प्रिय ब्लॉग मित्रों,
डॉ अमर कुमार नहीं रहे…ये हक़ीक़त है…लेकिन दिल इसे मानने को तैयार नहीं…मौत को भी ज़िंदादिली सिखा देने वाले शख्स को आखिर मौत कैसे हरा सकती है…कैसे ले जा सकती है ब्लॉग जगत के सरपरस्त को हम सबसे दूर…दर्द को भी कहकहे लगाना सिखा देने वाले डॉ अमर कुमार का शरीर बेशक दुनिया से विदा हो गया लेकिन जब तक ये ब्लॉगिंग रहेगी उनकी रूह, उनकी खुशबू हमेशा इसमें रची-बसी रहेगी…टिप्पणियों में छोड़ी गई उनकी अमर आशीषों के रूप में…
कहते हैं इंटरनेट पर छोड़ा गया एक एक शब्द अमर हो जाता है…और उनका तो नाम ही अमर था…अमर मरे नहीं, अमर कभी मरते नहीं….डॉक्टर साहब अब ऊपर वाले की दुनिया को ब्लॉगिंग सिखाते हुए हम सबकी पोस्टों को भी देखते रहेंगे…डॉ अमर कुमार को समर्पित ये निर्माणाधीन ब्लॉग शाहनवाज़ के साथ मिलकर मेरी एक छोटी सी कोशिश है, उनके छोड़े गए अनमोल वचनों को एक जगह एकत्र करने की…ये महत्ती कार्य आप सबके सहयोग के बिना संभव नहीं हो सकता…मैं अब जुट गया हूं, अपनी पोस्टों पर आईं उनकी एक एक टिप्पणी को सहेजने में…आपको जब भी थोड़ा वक्त मिले, डॉ अमर कुमार की याद को अमर करने के लिए अपनी पोस्टों पर आईं उनकी टिप्पणियों को सहेजिए…
यकीन मानिए ये सीप के मोती अब भी हमें सीख देते रहने के साथ नए ब्लॉगरों के लिए भी प्रकाश-पुंज का कार्य करेंगी…ये टिप्पणियां आप Sehgalkd@gmail.com या mailto:shnawaz@gmail.com
पर भेज सकते हैं…बस एक विनती और…हर टिप्पणी के साथ तारीख और उनके पब्लिश होने का टाइम भी होता है…अगर उसे भी भेजेंगे तो ये भी पता चलेगा कि किस वक्त डॉक्टर साहब के ज़ेहन में वो विचार आया था…इस काम को अपनी सुविधा के अनुसार करिए…एक टिप्पणी मिले तो एक टिप्पणी भेज दीजिए…वो सब आपके नाम के साथ पोस्ट के रूप में इस ब्लॉग पर चमक बिखेरेंगी…इसके अलावा डॉक्टर साहब से जुड़े आपके संस्मरण हैं तो वो भी भेजिए…कोशिश यही है कि जब तक ब्लॉगिंग चले, डॉक्टर साहब हमसे कभी जुदा न हों…कितना भी दर्द, दुख डॉक्टर साहब के शरीर ने झेला, लेकिन दूसरों को हंसाना उन्होंने कभी नहीं छोड़ा…डॉ साहब के इसी जज़्बे को अपने जीवन में उतारना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी…मैं खुशनसीब हूं कि एसएमएस पर उनसे जोक्स पढ़ने-पढ़ाने का सिलसिला चलता रहता था…लगता है अब भी यही आवाज़ कानों में आएगी…खुशदीपे या खुशदीप पुत्तर….अंत में इसी प्रार्थना के साथ…डॉ अमर कुमार को परमपिता अपने चरण-कमलों में स्थान दे और श्रद्धेय माताजी, रूबी भाभी जी, बेटे डॉ शांतनु अमर के साथ सभी परिवारजनों को इस असीम दुख को सहने की शक्ति प्रदान करे…
आपकी भेजी जाने वाली डॉ साहब की टिप्पणियों के इंतज़ार में…
आपके
खुशदीप और शाहनवाज़
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खुशदीपजी, सर्वप्रथम तो आपको आशीष कि आप इतना नेक कार्य कर रहे हैं। अभी 25 अगस्त से बाहर थी, हल्द्वानी गयी हुई थी, इसलिए यह पोस्ट अभी आकर देख रही हूँ। मेरी एक मित्र रायबरेली की ही हैं, हल्द्वानी में उनसे मिलना हुआ तो मैंने डॉ अमर कुमार जी की चर्चा की। उन्होंने बताया कि वे बड़े अच्छे इंसान थे और उनका गायन भी बेहद अच्छा था। आपको पुन: आशीष।
आपका यज्ञ सफल हो, सब सहयोग देने को तैयार हों।
