26 जनवरी विशेष…गणतंत्र का ये कैसा उत्सव…खुशदीप

पिछले पांच दिनों में गणतंत्र के सफ़र के कुछ पहलुओं को आप तक पहुंचाने की कोशिश की…इस तरह की पोस्ट पर तात्कालिक सफ़लता बेशक न मिले लेकिन इनका महत्व कालजयी रहता है…नेट के ज़रिए अतीत में झांकने वालों को कुछ प्रमाणिक तथ्य मिल जाएं…बस यही मेरा उद्देश्य था…आज इस श्रृंखला की समापन किस्त आप तक पहुंचा रहा हूं…लेकिन श्रृंखला के इतिश्री होने के बाद आप को कुछ ऐसा भी बताऊंगा जो गणतंत्र का उत्सव मनाने से ठीक पहले देश में हुआ…जिसे देखकर कोई भी हिल सकता है और ये सवाल ज़ेहन में कौंधेगा कि क्या हम गणतंत्र के 61 बरसों में इतने ही परिपक्व हो पाए…लेकिन पहले अंतिम किस्त…

1997 से 2011…देश ने देखे पहले दलित, पहले साइंटिस्ट, पहली महिला राष्ट्रपति

25 जुलाई 1997 को के आर नारायणन देश के राष्ट्रपति बने। नारायणन देश के पहले और अकेले राष्ट्रपति रहे जो दलित समुदाय से सर्वोच्च पद तक पहुंचे। नारायणन को इसलिए याद किया जाएगा कि उन्होंने अपने कार्यकाल में राज्यों में अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाने की कैबिनेट की सिफारिशों पर सख्त रुख अपनाते हुए कई बार वापस किया था।

देश में 2002 में राष्ट्रपति पद के लिए हुआ चुनाव सबसे चर्चित रहा। एपीजे अब्दुल कलाम के रूप में एक साधारण परिवार में जन्मा व्यक्ति सिर्फ अपनी योग्यता के बल पर आगे बढ़ा, मिसाइल टैक्नोलाजी में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई, राजनीति से कोई जुड़ाव न होने के बावजूद देश के सर्वाच्च पद तक पहुंचने में सफल रहा।

कलाम ने राष्ट्रपति रहते हुए भी खास तौर तरीकों से पीपुल्स प्रेज़ीडेंट की पहचान बनाई।
कलाम के कार्यकाल में 2004 के आम चुनाव में भी किसी अकेली पार्टी को बहुमत नहीं मिला था। कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी और यूपीए सबसे बड़े गठबंधन के तौर पर उभरा। कलाम ने परंपरा से हटते हुए सबसे बड़े गठबंधन के नेता को नहीं, बल्कि उस नेता (सोनिया गांधी) के चुने हुए व्यक्ति यानि राज्यसभा के सदस्य डॉ मनमोहन सिंह को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया।

सांसदों के लाभ के पद की अवैधता को वैध करने करने के लिए संसद में 1959 से ही की जा रही कोशिशों को लेकर वक्त वक्त पर विवाद होता रहा है। संसद के दोनों सदनों ने लाभ के पद को लेकर संसद (अयोग्यता रोकथाम) विधेयक पारित कर राष्ट्रपति कलाम के पास भेजा तो उन्होंने 30 मई 2006 को इसे दोबारा विचार करने के लिए वापस भेज दिया। बिल को दोबारा पारित कर राष्ट्रपति के पास भेजा गया तो उन्हें इसे अपनी मंजूरी देनी पड़ी। कलाम के राष्ट्रपति रहते ही 2005 में बिहार विधानसभा चुनाव के बाद तत्कालीन राज्यपाल बूटा सिंह ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश केंद्र को भेजी थी। बूटा सिंह के मुताबिक राज्य में किसी भी पार्टी को बहुमत न मिलने की वजह से सरकार बनना मुमकिन नहीं था। केंद्र को भेजी एक और रिपोर्ट में बूटा सिंह ने कहा था कि एक खास पार्टी (नीतीश कुमार के नेतृत्व में) बहुमत के करीब पहुंच सकती है और सरकार बनाने के लिए दावेदारी कर सकती है। केंद्र की यूपीए सरकार ने विधानसभा भंग करने की सिफारिश के हक में फैसला लिया और इसकी कापी फैक्स के ज़रिए मॉस्को दौरे पर गए हुए राष्ट्रपति कलाम को भेज दी। कलाम ने फैक्स से ही राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश को अपनी मंजूरी दे दी। 23 मई 2005 को बिहार विधानसभा भंग करने की अधिसूचना जारी कर दी गई।

