लौट आईं सुनीता विलियम्स

स्पेस मे 9 महीने बिताने के बाद सुनीता विलियम्स की वापसी

19 मार्च तड़के 3.27 पर समुद्र में लैंडिंग पर डॉलफिन ने किया वेलकम

धरती पर सामान्य होने में कम से कम 45 दिन का लगता है वक़्त
-खुशदीप सहगल
नई दिल्ली (19 मार्च 2025)|
लौट आईं सुनीता विलियम्स. भारतीय समय के मुताबिक 19 मार्च तड़के 3 बजकर 27 मिनट पर एस्ट्रोनॉट्स सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर के कैप्सूल ने पैराशूट्स के साथ फ्लोरिडा के समुद्र में स्पलैश डाउन किया. ठीक उसी वक्त कुछ डॉलफिन्स ने इन एस्ट्रोनॉट्स का स्वागत किया. नासा टीम ने हैच को खोल कर एस्ट्रोनॉट्स को बाहर निकाला. सुनीता विलियम्स ने थम्स अप का साइन करने के साथ हाथ हिलाकर अभिवादन किया.
सुनीता विलियम्स ने धरती पर लौटने के बाद थम्स अप कर अभिवादन किया (फोटो-नासा)
व्हाइट हाउस की ओर से एक बयान जारी कर सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर की धरती पर वापसी का स्वागत किया है. साथ ही कहा है कि दोनों एस्ट्रोनॉट्स को धरती पर लाने का जो राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प ने वादा किया था, वो पूरा किया.सुनीता और बुच की इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में 286 दिन बिताने के बाद धरती पर वापसी हुई है. बता दें कि दोनों एस्ट्रोनॉट्स आठ दिन के मिशन पर 5 जून 2024 को ISS के लिए धरती से रवाना हुए थे.
मंगलवार 18 मार्च को भारतीय समय के अनुसार रात सवा आठ बजे सुनीता और बुच को धरती पर वापस लाने का मिशन क्रू ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट के हैच को सील करने के साथ शुरू हुआ. इसके दो घंटे बाद भारतीय समयानुसार रात सवा दस बजे स्पेस क्राफ्ट का आईएसएस से अनडॉकिंग का प्रोसेस शुरू हुई. धरती की ओर वापसी की यात्रा 19 मार्च को भारतीय समय के मुताबिक तड़के सवा दो बजे शुरू हुई. स्पेसक्राफ्ट ने धरती की ऑरबिट में 19 मार्च को तड़के दो बजकर 41 मिनट पर प्रवेश किया. फिर फ्लोरिडा के कोस्ट के पानी में 19 मार्च को भारतीय समय के मुताबिक तड़के 3 बजकर 27 मिनट पर लैंडिंग हुई. सुनीता विलियम्स और बुच विलमोर को फिर मेडिकल चेकअप के लिए ले जाया गया.
बुच विल्मोर और सुनीता विलियम्स
धरती पर सुरक्षित वापसी के बाद भी अंतरिक्ष यात्रियों को नॉर्मल होने में कम से कम 45 दिन का वक्त लगता है. कभी कभी ये वक्त एक साल तक का भी हो सकता है. इसे ऐसे समझिए धरती पर ग्रैविटी की तुलना में अंतरिक्ष में ग्रैविटी शून्य या बहुत कम होती है जिसे माइक्रोग्रैविटी कहा जाता है. जो जो बदलाव आ सकते हैं, उनमें धरती पर चलना भूल जाना भी शामिल है.
धरती पर चलना भूल जाना…
दरअसल अंतरिक्ष में ग्रैविटी न होने की वजह से मांसपेशियों को काम नहीं करना पड़ता. वहां एस्ट्रोनॉट्स एक तरह से उड़ते या हवा में तैरते जैसे दिखते हैं. ऐसे में लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहने से मांसपेशियां कमज़ोर हो जाती हैं जिसे मस्कुलर वीकनेस भी कहा जाता है. बोन डेनसिंटी एक फीसदी कम हो जाती है. इससे पैर, पीठ और मांसपेशियों पर ज्यादा असर होता है. ऐसे में अंतरिक्ष से लौटने के बाद लंबे समय तक धरती पर चलने में परेशानी होती है. अंतरिक्ष यात्री स्कॉट केली को शरीर की ताकत बढ़ाने के लिए फिजिकल थेरेपी लेनी पड़ी थी.
शरीर के संतुलन में परेशानी…
