आज की दुनिया को समझना, आज के रिश्तों को समझना…बड़ा मुश्किल है…खास कर हम जैसों के लिए जिन्होंने छोटे शहरों से आकर महानगर को ठिकाना बनाया है…बेसिकली हमारा ढांचा ऐसा बना है जो संयुक्त परिवार में पला-बढ़ा…बचपन मोहल्लों के ऐसे परिवेश में गुज़रा जहां के बुज़ुर्ग सभी बच्चों को अपना ही समझते थे, नज़र रखते थे…बच्चे भी उनके सामने हमेशा नज़रें नीची रखकर ही बात करते थे…
कितने अजीब रिश्ते हैं यहां पे,
दो पल मिलते हैं, साथ-साथ चलते हैं,
जब मोड़ आए तो बच के निकलते हैं,
कितने अजीब रिश्ते हैं यहां पे…
यहां सभी अपनी ही धुन में दीवाने हैं,
करे वही जो अपना दिल ही माने हैं
कौन किसको पूछे कौन किसको बोले,
सबके लबों पर अपने तराने हैं,
ले जाए नसीब किसी को कहां पे,
कितने अजीब रिश्ते हैं यहां पे…
ख्वाबों की ये दुनिया है ख्वाबों मे ही रहना है,
राहें ले जाएं जहां संग संग चलना है
वक्त ने हमेशा यहा नये खेल खेले,
कुछ भी हो जाए यहां बस खुश रहना है,
मंज़िल लगे करीब सबको यहां पे
कितने अजीब रिश्ते हैं यहां पे,
दो पल मिलते हैं, साथ-साथ चलते हैं,
जब मोड़ आए तो बच के निकलते हैं,
कितने अजीब रिश्ते हैं यहां पे…