लेकिन बाद मे सुप्रीम कोर्ट ने बिहार विधानसभा को भंग करने के फैसले को अवैध ठहराया। राष्ट्रपति कलाम शायद सीधेपन में एक असांविधानिक अधिसूचना पर दस्तखत करने में जल्दबाज़ी से काम नहीं लेते तो शायद सुप्रीम कोर्ट के दखल देने की नौबत नहीं आती। जानकारों के मुताबिक मॉस्को से ही मंजूरी देने की बजाय कलाम को इस मुद्दे पर संविधान और कानूनविदों से सलाह लेने के बाद ही इस मुद्दे पर फैसला लेना था। ये घटना अपने आप में ही साबित करती है कि राष्ट्रपति की भूमिका निश्चित तौर पर महज़ एक रबर स्टांप तक ही सीमित नहीं होती।

मौजूदा राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचने से पहले महाराष्ट्र से सांसद और राजस्थान की राज्यपाल रह चुकी हैं। प्रतिभा पाटिल से पहले राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए शिवराज पाटिल कांग्रेस की पहली पसंद थे। लेकिन उनके नाम पर लेफ्ट ने वीटो कर दिया था। फिर सोनिया गांधी की पसंद प्रतिभा पाटिल को राष्ट्रपति के लिए उम्मीदवार बनाया गया। प्रतिभा पाटिल ने राष्ट्रपति चुनाव में कदावर नेता और पूर्व उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत को शिकस्त दी थी। 2007 में देश की पहली महिला राष्ट्रपति बनने के बाद से प्रतिभा पाटिल के सामने ऐसा कोई मौका नहीं आया, जब बड़ी सांविधानिक संकट जैसी स्थिति आई हो और फैसला राष्ट्रपति के विवेक पर आ टिका हो।

हां ये ज़रूर हुआ कि पी जे थॉमस को जिस दिन सीवीसी की शपथ राष्ट्रपति ने दिलाई, उससे पहले लोकसभा में अपोज़िशन की नेता सुषमा स्वराज ने महामहिम से मुलाकात के लिए राष्ट्रपति भवन से वक्त मांगा था…लेकिन थॉमस के शपथ लेने तक सुषमा को मुलाकात के लिए वक्त नहीं मिल पाया…इसके लिए राष्ट्रपति भवन के वाज़िब कारण हो सकते हैं…दरअसल सुषमा उस तीन कमेटी की सदस्य थीं जिसे सीवीसी के नाम पर मुहर लगानी थी…दूसरे सदस्य प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और गृह मंत्री चिदंबरम थे…थॉमस के पामोलीन आयात घोटाले में फंसे होने की वजह से सुषमा के ऐतराज़ जताने के बावजूद प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने थॉमस के नाम की सिफारिश ही राष्ट्रपति को भेजी…सुषमा इसी पर अपना विरोध राष्ट्रपति से जताना चाहती थीं…कर्नाटक में मुख्यमंत्री येदियुरप्पा और राज्यपाल हंसराज भारद्वाज के बीच जो नाटक चल रहा है, बीजेपी उस पर अपना विरोध राष्ट्रपति भवन तक ले जाना चाहती है…कर्नाटक में येदियुरप्पा सरकार संकट में आती है तो राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को अपने कार्यकाल में पहली बार कोई बड़ा फैसला लेने की स्थिति बन सकती है…
इतिश्री
अब आपको वादे के मुताबिक वो 3 तस्वीरें दिखाता हूं जो देश ने लोकतंत्र के उत्सव से ठीक पहले देखीं…

मलमाड (महाराष्ट्र)
एडिशनल कलेक्टर को ज़िंदा जलाया

महाराष्ट्र के नासिक ज़िले के मलमाड में एडीशनल कलेक्टर यशवंत सोनवणे का कसूर इतना ही ता कि वो देश का नमक खाने की वजह से देश की दौलत लूटते नहीं देख सकते थे…पानेवाड़ी ऑयल डिपो में तेल में मिलावट के खेल की जानकारी सोनवणे तक पहुंची तो उन्होंने छापा मारने की हिम्मत दिखा डाली…एक अफसर की ये जांबाज़ी भला तेल माफ़िया को कैसे बर्दाश्त होती…सोनवणे को उनकी गाड़ी में ही मौके पर ज़िंदा जला दिया गया…ये सब महाराष्ट् में हुआ जहां कांग्रेस की एनसीपी के साथ सरकार है…वही कांग्रेस जिसकी अगुवाई वाली केंद्र सरकार व्हिस्लब्लोअर्स की हिफ़ाज़त के लिए कानून लाने की बात करती है…लेकिन सोनवणे शायद भूल गए थे कि देश में व्हिस्लब्लोअर्स का हाल वही होता है जो 19 नवंबर 2005 को यूपी के लखीमपुर खीरी में इंडियन ऑयल कारपोशेन के मार्केटिंग मैनेजर एस मंजूनाथ का हुआ था…मंजूनाथ ने पेट्रोल पंप पर मिलावट पकड़ने पर कार्रवाई की हिम्मत दिखाई थी…बदले में मंजूनाथ को हमेशा के लिए मौत की नींद सुला दिया गया…अब मंजूनाथ के साथ सोनवणे का नाम भी जुड़ गया…