हमारे कानों और मस्तिष्क में एक वेस्टीबुलर सिस्टम होता है. ये हमारे शरीर का बैलेंस बनाए रखने में मदद करता है. अंतरिक्ष में ग्रैविटी न होने की वजह से ये सिस्टम ठीक से काम नहीं करता. 21 सितंबर 2006 को अमेरिकी एस्ट्रोनॉट हेडेमेरी सेटफानीशिन पाइपर शटर अटलांटिस मिशन के तहत 12 दिन अंतरिक्ष में रह कर धरती पर लौटीं. स्वागत समारोह में बोलना शुरू करते ही हेडेमेरी के पैर लड़खड़ाने लगे और वो गिर पड़ीं. धरती पर लौटने में कुछ दिन तक खड़ा होने, संतुलन बनाने, और शरीर के विभिन्न अंगों जैसे आंख, हाथ, पैर में समन्वय बनाने में समस्या आती है. यही वजह है खड़े होने में परेशानी होती है.
चीज़ें हवा में ऐसे ही छोड़ देना…
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में कोई एस्ट्रोनॉट चीज़ों को ऐसे ही छोड़ देता है तो वो हवा में तैरती रहती हैं. धरती पर लौटने के बाद भी ये आदत एकदम से नहीं जाती. नासा के टॉम मार्शबर्न ने एक इंटरव्यू में अनुभव साझा करते हुए वाटर बोटल और पैन को हवा में छोड़ दिया. तब उन्हें याद आया कि वो धरती पर हैं.
आंखों की समस्या…
अंतरिक्ष में किसी एस्ट्रोनॉट के आंसू भी आते हैं तो वो गिरते नहीं, तैरते रहते हैं. स्पेस में ज़ीरो ग्रैविटी की वजह शरीर का लिक्विड हिस्सा सिर की ओर बढ़ता है जिससे आंखों की पीछे की नसों पर दबाव पड़ता है. इसे स्पेसफ्लाइट एसोसिएटेड न्यूरो ओकुलर सिंड्रोम या सांस कहा जाता है. कैनेडा के एस्ट्रोनॉट क्रिस हैडफील्ड को अंतरिक्ष में दोनों आंखों में समस्या हुईं तो उन्हें लगा कि कहीं हमेशा के लिए ही उन्हें दिखना न बंद हो जाए. धरती पर लौटने पर एस्ट्रोनॉट का शरीर एडजस्ट करता है तो आंखों पर सीधा असर पड़ता है. चश्मा लगाने की जरूरत भी महसूस हो सकती है.
इनके अलावा अंतरिक्ष यात्रियों को इम्यून सिस्टम कमज़ोर होना, डीएनए में बदलाव, कार्डियोवैस्कुलर प्रॉब्लम, मानसिक बीमारियों जैसी चुनौतियों का सामना कर पड़ सकता है.
अब सुनीता विलियम्स के बारे में थोड़ा जाना जाए. सुनीता विलियम्स का जन्म 19 सितंबर 1965 को यूक्लिड, ओहियो, अमेरिका में हुआ.
सुनीता विलियम्स के बचपन की तस्वीर (फोटो-फाइल)
उनके पिता दिवंतग डॉ. दीपक पांड्या भारतीय मूल के थे और उनकी मां बोनी पांड्या स्लोवाक मूल की हैं. सुनीता की शादी ज्यूडिशियल सिक्योरिटी डिविजन के चीफ इंस्पेक्टर, मार्शल और हेलीकाप्टर पायलट माइकल जे विलियम्स से हुई.
सुनीता विलियम्स अपने पति माइकल जे विलियम्स के साथ (फोटो- फाइल)
सुनीता ने 1983 में Massachusetts के Needham High School से पढ़ाई पूरी की. इसके बाद, 1987 में उन्होंने United States Naval Academy से physics में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की। US Navy में शामिल होने के बाद सुनीता ने 1995 में Florida Institute of Technology से इंजीनियरिंग मैनेजमेंट में मास्टर डिग्री हासिल की. सुनीता ने जून 1998 में नासा ज्वाइन किया लंबी ट्रेनिंग के बाद, दिसंबर 2006 में उन्होंने अपने पहले अंतरिक्ष मिशन पर अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) की यात्रा की. 2012 में सुनीता दोबारा अंतरिक्ष में गई. अपने इन अंतरिक्ष मिशन के दौरान, सुनीता ने कई अनोखे रिकॉर्ड बनाए. उन्होंने अंतरिक्ष में रहते हुए ट्रेडमिल पर दौड़कर बोस्टन मैराथन में भाग लिया, जो एक अनोखी उपलब्धि थी। उन्होंने 7 बार स्पेसवॉक किया और 50 घंटे से अधिक समय अंतरिक्ष में चहलकदमी की. यह रिकॉर्ड आज भी उनके नाम दर्ज है. अपने शानदार करियर के लिए उन्हें कई प्रतिष्ठित सम्मान और पुरूस्कार मिले. उन्हें नासा स्पेस फ्लाइट मेडल और नौसेना प्रशस्ति पदक जैसे पुरस्कारों से नवाजा गया. भारत सरकार ने 2008 में सुनीता विलियम्स को “पद्म भूषण” पुरस्कार देकर सम्मानित किया.
इस स्टोरी का वीडियो यहां देखिए-

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