हम क्लोरोमिंट क्यो खाते हैं..ये विज्ञापन आपने अक्सर टीवी पर देखा होगा..जब ये सवाल पूछा जाता है तो एक ही जवाब आता है- दोबारा मत पूछना…सतिंदरजी की ये टिप्पणी कल जी के अवधिया साहब के ब्लॉग धान के देश में- उस लेख के जवाब में छपी है जिसमें उन्होंने लिखा था कि …हिंदी ब्लोगिंग- जो पेज पाया ही नहीं गया, उसे भी तीन लोगों ने पसंद किया…दरअसल अवधियाजी जिस पेज का ज़िक्र कर रहे थे, वो मेरे ही पोस्ट- नेहरू और पामेला माउंटबेटन…के बारे में था. इस पर कुछ सुधी ब्लॉगर्स ने अवधियाजी के ब्लॉग पर दी गई टिप्पणियों में चिंता भी व्यक्त थी…अजय कुमार झा जी ने बड़ा रोचक कॉमेंट किया था कि पोस्ट एक बार नेहरू ने पसंद किया होगा और एक बार लेडी माउंटबेटन ने, बस तीसरे का पता चलते ही अवधिया जी की समस्या का समाधान हो जाएगा…पोस्ट मेरा था, इसीलिए मैंने 30 अगस्त को रात 11.45 पर अवधिया जी के पोस्ट पर जाकर सारी स्थिति स्पष्ट कर दी थी…सभी ब्लॉगर्स बंधु के सामने रिकॉर्ड साफ रखने के लिए मैंने कैसे स्थिति स्पष्ट की थी, उसे जस की तस यहां रिपीट कर रहा हूं-
अवधिया जी, पहले तो मैं आपकी विद्वता और महानता दोनों को नमन करता हूं. नेहरू और पामेला माउंटबेटन लेख मैंने लिखा था, इसलिए आपकी जिज्ञासा को शांत करना भी मेरा ही पहला कर्तव्य बनता है. दरअसल ये लेख मैंने पोस्ट कर दिया था. लेकिन एक घंटे बाद मैंने दोबारा इसे देखा तो मुझे नेहरू और एडविना माउंटबेटन नजदीकी के किस्से तो आपने गाहे-बगाहे वाली पंक्ति से की गायब दिखा. मैंने लेख को संपादित करने का फैसला किया. मैंने जब लेख को दुरूस्त करना शुरू किया तब तक उसे तीन पसंद मिल चुकी थी और कई ब्लॉगर बंधु उसे पढ़ भी चुके थे. मुझे ब्लॉगिंग की दुनिया में जुम्मा-जुम्मा आए दो हफ्ते ही हुए हैं. इसलिए पूरा नौसिखिया ठहरा. संपादन की कोशिश की तो पूरा लेख ही ब्लॉग से हट गया. तब तक एक ब्लॉगर फौजिया रियाज की टिप्पणी भी लेख पर आ चुकी थी. वो टिप्पणी भी हट गई. लेख को दुरूस्त करने के बाद मुझे नए सिरे से पोस्ट करना पड़ा. आपने देखा होगा कि अधिक पसंद किए जाने वाली पोस्ट में नेहरू और माउंटबेटन दो बार दिख रहा था. जैसा आपने खुद देखा कि एक पोस्ट खुलती थी और एक पोस्ट डिलीट हो जाने के कारण नहीं खुलती थी. मुझे टिप्पणी हटने के लिए फौजियाजी को इ-मेल कर खेद भी जताना पड़ा. ये उनकी सदाशयता है कि उन्होंने नई पोस्ट पर दोबारा भी टिप्पणी भेज दी. आशा है कि आपकी सारी शंका का निवारण हो गया होगा. बस आपसे एक ही निवेदन है अवधियाजी आप खुद ही एक छोटी सी पोस्ट लिखकर ब्लॉगर भाइयों के समक्ष स्थिति स्पष्ट कर दें.-साभार
अवधियाजी की पोस्ट पर नरेश सिंह राठौड़ जी ने भी अपनी टिप्पणी मे लिखा है कि जो पेज मिला नहीं, वो डिलीट कर दिया गया है, केवल उसका लिंक मौजूद है. जब मैंने अपनी टिप्पणी से अवधियाजी की शंकाओं का निवारण करने की कोशिश की..उसी के बाद अवधियाजी के पोस्ट पर सतिंदरजी की ये टिप्पणी आई- हम क्लोरोमिंट क्यों खाते हैं, दोबारा मत पूछना..आशा है कि अब अवधियाजी या वैसे ही शंका रखने वाले अगर कोई दूसरे सज्जन भी हैं तो उनकी शंका का निवारण हो गया होगा..अब भी कोई सवाल रहता है तो मुझसे सीधा संपर्क किया जा सकता है– sehgalkd@gmail.com
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