बर्बादियों का जश्न मनाता चला गया…खुशदीप

कल की पोस्ट इस लाइन पर छोड़ी थी कि पचास के दशक के आखिर तक देव आनंद का शुमार दिलीप कुमार और राज कपूर के साथ हिंदी सिनेमा की त्रिमूर्ति के तौर पर होने लगा था…उन्हीं दिनों में देव साहब के बड़े भाई चेतन आनंद ने नवकेतन से अलग होकर अपना अलग बैनर हिमालय फिल्म्स बनाने का फैसला किया…नवकेतन में चेतन आनंद की जगह विजय आनंद ने ली…

नवकेतन की अगली फिल्म काला बाज़ार में देव साहब के साथ नंदा और वहीदा रहमान का लव ट्राएंगल था…इसके बाद विजय आनंद की स्क्रिप्ट पर बनने वाली फिल्म हम दोनों के निर्देशन की ज़िम्मेदारी अमरजीत को सौंपी गई…युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी हम दोनों में देव साहब ने नंदा और साधना के साथ डबल रोल किया…इस फिल्म के गाने…अल्लाह तेरो नाममैं हर फ़िक्र को धुएं में..देव साहब की तरह ही सदाबहार हैं…हम दोनों से संगीतकार जयदेव के करियर का आगाज़ हुआ…हम दोनों को बर्लिन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में भारत की आधिकारिक एंट्री के तौर पर भेजा गया…ये फिल्म थोड़े से ही अंतर से गोल्डन बीयर जीतने से चूक गई…देव आनंद और नवकेतन बेशक इस फिल्म से अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाने से रह गए लेकिन देव साहब को उसी दौरान नोबेल पुरस्कार विजेता पर्ल बक से मुलाकात का मौका मिला…पर्ल बक भारतीय मूल के लेखक आर के नारायण के उपन्यास द गाइड पर इंडो-अमेरिकन प्रोडक्शन के तहत फिल्म बनाना चाहती थीं…उन्हें इस काम के लिए देव साहब से बढ़िया शख्स और कौन मिल सकता था…

डील तय होने के बाद देश की कुछ बेहतरीन लोकेशन्स पर शूटिंग शुरू हुई…मैन ऑफ कमिटमेंट माने जाने वाले देव साहब ने अपने सारे रिसोर्सेज़, सारा एक्सपरटाइज़ प्रोजेक्ट में हॉलीवुड के भागीदारों को मुहैया करा दिया…देव साहब के प्रोफेशन्लिज़्म के विदेशी भी बेहद कायल हो गए…टैड डेनियलवेस्की ने द गाइड के इंग्लिश वर्ज़न और चेतन आनंद ने हिंदी वर्ज़न का निर्देशन एकसाथ शुरू किया…शूटिंग शुरू होने के कुछ दिनों बाद तय हुआ पहले इंग्लिश वर्ज़न को पूरा कर लिया जाए…उसी वक्त चेतन आनंद को पंजाब सरकार के वित्तीय अनुदान पर युद्ध आधारित फिल्म हक़ीक़त बनाने की पेशकश मिली…चेतन आनंद गाइड से अलग होकर हक़ीक़त बनाने में जुट गए…हक़ीक़त को लोगों ने खास तौर पर इसके गानों को बेहद पसंद किया…उधर द गाइड का इंटरनेशनल वर्ज़न रिलीज़ हुआ…लेकिन ये ज़्यादा कमाल नहीं कर सका…इसकी नाकामी के बावजूद देव साहब ने हिम्मत नहीं हारी…

विजय आनंद ने द गाइड की स्क्रिप्ट को नए सिरे से लिखा…फिल्म का नाम भी गाइड कर दिया गया…निर्देशन की ज़िम्मेदारी भी विजय आनंद ने ही संभाली….देव और वहीदा रहमान के अभिनय के कमाल के साथ सचिन देव बर्मन के संगीत का जादू गाइड के ज़रिए लोगों के सिर चढ़ कर बोला…आज तक गाइड को नवकेतन की सबसे प्रतिष्ठित फिल्म माना जाता है…नवकेतन की अगली फिल्म ज्वैलथीफ़ (1967, निर्देशक विजय आनंद) की शूटिंग सिक्किम की मनोरम लोकेशन्स में हुई…

ज्वैलथीफ़ की शूटिंग के दौरान ही फुर्सत के वक्त देव साहब एक मोटी सी फाइल लेकर सेना के अधिकारियों और जवानों से बातें करते देखे जाते थे…शूटिंग खत्म होने के बाद देव साहब भारत-चीन सीमा पर नाथूला पास भी होकर आए…मुंबई लौटने के बाद देव साहब ने उस बात का ऐलान किया जिसका उन्होंने बरसों से सपना संजो रखा था…यानि खुद की लिखी स्टोरी पर फिल्म निर्देशन…देव साहब के निर्देशन में बनने वाली पहली फिल्म थी- प्रेम पुजारी (1969)…वहीदा रहमान और ज़ाहिदा के लीड फीमेल रोल वाली युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म में देव साहब का प्रेम का संदेश देना लोगों के गले नहीं उतरा और फिल्म बॉक्स आफिस पर नाकाम रही…

