बच्चे आप से कुछ बोल्ड पूछें, तो क्या जवाब दें…खुशदीप

बड़े दिन से हंसी ठठे वाली पोस्ट लिख रहा था…आज कुछ सीरियस लिखने का मूड है…पहले मैं इस विषय को ब्लॉग पर लिखने को लेकर बड़ा ऊहापोह में था…लिखूं या न लिखूं…इसी दुविधा में था कि आज अविनाश वाचस्पति भाई से बात हुई…मैंने अविनाश भाई से कहा कि अंग्रेज़ी ब्लॉग्स पर बोल्ड विषयों पर भी खूब बेबाकी से लिखा जाता है….तो क्या हिंदी ब्लॉग अभी इतना परिपक्व नहीं हुआ है जो बोल्ड टॉपिक्स को झेल सके…लेकिन मेरा करीब छह महीने की ब्लॉगिंग का अनुभव कहता है जो भी हिंदी ब्लॉगिंग में हैं, सभी बड़े मैच्योर और सुलझे हुए हैं…अगर किसी बहस का आधार बोल्ड विषय को बनाया जाए तो ज़रूर सभी खुल कर बात रखेंगे…अविनाश भाई ने भी इस पर सहमति जताई…तभी मैं इस विषय पर कुछ लिखने की हिम्मत दिखा पा रहा हूं…

जिस तरह रिले रेस चलती है उसी तरह हमारी या किसी भी प्राणी की जीवन रेस चलती है…हमें अपनी दौड़ पूरी करने के बाद बैटन अपनी संतान या उत्तराधिकारी को पकड़ाना होता है…किसी भी प्रजाति या स्पीसिज़ के सर्ववाइवल के लिए ज़रूरी है कि प्रजनन के ज़रिए उसे आगे बढ़ाए…ये सृष्टि का विधान है…जैव विकास इसी तरह आगे बढ़ता है…अब इसके लिए ज़रूरी है पुरुष और महिला का मिलन…जब ये एक ज़रूरी नियम हैं तो फिर इस पर बात करने से हम कतराते क्यों हैं…

हम जिस ज़माने में पैदा हुए तब से अब तक बहुत सारा पानी गंगा में बह चुका है…जो बातें हमें काफ़ी बड़े होने के बाद पता चलीं वो आज की पीढ़ी को बहुत छोटी उम्र में ही पता चल जाती हैं…तब आज की तरह सैटेलाइट टीवी नहीं था…जो खुलापन किसी वक्त विदेश में देखकर हम ताज्जुब किया करते थे, वो बुद्धु बक्से के ज़रिए हमारे ड्राइंग रूम तक पहुंच चुका है…आप कब तक नज़र रख पाएंगे कि बच्चा टीवी, इंटरनेट या मोबाइल पर क्या देखे और क्या नहीं…और ये शाश्वत सत्य है कि आप बच्चे को जिस चीज़ के लिए रोकेंगे, उसे कौतुहल के चलते वो जानने की इच्छा और प्रबल होगी…वो चोरी छिपे ये सब देखे तो आप क्या कर लेंगे…या मानिए वो स्कूल या घर के बाहर दूसरे बच्चों की सोहबत में कुछ ऐसा-वैसा सीखे तो आप कैसे उसे रोक पाएंगे…मेरा ये मानना है कि बाल मस्तिष्क बहुत कच्चा होता है…उसे हैंडल करने के लिए सबसे ज़्यादा केयर की ज़रूरत होती है…आपकी सख्ती या ज़रूरत से ज़्यादा ढील के चलते बच्चे के दिमाग में कुछ गलत बैठ गया तो बड़े होने पर विकार बनकर उसके विकास में कई तरह की समस्याएं खड़ी कर देता है…इसलिए यहां मां-बाप की भूमिका बहुत अहम हो जाती है…

