62 साल,चले अढाई कोस…खुशदीप

आज़ादी के बाद हमने क्या खोया और क्या पाया…आज इस पर विमर्श के लिए सिर्फ और सिर्फ कुछ सवाल रखूंगा…लेकिन उससे पहले आज हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट का उल्लेख…

अमेरिका से 45 वर्षीय वैज्ञानिक शिवा अय्यादुरै को भारत बुलाकर कांउसिंल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च में सलाहकार पद पर नियुक्त किया गया…लेकिन पांच महीने में ही शिवा की छुट्टी कर दी गई…कारण बताया गया है कि शिवा को नौकरी पर रखना बहुत महंगा साबित हो रहा था…शिवा के पास मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलाजी से विज्ञान की चार डिग्रियां हैं…शिवा के नाम के साथ दुनिया का सबसे पहला ई-मेल सिस्टम विकसित करने वाली कंपनी को खड़ा करने का गौरव जुड़ा है…शिवा ने २० अक्टूबर को प्रधानमंत्री को लिखे अपने पत्र में कहा है कि मुझे सीएसआईआर नौकरी से इसलिए हटा रहा है क्योंकि मैंने अपनी पेशेवर ड्यूटी के दौरान नेतृ्त्व की खामियों के मुद्दे को निरूपित करने की कोशिश की थी…ऐसा करने के पीछे मेरा मकसद सिर्फ भारतीय विज्ञान और अभिनवता की बेहतरी था…


शिवा का उदाहरण मात्र है कि विदेशों में बसे जो भारतवंशी देश लौटकर राष्ट्र के उत्थान में हाथ बंटाना चाहते हैं, उन्हें लालफीताशाही, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद के चलते कैसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। आज देश में किसी विदेशी महारानी की नहीं, खुद अपने वोट से चुनी गई हुकूमत है…अब यहां हम किसको दोष दे…हमें अपनी खामियों का ठीकरा फोड़ने के लिेए किसी बाहर वाले के सिर की नहीं अपने खुद के सिर को ओखली में देने की ज़रूरत है….मुद्दा ऐसा है जितना चाहे लिख लो…फिर भी कम पड़ेगा…हां तो अब आता हूं मैं अपने सवालों पर…

1… क्या 62 साल बाद भी हमे टोटल आज़ादी मिल पाई है…(टोटल आज़ादी से मेरा तात्पर्य भूख, अशिक्षा, सांप्रदायिकता, भेदभाव, कुपोषण, भ्रष्टाचार…आदि आदि से छुटकारे से है)

2… गांधी ने कांग्रेस को आज़ादी के बाद खुद को सत्ता की राजनीति से न जुड़ते हुए सिर्फ समाज सेवा को अपना ध्येय बनाने की नसीहत दी थी…कांग्रेस ने क्यों नहीं सलाह मानी…नेहरू को प्रधानमंत्री बनने की इतनी ललक क्यों थी कि आंख मूंदकर लॉर्ड माउंटबेटन के बंटवारे के दस्तावेज को स्वीकार कर लिया…

3…आज़ादी के बाद आरक्षण की व्यवस्था सिर्फ दस साल के लिए रखी गई थी…क्यों इसे हर दस साल बाद बढ़ाया जाता रहा…आज एक भी राजनीतिक दल वोटों के खेल के चलते आरक्षण का खुलकर विरोध करने की हिम्मत नहीं दिखा सकता…ये नजरिया समाज को एकसार कर रहा है या और भेदभाव पैदा कर रहा है….

4…नेहरू ने गांधी के ग्राम अर्थव्यवस्था के मॉडल को दरकिनार कर औद्योगिकरण की पश्चिमी लीक को अपनाया…इससे मानव-संसाधन का विकास हुआ या आबादी देश पर बोझ बन गई…दूसरी तरफ चीन ने हाथ के काम की ताकत को पहचाना और मानव-संसाधन को अपने विकास का औजार बना लिया…धीरे-धीरे चीन इसी मॉडल को विकसित करते हुए आज ऐसी स्थिति में पंहुच गया है कि अमेरिका जैसी आर्थिक महाशक्ति भी उससे खौफ खाने लगी है.

5…क्या एक कपिल सिब्बल के कहने से देश में हर बच्चे को शिक्षा पर समान अधिकार मिल जाएगा…गांव का बच्चा शहर के बच्चे को मिलने वाली शिक्षा का मुकाबला कर सकेगा… क्यों नहीं बनाया जा सका देश में शिक्षा को बच्चों का मूलभूत अधिकार…

सवाल कई हैं…लेकिन आज विमर्श के लिए इतना ही काफी है…अब इंतज़ार है आपके बेशकीमती विचारों का…

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