प्रेम पुजारी की नाकामी को भुला कर देव साहब ने अगली फिल्म के लिए बिल्कुल अछूते विषय को चुना…वो दौर था जब विदेश से आई हिप्पी कल्चर से पहली बार भारत रू-ब-रू हुआ था…इसी सबजेक्ट पर देव साहब ने हरे रामा,हरे कृष्णा (1972) बनाई…कहने को इस फिल्म में देव साहब और मुमताज़ की लीड जोड़ी थी…लेकिन सारी लाइमलाइट फिल्म में देव साहब की बहन बनी ज़ीनत अमान ले गई…अपनी पहली फिल्म में ही दम मारो दम गाने ने ज़ीनत को नेशनल क्रेज़ बना दिया…हरे रामा,हरे कृष्णा में आर डी बर्मन (पंचम) के संगीत को खास तौर पर लोगों ने बहुत पसंद किया…

हरे रामा, हरे कृष्णा के बाद देव साहब ने जो फिल्म बनाई, उसने उन्हें आर्थिक तौर पर बहुत बड़ा झटका दिया…हिमालय की लोकेशन्स पर शूट की गई फिल्म इश्क, इश्क, इश्क (1974) पर देव साहब ने बहुत मोटा खर्च किया…प्रोफेशनल होने के नाते देव साहब जो कंसेप्ट सोच लेते थे, फिर उस पर खर्च से किसी तरह का समझौता नहीं करते थे…लेकिन इश्क, इश्क, इश्क को दर्शकों ने बुरी तरह ठुकरा दिया…देव साहब ने फिल्म की नाकामी के बाद फाइनेंसर्स, डिस्ट्रीब्यूटर्स का भरोसा टूटने नहीं दिया…अपने निजी रिसोर्सेज़ से उनके नुकसान की भरपाई की…देव साहब ने फिर पंजाब के लोगों के विदेश जाने की ललक को विषय बना कर देस परदेस (1978) का निर्माण किया…इस फिल्म में देव साहब ने टीना मुनीम (अब श्रीमति अनिल अंबानी) को ब्रेक दिया था…देस परदेस अच्छी खासी कामयाब रही…और यही नवकेतन बैनर की आखिरी हिट फिल्म रही…बाद में उन्होंने जैकी श्राफ (स्वामी दादा) और तब्बू (हम नौजवान) जैसी प्रतिभाओं को भी हिंदी सिनेमा में इन्ट्रोड्यूज़ कराया …अपने बेटे सुनील आनंद को भी उन्होंने आनंद और आनंद में ब्रेक दिया लेकिन वो भी बुरी तरह फ्लॉप साबित हुई…

देव साहब ने करियर के आखिरी तीन दशक में लूटमार, मनपसंद, सच्चे का बोल बाला, लश्कर, अव्वल नंबर, सौ करोड़, गैंगस्टर, रिटर्न ऑफ ज्वैलथीफ़, मैं सोलह बरस की, सेंसर, अमन के फरिश्ते, लव एट टाइम्स स्कवॉयर, मिस्टर प्राइममिनिस्टर, चार्जशीट जैसी फिल्में बनाईं लेकिन सब बुरी तरह फ्लाप साबित हुई…लेकिन देव साहब आखिरी दम तक नहीं रुके…न टायर्ड, न रिटायर्ड…बहुत कुछ इसी अंदाज़ में…

बर्बादियों का सोग मनाना फ़ज़ूल था,
बर्बादियों का जश्न मनाता चला गया…

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अजय कुमार झा

बेहतरीन जानकारियों को साझा करती पोस्ट । देव साहब के जाने पर सामयिक भी लगी । अब महसूस हो रहा है कि सिनेमा की एक पीढी अलविदा कह रही है

डॉ टी एस दराल

जिंदगी जिन्दादिली का नाम है । यह देव साहब पर पूर्णतया सही बैठता है ।
उन्हें विनम्र श्रधांजलि ।

dr.mahendrag
13 years ago

Dev sahib was an different personality.No one can be compare with him.

shikha varshney
13 years ago

वह भारत के पहले स्टाइल आईकोन थे उन्हें हिंदी फिल्मो के चाहने वाले कभी नहीं भूलेंगे.
विनर्म श्रद्धांजलि.

Rahul Singh
13 years ago

देव साहब के ही मिजाज का उनका लेखा-जोखा.

Atul Shrivastava
13 years ago

पहली कडी और अब इसमें बहुत कुछ नया जानने मिला…..
राजू गाईड अब कभी हिंदी फिल्‍मों का मार्गदर्शन नहीं करेगा… सोच कर भी अटपटा लगता है…..
श्रध्‍दासुमन…..

Ayaz ahmad
13 years ago

जानकारी भरी उपयोगी पोस्ट !

आभार ||

Satish Saxena
13 years ago

जब भी सिनेमा की बात चलेगी देवानंद वहां अवश्य होंगे …
श्रद्धांजलि उनको !

anshumala
13 years ago

दिलीप ,राज और देव की त्रिमूर्ति में से मुझे हमेशा से ही देवांनद ही ज्यादा पसंद थे चाहे उनकी रोमांटिक फिल्मे हो या थ्रिलर दोनों में ही वो फिट बैठते थे और उसी दौर में सामजिक सन्देश देती फिल्मो में भी सामान रूप से अच्छे और प्रभावित करने वाले दिखते थे उनकी फिल्मे कभी भी सामाजिक सन्देश के नाम पर प्रवचन देती नहीं दिखती थी | मुझे पता नहीं था की प्रेम पुजारी एक फ्लाप फिल्म थी फिल्म बहुत ही अच्छी थी और उसके गाने तो उससे भी अच्छे शायद लोग एक सैनिक को बस खून बहाते ही देखना चाहते थे प्रेम और शांति का बात करता सैनिक लोगो को पसंद नहीं आया |

देव साहब को मेरी श्रधांजलि !

दिनेशराय द्विवेदी

देव को हिन्दी सिनेमा हमेशा याद रखेगा।

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