अलविदा जग’जीत’…
8 फरवरी 1941—10 अक्टूबर 2011 |
कोई दोस्त है न रक़ीब है,
तेरा शहर कितना अजीब है…
वो जो इश्क था, वो जूनून था,
ये जो हिज्र है ये नसीब है…
यहाँ किसका चेहरा पढ़ करूं,
यहाँ कौन इतना क़रीब है…
मैं किसे कहूं मेरे साथ चल,
यहाँ सब के सर पे सलीब है…
– कलाम-राणा सहरी, आवाज़-संगीत- जगजीत सिंह
रक़ीब…दुश्मन
सलीब…क्रॉस
हिज्र…वियोग, बिछुड़ना
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