जीवन के इस ज़रूरी पाठ (सेक्स) के बारे में बच्चा सही जानकारी कहां से ले…आज ये कहने से काम नहीं चलता कि बड़े होने पर अपने आप सब कुछ आ जाता है…ये तर्क सिर्फ दिल को तसल्ली देने के लिए ही हो सकते हैं कि शेर को शिकार करना कोई सिखाया जाता है या मछली को पानी में तैरना कोई सिखाया जाता है…अब आप खुद बताइए जब टीवी पर कोंडोम, गर्भनिरोधक गोली या परिवार नियोजन के बारे में कोई एड आता है और आप बच्चों के साथ ड्राइंग रूम में बैठे साथ देख रहे हैं तो आपके चेहरे पर क्या भाव आते हैं…रिमोट से चैनल बदल देते हैं…मुंह दूसरी तरफ़ घुमा लेते हैं…कोई दूसरी बात से ध्यान दूसरी ओर करने की कोशिश करते हैं…स्थिति तब और अजीब हो जाती है जब कोई छोटा बच्चा उन एड के बारे में आपसे कोई सवाल दाग देता है…आप या तो उसे झिड़क देते हैं या फिर सवाल को टाल जाते हैं…यहां बच्चे की उत्कंठा शांत नहीं होती…बाल-मन की प्रकृति है कि वो नया सब कुछ जानने, सब कुछ सीखने की कोशिश करता है…अब आप उसे नहीं बताते या रोकते हैं तो उसके मन में पेंच जरूर रह जाता है कि आखिर मुझसे ये बात छुपाई क्यों जा रही है…फिर इस समस्या का समाधान कैसे हो…क्या बच्चे को ऐसे ही उनके हाल पर छोड़ दिया जाए…या इस टॉपिक के लिए कोई साइंटिफिक एप्रोच अपनाई जाए…

बच्चे क्लास में भी तो बॉयोलॉजी के चैप्टर में रिप्रोडकशन का चेप्टर पढ़ते हैं…वहां उनकी नया जानने की बाल सुलभ भावनाएं तो रहती हैं, लेकिन उनके मन में कोई ऐसा वैसा गलत ख्याल नहीं आता…तो क्यों न पिता बॉयोलॉजी के उस चैप्टर या बाज़ार में मिलने वाले बॉडी पार्ट्स चार्ट्स के ज़रिए ही बच्चों को शारीरिक संरचना के बारे में समझाए…यहां बस इनोवेटिव होने की ज़रुरत है…

मेरा ये मानना है कि बच्चे में जब हार्मोनल चेंज आने शुरू होते हैं तो लड़कियों को तो उनकी माएं काफ़ी कुछ बता देती हैं…लेकिन लड़कों से कोई बात नहीं करता…मेरी समझ से यहां पिताओं की भूमिका बहुत अहम हो जाती है…पिता को बेटे से दोस्त की तरह बात करनी चाहिए…
किशोरावस्था में लड़कों के शरीर में भी बड़े हार्मोनल चेंज आते हैं…लेकिन उन्हें दोस्तों से या घर के बाहर से जो जानकारी मिलती है, वो अधकचरी होती है…इससे बच्चे के मन में गिल्ट आना शुरू हो जाता है…मैं यहां दो शब्द इस्तेमाल नहीं करना चाहता था लेकिन उन्हें लिखा बिना कोई चारा भी नज़र नहीं आ रहा…किशोरावस्था में बैड वैटिंग या मास्टरबेशन बड़ा ही सीक्रेट या यूं कहें गंदे कहे जाने वाले शब्द हैं…लेकिन ये मानव शरीर की प्रकृति के चलते भी हो सकता है…अगर घर के पानी की टंकी पूरी तरह भर जाती है तो ओवरफ्लो होना शुरू हो जाती है…ये लड़के के जवानी की दहलीज पर कदम रखने का भी प्रतीक है…बस इतनी सी बात है…ज़िम्मेदार पिता को किशोर बेटे को समझाना चाहिए कि अति हर चीज़ की बुरी होती है…लेकिन प्रकृति भी अपने कुछ नियमों से चलती हैं…इन्हें लेकर मन में अपराधबोध नहीं लाना चाहिए…

अभी पिछले दिनों देहरादून में एक वाक्या हुआ था…एक सातवीं के लड़के ने टायलेट में चौथी की बच्ची के साथ उलटा सीधा करने की हरकत थी…आप कह सकते हैं कि ये सब जो टीवी पर दिखाया जा रहा है उसका असर है…सही बात है…कल को ये समस्या किसी भी बच्चे के साथ पेश आ सकती है…लेकिन इसका ये इलाज भी तो नहीं टीवी बंद करके ही ताक पर रख दिया जाए…बच्चे सही राह पर चलें, ये देखना भी तो हमारा फर्ज है…अब हम कब तक बच्चों को ये कह कर भ्रमाते रहेंगे कि मम्मी बेबी को भगवान के पास से लाई है…बच्चे बहुत स्मार्ट हो गए हैं…जिस तरह आप चाहते हैं कि बच्चे हमेशा आप से सच बोलें, उसी तरह बच्चे भी चाहते हैं कि पापा-मम्मी भी उनसे झूठ न बोलें…