डॉ साहब द्वारा किये कमेंट्स को एक जगह संरक्षित करना सराहनीय प्रयास है।
अनूप जी के इस बात से सहमति है कि डॉ साहब के लिखे को सहेजने की ज्यादा जरूरत है। जहां तक मुझे लगता है कि कोई ब्लॉग या साइट यदि लंबे समय तक ऑपरेट न हो तो ब्लॉगस्पॉट खुद ब खुद ऐसे ब्लॉग्स को हटाने लगता है। ऐसे में डॉ साहब का लिखा सुरक्षित करना जरूरी लग रहा है।
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खुशदीप जी , डॉ साहब की एक टिप्पणी नीचे दे रही हूँ। आलेख का लिंक भी संलग्न है यदि आवश्यकता हो तो ।
क्या आपके पास एक आदर्श मित्र है ? — श्रीकृष्ण जैसा .
http://zealzen.blogspot.com/2010/11/blog-post_30.html
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डा० अमर कुमार said…
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मित्रता क्या लाँड्री की रसीद है ?
शर्तें लागू करना कतई न्यायसँगत नहीं है ।
और…मित्रता में कोई शर्त नहीं होती,
ऎसे मित्र अनायास नहीं मिला करते
मित्रता की ऎसी असीमता अर्जित करने के लिये स्वयँ भी बहुत कुछ त्यागने को तत्पर रहना होता है ।
इस पोस्ट के सम्बन्ध में मेरा ऎसा ही मानना है । मेरा अपना सच तो यह है कि मुझे मेरे मुँह पर आलोचना करने वालों से बेहतर कोई मित्र ही नहीं लगता । इसके मानी यह नहीं कि, मैं लतखोरीलाल हूँ.. मैं उनका शुक्रगुज़ार हूँ कि उनमें सच कहने का साहस रहा और इन्हीं आलोचकों ने मुझे माँज माँज कर आज इस मुकाम पर पहुँचाया है ।
यह तो बाद में जाना कि कड़वी नीम और करेले की तासीर रक्तशोधक की होती है, जो आप्के स्व को निखार कर सामने लाती है ।
पर मैं यह सब कह-सुन-लिख ही क्यों रहा हूँ, यह तो जबरिया राय देने वाली बात हुई ।
जो आपके दुःख में आपसे भी ज्यादा दुखी हो उठे… ( क्यों ? फिर उसमें स्वार्थ की गँध लोग क्यों न ढूँढ़ें ? )
जो आपको अनावश्यक प्रवचन ना देकर , सिर्फ आपको समझे ( समझा-समझी के इस प्रयास में भले ही उसे चाटुकारिता के स्तर तक गिरना पड़े )
जो आपके साथ कटु अथवा व्यंगात्मक अथवा ईर्ष्या से युक्त भाषा में न बात करता हो ( मेरा ख़्याल है कि दो टूक बात करने वाला दिल से आपका हितैषी होता है )
जो निस्वार्थ प्रेम करता हो । ( बिनु स्वारथ न होंहि प्रीति… ई हम नही कहा, ई तुलसी बाबा कहूँ उचारिन रहा, वहि हमहूँ बोला )
" A single rose can be your garden "
Yes, its certainly true.. but a flower without thorn can never be a rose. How can I believe this flower being a rose, if its thorns are picked out ?
December 1, 2010 12:45 AM
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http://satish-saxena.blogspot.com/2010/08/blog-post_30.html
http://satish-saxena.blogspot.com/2010/12/blog-post_22.html
http://satish-saxena.blogspot.com/2010/08/blog-post_30.html
http://satish-saxena.blogspot.com/2010/12/blog-post_22.html
अतयंत सराहनीय प्रयास है यह, बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
बहुत नेक इरादा है . मैंने अपने ब्लॉग पर उनकी अधिकांश टिप्पणियां /अंश प्रकाशित की हैं . आप कॉपी कर सकते हैं . हालाँकि टिप्पणी किस सन्दर्भ में की गई , यह भी साथ हो तो बेहतर रहेगा .
