अटल और मोदी का फ़र्क़…(खुशबतिया 29-03-14)

(वादे के मुताबिक खुशवंत सिंह के कॉलम की प्रेरणा से खुशबतिया का दूसरा संस्करण आपकी पेश-ए-नज़र है, अपनी राय से ज़रूर अवगत कराइएगा।)




अटल और मोदी का
फ़र्क़



बीजेपी की ओर से अभी
तक एक ही प्रधानमंत्री देश को मिले हैं- अटल बिहारी वाजपेयी। बीजेपी की तरफ़ से ये
गौरव हासिल करने वाले दूसरे शख्स नरेंद्र मोदी बन पाते हैं या नहीं, ये तो अगली 16
मई के बाद ही साफ़ होगा। हां, फिलहाल मोदी ने अपनी इस इच्छा को पूरा करने के लिए
एड़ी चोटी का ज़ोर लगा रखा है। अटल बीजेपी तो क्या गठबंधन धर्म के नाते पूरे एनडीए
को साथ लेकर चलने में विश्वास रखते थे। मोदी अपने कद के आगे पूरी बीजेपी को ही कुछ
नहीं समझते। गुजरात दंगों के बाद मोदी को राजधर्म की नसीहत देने वाले अटल की पहचान
नैसर्गिक कवि की रही है। वहीं मोदी उधार के शब्दों के साथ आज प्रचार के हर माध्यम
पर दहाड़ते दिख रहे हैं-
सौगन्ध मुझे इस मिट्टी की, मैं देश नहीं मिटने
दूंगा, मैं देश नहीं झुकने दूंगा
। प्रसून जोशी जैसे
महंगे फिल्मी गीतकार ने ज़रूर इस गीत को लिखने के लिए मोटी फीस वसूली होगी। प्रसून
की पहचान एडवरटाइज़िंग की दुनिया से भी जुड़ी है। प्रसून और पीयूष पांडे की टीम
बीजेपी के प्रचार अभियान को देख रही है। ख़ैर जिसे बीजेपी की एंथम कह कर प्रचारित
किया जा रहा है, उसमें बीजेपी का तो कोई ज़िक्र नहीं सिर्फ़ मोदी की ही हुंकार
सुनाई देती है। गीत में 20 जगह मोदी ने मैं, मेरा या मुझसे का इस्तेमाल किया है। अटल
राजनीति के लिए कभी कविता नहीं करते थे। मोदी सिर्फ अपने को चमकाने की राजनीति
के लिए दूसरे के लिखे शब्दों को अपनी आवाज़ दे रहे हैं। शायद यही फ़र्क है अटल के
अटल और मोदी के मोदी होने का…

केजरीवाल का
गेमप्लान…

अरविंद केजरीवाल का
कहना है कि वो जीतने के लिए नहीं, मोदी को हराने के लिए वाराणसी से चुनाव लड़ रहे
हैं। सवाल ये उठता है कि केजरीवाल का गेमप्लान क्या है

केजरीवाल ने जिस तरह
अब मोदी के ख़िलाफ़ ताल ठोकी है ठीक वैसे ही उन्होंने पिछले साल दिल्ली विधानसभा
चुनाव में शीला दीक्षित के साथ किया था। तब उन्होंने दिल्ली में 15 साल से राज कर
रही शीला दीक्षित को उन्हीं के गढ़ में धूल भी चटा दी। इस बार केजरीवाल को पता है
कि ना तो वाराणसी दिल्ली है और ना ही मोदी शीला दीक्षित हैं। वाराणसी में केजरीवाल
भी जानते हैं कि हार निश्चित है। फिर ये जोख़िम उन्होंने क्यों मोल लिया
? दिल्ली में केजरीवाल ने 49 दिन के राज के बाद
अपनी सरकार की बलि चढ़ाई थी तो लोकसभा चुनाव की जंग उनके दिमाग़ में थी। ऐसे वक्त
में जब उन्हें अपनी पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा होने की वजह से प्रचार के लिए देश
में जगह-जगह जाने की दरकार थी, उन्होंने खुद को वाराणसी के युद्ध में उलझा लिया।
दरअसल मोदी को सीधे चुनौती देकर केजरीवाल कुछ और ही साधना चाहते हैं। केजरीवाल का मकसद कांग्रेस
को हाशिए पर ले जाकर अपनी पार्टी की लकीर को उससे बड़ा करना है। केजरीवाल देश को,
खास तौर पर मुसलमानों को संदेश देना चाहते हैं कि मोदी को ज़ोरदार टक्कर देने का
माद्दा उन्हीं में है, कांग्रेस में नहीं। केजरीवाल की कोशिश यही है कि मोदी के
सबसे बड़े विरोधी के तौर पर उन्हें देखा जाए, कांग्रेस को नहीं। केजरीवाल की ये
रणनीति तो ठीक लेकिन उनकी अब तक कर्मभूमि रही दिल्ली में जो ताज़ा सियासी हवा बह
रही है, वो उनकी परेशानियों का नज़ला बढ़ाने वाली है। एक न्यूज़ चैनल के सर्वेक्षण
के मुताबिक दिल्ली विधानसभा चुनाव के मुकाबले कांग्रेस ने तेज़ी से अपनी खोई हुई
ज़मीन को दोबारा हासिल किया है। ऐसे में केजरीवाल के लिए कहीं ये कहावत सही ना
साबित हो जाए…चौबे जी छब्बे जी बनने चले थे और दूबे भी नहीं रह गए।