अगर आप बच्चे का करियर बनाने के लिए अपना सब कुछ झोंक देते हैं…तो वैवाहिक जीवन भी ज़िंदगी का बड़ा सच है…बच्चे के वैवाहिक जीवन में इग्नोरेंस या गलत जानकारी की वजह से कोई समस्या न आए, इसके लिए भी तो हमारा कुछ फर्ज बनता है…अभी आल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़ में एक बड़ा रिवोल्यूशनरी कोर्स शुरू हुआ है…जिनकी शादी होने जा रही है, उनके लिए ये कोर्स बड़ा एडुकेटिव है…इससे सेक्स या ह्यूमन रिलेशंस को लेकर कई तरह की भ्रांतियां दूर हो जाती है…आज इसी तरह की एप्रोच अपनाने की ज़रूरत है…


इस दिशा में मैं डॉ टी एस दराल से अपील करता हूं कि कोई आसान भाषा में चार्ट्स के ज़रिए ऐसा प्रेंजेंटेशन तैयार करें जिनके ज़रिए मां-बाप सीख सकें कि बच्चों से सेक्स को लेकर कैसे बात की जाए…अगर ब्लॉगर भाई भी इस विषय में कुछ कहना चाहते हैं तो खुलकर अपनी बात रखें…खजुराहो और वात्सायन के देश में संस्कृति के नाम पर हम कब तक ढपोरशंख बने रहेंगे…एचआईवी और एड्स के खतरे के चलते हमें और सावधान होने की ज़रूरत है…नई पीढ़ी को सही जानकारी देना हमारा फ़र्ज बनता है…ज़माना बदल गया है…हम कब बदलेंगे…

डिस्क्लेमर- अगर इस लेख में मेरे इस्तेमाल किए गए एक दो शब्दों से किसी को असुविधा हुई है तो मैं पहले ही माफ़ी मांग लेता हूं…

ज़रूरी सूचनाआज स्लॉग ओवर छुट्टी पर है…मक्खन ने अलबेला खत्री जी के सम्मान में राजीव तनेजा भाई और संजू तनेजा भाभी की ओर से अपने घर पर दी गई दावत में इतना कुछ खा लिया कि लंबी तान कर सो रहा है…उठाने पर भी नहीं उठ रहा…

 

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‘सज्जन’ धर्मेन्द्र

एक अच्छी पोस्ट के लिए साधुवाद स्वीकारें। आप विशेषज्ञों की राय लेकर "किशोरों द्वारा बहुधा पूछे जाने वाले प्रश्न" जैसी पोस्ट क्यों नहीं बनाते। इससे जिन पिताओं / माताओं ने जीव विज्ञान विस्तार में नहीं पढ़ा है उन्हें थोड़ा ज्ञान भी प्राप्त हो जाएगा और वो किशोरों के प्रश्नों का समुचित उत्तर भी दे पाएँगें। आपकी पोस्ट भी भविष्य के लिए एक संदर्भ का काम करेगी।

Arvind Mishra
13 years ago

ओह शायद इतनी महत्वपूर्ण पोस्ट मुझसे मिस हो गयी थी ..आपके आगाज को हम अंजाम तक पहुंचा पायें –ईश्वर शक्ति दे !

Pallavi saxena
13 years ago

एक गंभीर मसले पर बहुत ही ईमानदारी और स्पष्ट ढंग से लिखा है आपने सहमत हूँ आपकी बातों से इसलिए तो मैंने भी लिखा था कि बच्चों पर नज़र रखना ज़रूरी है। न कि यह कि उन पर रोक टोंक लगायी जाये या उनके जिज्ञासु मन को टाला मटोली करके टाल दिया जाया। यहाँ जरूरत है बच्चों को सही ढंग से समझने कि, उनके द्वारा पूछे गए हर सवाल और विषय को कुछ इस तरह समझाने और बताने कि,की उनकी जिज्ञासा शांत हो सके और आगे भी वह आपके सामने अपने मन कि बातें खुलकर कर सके। सार्थक आलेख….

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