अनूप शुक्ल जी की बात से भी सहमत हूँ .
उनके लेख बहुत से लोगों ने नहीं पढ़े होंगे . उन्हें नए ब्लॉग पर प्रकाशित किया जा सकता है . लेकिन परिवार से अनुमति लेकर ही . अभी शायद ४ या ५ सितम्बर को तेरहवीं है . उसके बाद बात की जा सकती है .
इस आयोजन के लिए आये खुशी खुशी खुशदीप!
बहुत साधुवाद!
Khushdeep bhai, yahi sachchi shraddhanjali hogi Dr.amar kumar ji ko. Sarthak karya hai apka.
एक बहुत बढ़िया कार्य कर रहे हैं आप. आपको कामयाबी मिले..
महती काम का बीड़ा उठाया है, शुभकामनाएं.
महती काम का बीड़ा उठाया है, शुभकामनाएं.
डा.अमर की टिप्पणियां सहेजने का काम अच्छा है।
लेकिन उससे जरूरी काम उनका लिखा हुआ सहेजने की है। उनके ब्लाग पर जो कुछ लिखा हुआ मौजूद है उसको संरक्षित करना ज्यादा जरूरी काम है। या तो उसे उनके ब्लाग पर ही रखा जाये या फ़िर उसको उनके घर वालों से पूछकर किसी और ब्लाग पर रखा जाये।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
डॉ.साहब को बहुत थोड़े दिनों में जो कुछ भी जाना उसमें यह बात बहुत ज्यादा उभर कर आई की वे वास्तव में एक इंसानी-ब्लॉगर थे .लिखने-लिखाने से कहीं ज्यादा वे मिलने-मिलाने में यकीन रखते थे और यह सब वह इसी अंतरजाल के द्वारा करते थे !
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
निंसंदेह एक ऐेसे ब्ल़ागर का जाना जो बिना किसी स्वार्थ के आपको सही मत देता हो एक क्षति है। आभाषी दुनिया में कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जिनके न रहने का दुख होता है। भगवान उनके परिजनो को हिम्मत दे इस दुख को सहने की। मुझे लगता है कि हिंदी ब्लाग को बढ़ाने के साथ-साथ हम लोगो ऐसे लोगो को याद रखें जो इसके शुरुआती साल में इसे बढ़ावा देने और नए ब्लागरों की हौंसलाअफजाई करते रहे। यही एक सच्ची श्रद्धाजंलि होगी ऐसे ब्लागर के लिए।
यह ब्लॉग बनाकर आपने एक नेक काम किया है। हमारे पास डा. अमर कुमार जी की कई टिप्पणियां हैं जिनमें से सबसे बड़ी टिप्पणी इस लिंक पर है , इसे आप बख़ुशी ले सकते हैं। उनकी इसी टिप्पणी को हमने अपने कमेंट गार्डन में सबसे पहले सजाया है। यह टिप्पणी बहुत ज़्यादा ज्ञान के बाद ही कर पाना संभव है और इसी टिप्पणी से हमें उनके इल्मी रूतबे की बुलंदी का पता चला।
सारी वसुधा एक परिवार है
डा0 अमर ऐसे ब्लॉगर थे जिनसे मेरा कमेंट का कोई रिश्ता नहीं था। न कभी उनका एक कमेंट मिल सका और न कभी मैं ही उनके ब्लॉग में कमेंट लिख पाया। सबसे मजेदार बात यह है कि कमेंट से कोई रिश्ता न होते हुए भी मैं उनको उनके कमेंट से ही जानता/मानता था। दूसरे के ब्लॉग में उनके कमेंट ध्यान से पढ़ता था। पढ़कर आकर्षित होता था ।
उनके कमेंट बेबाक व तथ्यपरक हुआ करते थे। जिन्हें सहेजना एक अच्छा कार्य है लेकिन बिना पोस्ट के कमेंट किस रूप में प्रकाशित हों कि पढ़ते ही लोग संदर्भ सहित समझ जांय यह एक दुरूह कार्य है।
शुभकामनाएँ…..।