बेचारी नगमा…

बॉलीवुड, साउथ और
भोजपुरी सिनेमा में खासा नाम (
?) कमाने वाली
अभिनेत्री नग़मा इन दिनों परेशान हैं। दस साल तक कांग्रेस के प्रचार के लिए देश भर
में धूल फांकने वाली नगमा को आखिर उनकी तपस्या का इनाम मिला। नगमा को कांग्रेस ने
मेरठ-हापुड़ लोकसभा सीट से अपना प्रत्याशी बनाया है। नगमा प्रचार के लिए जहां जाती
है, लोगों का अच्छा खासा मज़मा जुट जाता है। नगमा का खुद का कहना है कि उन्हें
नहीं पता कि उनके चारों ओर क्या हो रहा है। यानि उनके प्रचार की अभियान के लिए
पार्टी का कोई बड़ा नेता उनके साथ मौजूद नहीं है। नगमा गुरुवार रात को मेरठ के जली
कोठी क्षेत्र में प्रचार के लिए गई थीं। वहां उन्हें देखने वाली भीड़ ऐसी बेक़ाबू
हुई कि नगमा को एक युवक को थप्पड़ भी जड़ना पड़ा। मुश्किल से सुरक्षाकर्मियों ने
नगमा को भीड़ से निकाला। 22 मार्च को हापुड़ में भी नगमा को रोड-शो के दौरान अप्रिय
स्थिति का सामना करना पड़ा था। हापुड़ के कांग्रेस विधायक गजराज सिंह उस वक्त नगमा
के एक कान पर हाथ रखकर अपनी ओर खींचते हुए नज़र आए थे। न्यूज़ चैनल्स पर जारी
तस्वीरों में नगमा गजराज सिंह का हाथ झटकते हुए साफ़ नज़र आईं। हालांकि बाद में
गजराज सिंह की ओर से सफ़ाई दी गई कि नगमा उनकी बेटी के समान हैं और उनकी कोई ग़लत
मंशा नहीं थी। नगमा को 2012 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान भी बदसलूकी
का सामना करना पड़ा था। तब बिजनौर सीट से कांग्रेस प्रत्याशी रहे हुसैन अहमद
अंसारी ने तो हद कर दी थी। प्रचार के लिए तब नगमा मंच पर पहुंची थीं तो कांग्रेस
प्रत्याशी ने माला पहनाते हुए उनके कंधे पर हाथ रखने की कोशिश की। नगमा के हाथ
झटकने पर भी आशिक मिज़ाज प्रत्याशी नहीं रुका। सारी मर्यादा ताक पर रखते हुए उसने
नगमा के लिए ये तुकबंदी भी सुना डाली-
कौन सा गम जो ये हाल
बना रखा है, ना मेकअप है ना बालों को सजा रखा है, ख़ामोखां छेड़ती रहती हैं
रुख़सारों को
।” ये सुनकर नगमा ने कहा कि क्या बकवास कर रहे हो? इस पर भी कांग्रेस प्रत्याशी नहीं चेता।फिर बोला वो बकवास नहीं कर रहा। आख़िरकार
नगमा गुस्से में पैर पटकते हुए मंच छोड़ कर चली गई थीं। बेचारी नगमा को विरोधियों
से ज़्यादा उनकी पार्टी वालों ने ही परेशान कर रखा है।

स्लॉग ओवर

मक्खन उदास बैठा था।
उसके दोस्त ढक्कन ने उदास होने का कारण पूछा। 
मक्खन ने कहा- “यार वो कल
भारत-पाकिस्तान के क्रिकेट मैच में 800 रुपये का नुकसान हो गया।” 
ढक्कन- “क्या शर्त
लगाई थी?” 
मक्खन- “हां, भारत की जीत पर मैंने 500 रुपये की शर्त लगाई थी, लेकिन भारत
हार गया।” 
ढक्कन- “फिर 800 रुपये का नुकसान कैसे हो गया?” 
मक्खन- “यार, वो…300 रुपये हाईलाइट्स पर भी लगाए थे।” 

(Contributed by Ainit Kachnt, Washington DC)


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