…ये जालिम अखबार वाले, हींग लगे न फिटकरी रंग भी आए चोखा, इसी तर्ज पर ब्लॉग सीधे लिफ्ट भी करते हैं तो ये एहसान जताते हुए कि देखा बड़ी मुश्किल से एकोमोडेट किया है…
तो भईया अपना छज्जू का चौबारा ही ठीक…जब मन आया चिठ्ठा ठेल दिया…रवा रवा अपना चिठ्ठा देखा नहीं कि लगता है जैसे पानीपत का मैदान मार लिया…अब कोई पढ़ने या टिपियाने नहीं आता तो क्या गम…अपनी आंखे और उंगलियां तो हैं…जितनी बार चाहे क्लिक करो, जितनी बार चाहे नैन-सुख लो…अपने लेख पर वारि-वारि जाओ, अपनी सोच पर बलिहारी जाओ…कोई रोक सके तो रोक ले…
तो भईया ऐसा परम आनंद चला-चली की बेला तक मिलता रहे और लता ताई का गीत नेपथ्य में बजता रहे…आज फिर जीने की तमन्ना है…आज फिर मरने (अपने लेख पर) का इरादा है…हो गया न धरती मैया पर आना सफल…अब भले ही ब्लॉगिंग के बाज़ार में भाव हल्का चल रहा हो, यही कह कर अपने मन-मयूरा को समझाओ, हमारी सोच क्लासेस के लिए है मासेस के लिए नहीं..अब हम पापुलर सिनेमा थोड़े ही हैं जो बिकता है वही लिखता है का राग अलापने लगेंगे…अब जनाब आर्ट फिल्में भी बनती है न…भले ही हॉल में उल्लू बोले लेकिन अवॉर्ड तो ले ही आती है न…अब ये राज मत खुलवाईए कि ये अवॉर्ड देने वाले कौन होते हैं…
हां तो मै कह रहा था कि ब्लॉगर्स कभी रिटायर नहीं होते…आखिर क्यों हो रिटायर..82 पार के आडवाणी संघ के तमाम घोड़े खोल लेने के बाद भी कुर्सी से चिपके बैठे हैं…फेविकोल के विज्ञापन याद हैं न…इस देश में आम आदमी जिस उम्र में नौकरी से रिटायर होता है, उस उम्र वालों को राजनीति में मुन्ना माना जाता है…मंत्री बनाया भी जाता है तो राज्य या डिप्टी का झुनझुना ही थमाया जाता है… राजनीति में असली बहार तो सत्तर पार करने के बाद ही आती है…नेता ही क्यों नौकरशाह ही ले लो…रिटायरमेंट की उम्र तक शान से नौकरी…उसके बाद जितनी तगड़ी सैटिंग उतनी ही बार एक्सटेंशन…और कुछ नही तो अंबानी जैसे पालनहार तो बैठे ही हैं…पहले सरकार की नौकरी करो फिर सरकार के सारे राज़ अंबानियों को बता दो…और अपनी कई पीढि़यों का उद्धार कर लो…अब सरकार नौकरशाहों पर रोक थोड़े ही लगाने जा रही है कि रिटायरमेंट के बाद प्राइवेट सेक्टर की जय-जयकार नहीं कर सकते…
ये तो रही राजनेताओं और नौकरशाहों की बात…अपने खिलाड़ी भी इस मामले मे कम खिलाड़ी थोड़े ही हैं…अब अपने सचिन बाबा को ही ले लो..तेंदुलकर जी ने सुझाव दिया है कि 50-50 ओवर के वनडे मैच 25-25 ओवर की चार पारियों के फॉर्मेट में खेले जाएं…सचिन का सुझाव दुरूस्त है. सचिन 2011 का वर्ल्ड कप खेलने की बात पहले ही कर चुके है. अगर तीन-तीन मध्यांतर के साथ 25-25 ओवर की दो-दो पारियां होती हैं तो हमारे सचिन बाबा को ज़्यादा थकान भी नहीं होगी और उनका एक और वर्ल्ड कप (शायद ज़्यादा भी) खेलने का सपना भी पूरा हो जाएगा. अब सचिन शेन वार्न, मैक्ग्रा या फ्लिंटॉफ थोड़े ही हैं जो टॉप में रहते ही रिटायरमेंट ले लें…
हमारे देश में क्रिकेटर तब तक रिटायर होते कहां हैं, जब तक लोग ही महेंद्र कपूर का गाना न शुरू कर दे…और नहीं, बस और नहीं…गम के प्याले और नहीं..जब और माई के लाल आसानी से रिटायर होने को तैयार नहीं होते तो ब्लॉगर्स़ क्यों लाए मन में ऐसी बात…आखिर टाइम पास का टाइम पास…जितना बढ़िया टिप्पणी-संपर्क, उतना रहे मन झकास…खैर टाइम की बात आई तो फिर अपना मक्खन याद आ गया…फिर देर किस बात की, आइए स्ल़ॉग ओवर में…
स्लॉग ओवर
मक्खन गली के नुक्कड़ पर बैठा दो घंटे से मक्खियां मार रहा था..तभी ढक्कन आ गया…ढक्कन ने नसीहत के अंदाज़ में कहा कि क्यों टाइम बर्बाद कर रहा है…मक्खन ने तपाक से जवाब दिया..ओए, मुझे ऐसा-वैसा न समझ…मैं बदला ले रहा हूं बदला…ढक्कन ने पूछा…भई वो कैसे…मक्खन बोला…मुझे पहले वक्त ने बर्बाद किया, अब मैं वक्त को बर्बाद कर रहा हूं…
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