ज़िंदगी कितनी बदल गई…है ना…खुशदीप

सिर्फ़…

मैं उस वक्त में लौटना चाहता हूं जब…
मेरे लिए मासूमियत का मतलब,

सिर्फ खुद का असल होना था…

मेरे लिए ऊंचा उठने का मतलब,

सिर्फ झूले की पींग चढ़ाना था…

मेरे लिए ड्रिंक का मतलब,

सिर्फ रसना का बड़ा गिलास था…

मेरे लिए हीरो का मतलब,

सिर्फ और सिर्फ पापा था…

मेरे लिए दुनिया के शिखर का मतलब,

सिर्फ पापा का कंधा था…

मेरे लिए प्यार का मतलब,

सिर्फ मां के आंचल में दुबकना था…

मेरे लिए आहत होने का मतलब,

सिर्फ घुटनों का छिलना था…

मेरे लिए दुनिया की नेमत का मतलब,

सिर्फ बैंड बजाने वाला जोकर था…

अब वज़ूद की सर्कस में मै खुद जोकर हूं,

ज़िंदगी कितनी बदल गई…है ना…

————————————————————————–
PhD यानि पीएचडी का असली मतलब जानते हैं, नहीं जानते तो इस लिंक पर जाइए…
Khushdeep Sehgal
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sharad
13 years ago

woh kagaz ki kashti……
wo baarish ka panni……

Prity
13 years ago

सुंदर पंक्तियाँ ….एक एक शब्द ऐसा लगता है जैसे की पाठक खुद के बारे में पढ़ रहा हो….

Vivek Jain
13 years ago

अग्रगामी समयचक्र को कोई भी नहीं रोक सकता.
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

shikha varshney
13 years ago

बदलना तो जिंदगी की रीत है.

ताऊ रामपुरिया

इसीलिये समय को काल कहा गया है जो तीनो कालों में होते हुये भी कभी नही लोटता, बहुत शुभकामनाएं.

रामराम.

डॉ टी एस दराल

जिंदगी भी बहती नदी की तरह है . यदि रुक जाये तो सड़ने लगती है .
इसलिए इस बहाव में भी आनंद है .

अन्तर सोहिल

इतना विचार आना भी शुभ है।
जिसे यह विचार आ जाये वह अभी भी उसी मासूमियत से जिन्दगी जी सकता है।

प्रणाम

निर्मला कपिला

आमो़ की डाली जब से भर भर बौराई है
बचपन की कोई याद दिल की देहरी पर आयी है।
बहुत सुन्दर्काश बचपन फिर से लौट आये।

Satish Saxena
13 years ago

मज़ा आ गया…!
काश वे दिन लौट सकें भाई जी !

प्रवीण पाण्डेय

मन की वह निर्मलता अब बार बार मागूँ।

ASHOK BAJAJ
13 years ago

अतीत की याद मीठी होती है.

Rakesh Kumar
13 years ago

जिंदगी तो बदलेगी ही खुशदीप भाई.
पहले आप बिना PhD के थे.अब आपने
PhD ले रखी है.

बिना पायजामे के धूल में लोटने,
लंगोटिया यारो के साथ खेलने का आनंद
भी तो कुछ और ही था.

Unknown
13 years ago

काश हमें वही मासूमियत वापस मिल पाती उम्र के साथ.

Suman
13 years ago

चाहे जितना भी ऊंचा क्यों न उठे
इस मासूमियत को बचा लेना ही
आर्ट ऑफ़ लिविंग है !
बहुत सुंदर भाव है !

Sunil Kumar
13 years ago

काश ! बचपन रुक जाता …..

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto)

kaash ki fir se bachpan aa jata….. rasna papa maa aur jhule inse zindagi kitni had tak judi hui hoti hai…..

डा० अमर कुमार

….और वक्त बेवक्त जहाँ तहाँ सूशू पॉटी करने की आज़ादी थी, कोई डाँटता तक न था !

Archana Chaoji
13 years ago

कभी न भूलने वाले दिन…

दिनेशराय द्विवेदी

बचपन ऐसा ही होता है।
तब हमारे माता पिता भी शायद वापस अपने बचपन में लौटना चाहते हों।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen

बचपन के दिन भी क्या दिन थे..

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