कल निर्मला कपिला जी की पोस्ट पर कमेंट किया था-
वो जो दावा करते थे खुद के अंगद होने का,
हमने एक घूंट में ही उन्हें लड़खड़ाते देखा है…
इस कमेंट के बाद अचानक ही दिमाग में कुछ कुलबुलाया…जिसे नोटपैड पर उतार दिया…उसी को आपके साथ शेयर करना चाहता हूं…गीत-गज़ल-कविता मेरा डोमेन नहीं है…बस कभी-कभार बैठे-ठाले कुछ तुकबंदी हो जाती है…उसी का है ये एक नमूना…लीजिए पेश है एक नमूने का नमूना…
वो जो दावा करते थे खुद के अंगद होने का,
हमने एक घूंट में ही उन्हें लड़खड़ाते देखा है…
वो जो दावा करते थे देश की तकदीर बदलने का,
हमने गिरगिट की तरह उन्हें रंग बदलते देखा है…
वो जो दावा करते थे बड़े-बड़े फ्लाईओवर बनाने का,
हमने सीमेंट की बोरी पर उन्हें ईमान बेचते देखा है…
वो जो दावा करते थे आज का ‘द्रोणाचार्य’ होने का,
हमने ‘एकलव्य’ की अस्मत से उन्हें खेलते देखा है…
वो जो दावा करते थे देश के लिए मर-मिटने का,
हमने हज़ार रुपये पर उन्हें नो-बॉल करते देखा है…
वो जो दावा करते थे कलम से समाज में क्रांति लाने का,
हमने सौ रुपये के गिफ्ट हैंपर पर उन्हें भिड़ते देखा है…
वो जो दावा करते थे डॉक्टरी के नोबल पेशे का,
हमने बिल के लिए लाश पर उन्हें झगड़ते देखा है…
वो जो दावा करते थे श्रवण कुमार होने का,
हमने बूढ़ी मां को घर से उन्हें निकालते देखा है…
वो जो दावा करते थे हमेशा साथ जीने-मरने का,
हमने गैर की बाइक पर नकाब लगाए उन्हें देखा है…
वो जो दावा करते थे बदनाम गली के उद्धार का,
हमने कोठे की खूंटी पर पैंट टांगते उन्हें देखा है…
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मैं क्या बोलूँ अब….अपने निःशब्द कर दिया है….. बहुत ही सुंदर कविता.
सच्चाई जानते हुए भी स्तब्ध 🙁
गहरी चोट करती प्रभावी रचना
भाव चोट कर रहे हैं तबीयत से..शब्दों का क्या है..हेर फेर से मस्त हो लेंगे.
वो जो दावा करते थे बदनाम गली के उद्धार का,
हमने कोठे की खूंटी पर पैंट टांगते उन्हें देखा है…
हे राम !! खुशदीप जी आप वहा क्या कर रहे थे जी 🙂
रचना बहुत सुंदर लगी, आप ने इस झुठे समाज के चहरे से नकाव हटा दिया अपनी इस रचना के जरिये, धन्यवाद
बढ़िया प्रयास.
वो जो दावा करते थे सदाक़त का,
हमने झोटों का सरदार उन्हें देखा है…
सुन्दर भाव समेटे हैं।
dil khol diya likhne main .
ye hai sher dil wali baat.
बहुत समसामयिक रचना पेश की है आपने…समाज के नासूर बने जख्मों को कुरेद डाला है…लिखते रहें आप तो बहुत बेहतरीन लिख सकते हैं…
नीरज
बहुत साहसिक रचना ।
समाज की पोल खोल कर रख दी ।
बढ़िया शायर बन गए भाई ।
वो जो दावा करते थे बड़े-बड़े फ्लाईओवर बनाने का,
हमने सीमेंट की बोरी पर उन्हें ईमान बेचते देखा है…
वो जो दावा करते थे आज का 'द्रोणाचार्य' होने का,
हमने 'एकलव्य' की अस्मत से उन्हें खेलते देखा है…
वाह क्या बात है एक कमेन्ट से इतनी बढिया कविता बन गयी। तो रोज़ आ जाया करो मेरे ब्लाग पर एक कमेन्ट मे हमे फ्री कविता मिल जाया करेगी। कविता भी अच्छी लिखते हो। और लिखो। बहुत बहुत आशीर्वाद।
लिखा तो सही है !!
आपकी कविता में भी पत्रकारिता है .हर पंक्ति में एक रिपोर्ट 🙂
मुझे तो बहुत अच्छी लगी कविता.
बात सच्ची और सही है |
तो आप डोमेन के बहार इतना गजब ढाते है 🙂
यथार्थ पर करारा कटाक्ष किया है हर पंक्ति में ….
हकीकत उजागर कर दी अब इससे ज्यादा और कहने को क्या बचा ………………आपने तो तुकबंदी भी गज़ब की की है।
सच दिखाती हैं ये पंक्तियां
बढिया लगी
प्रणाम
जो दावा करते थे बदनाम गली के उद्धार का,
हमने कोठे की खूंटी पर पैंट टांगते उन्हें देखा है…
खूंटी पर पैंट टांगते रहिये …
4/10
टाईम पास तुकबंदी
लेकिन रचना के अन्दर की बात कचोटती है.
काश कि ये सब झूठ होता