आप अगर साइंस या फिजिक्स के छात्र रहे हैं तो न्यूटन द ग्रेट के बारे में ज़रूर जानते होंगे…वहीं जनाब जिन्होंने गति (मोशन) के नियम बनाए थे…लेकिन ये बात फिजिक्स पढ़ने वाले छात्रों की है…कुछ हमारे जैसे छात्र भी होते थे जो क्लास में बैठना शान के खिलाफ समझते थे…गलती से कभी-कभार खुद ही पढ़ लेते थे तो पता चलता था कि प्रोटॉन हो या न्यूट्रान या फिर इलैक्ट्रॉन सब का एटम (परमाणु) में स्थान निर्धारित होता है…प्रोटॉन और न्यूट्रान तो न्यूक्लियस में ही विराजते हैं…इलैक्ट्रॉन बाहर कक्षाओं में स्पाईडरमैन की तरह टंगे रहते हैं…लेकिन कुछ हमारे जैसे फ्री इलैक्ट्रॉन भी होते हैं जो न तो न्यूक्लियस में बंधे रहना पसंद करते थे और न ही किसी कक्षा में लटकना…सौंदर्यबोध को प्राप्त करने के लिए कॉलेज के बाहर ही सदैव चलायमान रहते थे…
इलेक्ट्रोन का चुम्बकीय क्षेत्र बहुत गतिशील फोटोन को अपनी ओर आकर्षित करता है, प्रेम करता है… जब भी कोई विद्युत आवेश गतिशील होता है तो एक चुम्बकीय क्षेत्र बनता है…गतिशील फोटोन का भी चुम्बकीय क्षेत्र होता है… जब इलेक्ट्रान और फोटोन दोनों के चुम्बकीय क्षेत्र समान आवृत्ति पर गुंजन करते हैं तो तो गूटर-गूं, गूटर-गूं होना निश्चित है…
अब पास ही गर्ल्स डिग्री कॉलेज में इतराते-बल खाते फोटोनों (या फोटोनियों) का गुरुत्वाकर्षण चुंबक की तरह हमें खींचे रखता तो हम क्या करते…ये तो उन बुजुर्गों का कसूर था जिन्होंने दोनों डिग्री कालेजों को साथ ही बसा दिया था…बस बीच में लक्ष्मण रेखा की तरह एक दीवार बना दी…अब आग और घी इतना साथ रहेंगे तो कयामत तो आएगी ही…अरे ये क्या मैं तो पिछले जन्म के क्या इसी जन्म के राज़ खोलने लगा…भाई पत्नीश्री भी कभी-कभार हमारे ब्लॉग को पढ़ लेती है… मुझे घर में रहने देना है या नहीं…
खैर छोडि़ए इसे अब आता हूं न्यूटन जी का नाम लेकर कॉलेज में बनाए हुए हमारे छिछोरेपन के नियम से…
“हर छिछोरा तब तक छिछोरापन करता रहता है…जब तक कि सुंदर बाला की तरफ़ से 9.8 मीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से नुकीली हील वाला सैंडल उसकी तरफ नहीं आता…ये फोर्स (बल) बेइज्ज़ती
कहलाता है…और ये बल शर्मिंदगी के समानुपाती (डायरेक्टली प्रपोशनल) होता है…अगर छिछोरापन फिर भी कायम (कॉन्स्टेंट) रहता है तो बेइज्ज़ती की ये प्रक्रिया अनंत ( इंफिंटी) को प्राप्त होते हुए अजर-अमर हो जाती है…”
और इस तरह हम भी अमरत्व को प्राप्त हुए…