ब्लॉगर्स मीट में ये भी हुआ…

त्वरित रिपोर्ट पर त्वरित ही प्रतिक्रियाओं के लिए सभी का दिल से आभार…दिनेशराय द्विवेदी सर की पारखी आंखों ने बड़ी सही चीज़ पकड़ी है कि कवि सम्मेलन की रिपोर्ट तो अच्छी रही, लेकिन ब्लॉगर्स मीट की रिपोर्ट का इंतज़ार रहेगा…मैं आपका आशय अच्छी तरह समझ गया हूं, सर…लेकिन दुविधा ये है कि ब्लॉगर्स मीट के नाम पर इतना ही कुछ हुआ जितना कि मैंने रिपोर्ट किया..साहित्य शिल्पी का वार्षिकोत्सव था…इसलिए उस कार्यक्रम के लिए जितना वक्त दिया गया वो वाज़िब भी था…हां, कवि सम्मेलन ज़रूर ज़्यादा समय ले गया…इस वजह से ब्लॉगर्स के परिचय तक आते-आते वक्त बहुत कम रह गया था…मैंने जो रिपोर्ट किया है उसमें सिर्फ उस अंश को जान-बूझ कर छोड़ दिया था जो मैंने ब्लॉगर्स मीट पर अपना परिचय देते हुए कहा …दरअसल पोस्ट लंबी हो रही थी इसलिए पोस्ट को कतरते हुए कैंची मैंने अपने ऊपर ही चलाई…अब द्विवेदी सर का आदेश है तो जो हिस्सा यानि कि मेरा कथन रिपोर्ट में आने से रह गया था, उसे यहां बता देता हूं..
दरअसल वहां संस्कृति यानि कल्चर की बातें हो रही थी…तो मैंने पहला वाक्य ये ही कहा कि जिस शहर (मेरठ) का मैं मूल निवासी हूं, वहां कल्चर के नाम पर सिर्फ एग्रीकल्चर होती है…समारोह में एक ब्लॉगर भाई ने ये मुद्दा उठाया था कि ब्लॉग के माध्यम को बड़ा सीरियसली लिया जाना चाहिए…सिर्फ टाइम पास या मनोरजंन के नज़रिए से ही नहीं लिया जाना चाहिए…जिन मुद्दों को प्रिंट या इलैक्ट्रॉनिक मीडिया टाइम नहीं देते, ब्लॉग के माध्यम से सब तक पहुंचाना चाहिए…मैं इन ब्लॉगर बंधु की बात से पूरी तरह सहमत हूं…लेकिन मैंने ये निवेदन किया कि इन मुद्दों को ब्लॉग पर रखते हुए सबसे ज़रूरी है कि आप किस अंदाज़ में इन्हें पेश करते हैं…अगर आप सिर्फ उपदेश की शैली में अपनी बात थोपते चले जाएंगे तो कोई भाव देने वाला नहीं मिलेगा…आपको ये भांपने का हुनर आना चाहिए कि पाठक क्या सुनना चाहते हैं…ऐसे में चार बातें वो कहें जो सभी सुनना चाहते हैं, और बीच में दो बातें वो जिन्हें आप उठाने चाहते हैं, रोचक अंदाज़ में पेश कर दें…आपका संदेश भी चला जाएगा और पढ़ने वालों को वो भी मिल जाएगा जो कि उन्हें पसंद है…ये सभी के लिए विन-विन वाली स्थिति रहेगी…शुरू में आपको अपनी शैली में थोड़ा बहुत बदलाव करने में दिक्कत हो सकती है, लेकिन बाद में अनुभव बढ़ते जाने के साथ इसके अच्छे नतीजे आने भी दिखने लगेंगे…
रही बात ब्लॉगर्स मीट जैसे आयोजनों को सार्थकता देने की, तो इस मुद्दे पर मेरी अविनाश वाचस्पति जी और अजय कुमार झा जी के साथ बात हुई…फरीदाबाद में हमने जो थोड़ा-बहुत पाया, उसे शुरुआत मान सकते हैं…ऐसे आयोजनों में जो खामियां रह जाती हैं, उनसे हमें सबक मिलता है कि आगे के कार्यक्रमों में वो खामियां न दिखें…ब्लॉगर्स मीट हो तो विशुद्ध रूप से वो ब्लॉगर मीट ही रहे तो ज़्यादा अच्छी बात है…लेकिन इस सब के लिए वालंटियर और सभी ब्लॉगर बंधुओं का सहयोग बहुत ज़रूरी है…और एक बात कहूंगा कि ब्लॉगिंग जगत के कुछ आइकन्स का ऐसे मौकों पर मौजूद रहना पहले से ही सुनिश्चित कर लिया जाए तो एक कार्यक्रम का कद बढ़ेगा और हम जैसे नए ब्लॉगर्स को उनके साक्षात सानिध्य से कुछ अच्छा करने की प्रेरणा भी मिलेगी…
अरे ब्लॉगर्स मीट की रिपोर्टिंग को विस्तार देने के चक्कर में मैं ये तो भूल ही गया कि कल मैंने आइकन वाली पोस्ट पर गलतफहमी दूर करने के लिए आज फिर से अपनी बात रखने का वादा किया था…लेकिन ये फिर कल के लिए टल गया…

स्लॉग ओवर
एक कवि-सम्मेलन में एक कवि महोदय को बड़े दिनों बाद मंच के ज़रिए क्रांति लाने का मौका मिला था…सो हुजूर आ गए फॉर्म में..दो घंटे तक उन्होंने कविता के नाम पर अपनी थोथी तुकबंदियों से श्रोताओं को अच्छी तरह पका दिया तो एक बुज़ुर्गवार मंच के पास आकर लाठी ठकठकाते हुए इधर से उधर घूमने लगे…मंच से कवि महोदय को ये देखकर बेचैनी हुई…पूछा…बड़े मियां, क्या कोई परेशानी है…बड़े मियां का जवाब था…नहीं जनाब, तुमसे क्या परेशानी…तुम तो हमारे मेहमान हो, इसलिए चालू रहो….मैं तो उसे ढूंढ रहा हूं जिसने तुम्हें यहां आने के लिए न्योता भेजा था…
(साभार दीपक गुप्ता)