गाज़ियाबाद
भरे अदालत परिसर में गड़ासे से हमला

गाज़ियाबाद कोर्ट परिसर में आरुषि के पिता राजेश तलवार पर हमला करने वाला ये नौजवान कोई हार्डकोर अपराधी नहीं है…लेकिन ये दूसरा मौका है जब फाइन आर्ट्स में गोल्ड मेडलिस्ट और अहमदाबाद के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन से फिल्म एनीमेशन में पोस्ट ग्रेजुएट उत्सव शर्मा ने भरी कचहरी में किसी पर जानलेवा हमला किया…वाराणसी के रहने वाले उत्सव ने पिछले साल आठ फरवरी को पंचकूला कोर्ट परिसर के बाहर रूचिका गेहरोत्रा केस में आरोपी और हरियाणा के पूर्व डीजीपी एसपीएस राठौर पर भी धारदार हथियार से हमला किया था…उत्सव के माता-पिता दोनों ही बीएचयू में प्रोफेसर हैं…उत्सव इस बार भी इंटरनेशनल इंडिया आर्ट समिट में हिस्सा लेने के लिए दिल्ली आया था…लेकिन उसने बस से गाज़ियाबाद पहुंच कर राजेश तलवार पर हमले को अंजाम दे दिया…सवाल हमले से बड़ा ये है कि जो युवक देश में आने वाले कल की उम्मीद है, वो खुद ही कानून हाथ में लेकर अपने आज पर कुल्हाड़ी मारने पर क्यों तुल जाता है…क्या इसके लिए सिर्फ उत्सव की सनक ज़िम्मेदार है या रसूख और पैसे वालों को कानून से बच निकलने का रास्ता देने वाला सिस्टम और इनसाफ़ में होने वाली देरी भी गुनहगार है…

मेरठ
दिनदहाड़े घर पर हमला बोलकर लड़की अगवा


शहर की पॉश वैशाली कॉलोनी में 24 जनवरी को दिन निकलते ही समाजवादी छात्र सभा का पूर्व मुखिया प्रसन्नजीत गौतम 15 गुंडों के साथ एक घर पर दावा बोल देता है…ठीक फिल्मी अंदाज़ में दो गाडि़यों और पांच-छह मोटर साइकिलों पर सवार होकर…लड़की का भाई विरोध करता है तो उसे गोली मार कर बुरी तरह घायल कर दिया जाता है…लड़की को घर से बेखौफ उठाया जाता है और दनदनाते हुए हमलावर निकल जाते हैं…ये हालत तब है जब कि प्रसन्नजीत दिसंबर के पहले हफ्ते में भी लड़की के घर में घुसकर उस पर हमला कर चुका था…वारदात के दो दिन बाद भी पुलिस प्रसन्नजीत या लड़की का कोई सुराग नहीं लगा सकी है…ये सब उसी उत्तर प्रदेश में हो रहा है जहां की मुख्यमंत्री मायावती क़ानून के राज की दुहाई देते नहीं थकतीं…

स्लॉग ओवर
प्रियंका चोपड़ा के घर और दफ्तर पर आयकर विभाग ने छापे मारे हैं…अंदेशा बड़े पैमाने पर टैक्स चोरी का है…

पिछले साल यही प्रियंका चोपड़ा आयकर विभाग की एक डाक्यूमेंट्री में ब्रैंड अंबेसडर थी…उस डाक्यूमेंट्री में इन्हें लोगों से ईमानदारी से इनकम टैक्स देने की अपील करते देखा जा सकता है…प्रियंका ये भी कहती दिखती हैं कि टैक्स के पैसे से विकास के क्या क्या काम कराए जा सकते हैं..
(यकीन नहीं आता तो इस वीडियो के  काउंटर 7.32 से 7.48  पर जाकर प्रियंका की अपील को आप भी देख सकते हैं…)

अब आप ही बताइए, इसके बाद भी कुछ कहने को रह जाता है क्या…

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