मक्खनी को मक्खन से बड़ी शिकायत थी कि वो बेटे गुल्ली की पढ़ाई पर बिल्कुल ध्यान नहीं देता…
कई दिन ताने सुनने के बाद मक्खन परेशान हो गया…
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आखिर एक दिन तंग आकर उसने कहा…चल आज मैं पढ़ाता हूं…
गुल्ली से पूछा…बोल पुतर, क्या पढ़ेगा…
गुल्ली बोला…डैडी जी हिंदी कविता का कल टेस्ट है, वही पढ़ा दो…
मक्खन ने कहा…इसमें कौन सी बड़ी बात है…बता कौन सी कविता याद करनी है…
गुल्ली…डैडी जी मछली वाली…
मक्खन…चल बोल मेरे साथ… मछली जल दी रानी वे…
गुल्ली…मछली जल दी रानी वे…
आगे मक्खन भूल गया…लेकिन पत्नी-बेटे के सामने किसी कीमत पर शर्मिंदा नहीं होना चाहता था…अपने आप ही कविता बनानी शुरू की…
मछली जल दी रानी वे…
…………
………….
…………
राती शराब नाल तल के खानी वे…
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जोरदार…मजेदार…करारा व्यंग्य।
कब आऊँ?
हाहाहाहाह
आ हा हा हा ।
🙂
वाह ! आखिर रात का दारु के साथ दवा का भी तो इंतजाम उसी को करना था …हा हा हा हा
बेचारी मछली का हश्र? मक्खन भी क्या करता!
क्या करे, जो मन में है, निकलेगा ही।
इंसान भूल के अपनी पे आ जाता है।