…और मोदीत्व को प्राप्त हुई बीजेपी…उपवास के मंच पर नरेंद्र मोदी…गुजरात का फलक छोटा हो गया है…चक्रवर्ती सम्राट के कद के लिए अब पूरे भारत का कैनवास चाहिए…मोदी का दमकता चेहरा…सब कुछ कहती बॉडी लैंग्वेज़…तालियां पीटते बीजेपी के दिग्गज नेता…मुंह से मोदी की शान में कसीदे पढ़ते और खुद के बौने होने के अहसास से मन ही मन कुढ़ते…मोदी का ये आयोजन कांग्रेस से ज़्यादा बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के दूसरे दावेदारों को अपने सारे मुगालते साफ़ कर देने के लिए है…मोदी इसमें कामयाब भी हुए…
लेकिन मोदी जी, एक सवाल आपके चिंतन के लिए…बीजेपी से सिर्फ अटल बिहारी वाजपेयी ही प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने में कामयाब क्यों रहे…परमानेंट पीएम इन वेटिंग लालकृष्ण आडवाणी की सबसे बड़ी मुराद इस देश में क्यों नहीं पूरी हो सकती…
आज पूरे दिन उपवास के उपहास को देखा तो हाल में ब्लॉग पर पढ़ी युवा कवि नीरज कुमार की ये कविता खुद-ब-खुद याद आ गई…
परछाइयां
रात काली, ख्वाब काले, भागतीं परछाइयां,
मौत का है जश्न सारा, नाचतीं परछाइयां…
हुस्न खुदा के नूर का जिस्म में दिखता नहीं,
चीर सीना जो दिखाया, झाँकतीं परछाइयां…
जो दुआ में हम खुदा से मांगते इंसानियत,
तो हमारे हाथ आतीं झेपतीं परछाइयां…
चाँद तारे साज सरगम खो गए ऐ जिंदगी,
दिन दहाड़े आसमां को घेरती परछाइयां…
सुनहरे थे हाथ जिनके कब्र में तनहा पड़े,
आदमी का भ्रम सारा तोड़तीं परछाइयां…
क्यों नगाड़े बज रहे हैं आज भी संसार में,
क्यों हमारी भूख को है हांकती परछाइयां…
-नीरज कुमार
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राजनीति में जीरो हूँ,खुशदीप भाई.
देखतें हैं क्या होता है.
सुनहरे थे हाथ जिनके कब्र में तनहा पड़े,….
क्या बात है …..!!
खुशदीप सहगल उस पैसे को खुशदीप सहगल के पास ही रखेगा…
आमीन ।
कुर्सी पर तो किसी को बैठना है ही । कोई स्ट्रोंग बंदा बैठे तो उम्मीद तो बनी रहेगी ।
अब समय आ गया है बदलाव का । फिर मोदी ही क्यों नहीं ।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
क्रूर, संवेदनशून्य, निरंकुश, घमंडी तानाशाह ही ऐसा राज्य प्रायोजित अनशन आयोजित करवा सकता है। परिणाम चाहे जो हो, 6 करोड़ तो स्वाहा हो चुके हैं। अमरीका ने करेला को नीम पर चढ़ाया है। अब आगे देखें क्या होता है?
प्रधानमंत्री की कुर्सी पर कोई भी बैठे बस हालत सुधरनी चाहिए।
दूसरे से उत्पन्न निर्वात भरने का उद्धत राजनीति।
चिंतन का प्रश्न मोदी ही नहीं प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नज़र गढाये सभी भावियों की आँख का कांटा है। परंतु प्रतिचिंतन यह भी है कि नेहरू, इन्दिरा और वाजपेयी के अलावा भी काफ़ी लोग उस कुर्सी पर बैठ चुके हैं।
पीएम इन वेटिंग आडवाणी जी पार्टी को रथयात्राओं के माध्यम से दो सीट से देश की दूसरी बडी पार्टी तक पहुंचा सकते हैं पर प्रधानमंत्री के लिए ये तरीका कारगर नहीं हो पाया…
पर मोदी जी….
उनके अनशन पर इतना ही कहना है कि वो समझदार हैं, वक्त की नजाकत को पहचानते हैं,
अनशन का प्रताप वो पिछले कुछ समय के घटनाक्रम से समझ गए हैं….
देखते हैं उनके इस सात सितारा स्टाईल के अनशन का क्या फल उन्हें मिलता है…. ?
सारगर्भित पोस्ट और नीरज की कविता, सोने में सुहागा।