क्या एम्पलाइज़ हर दिन सुबह 10 से रात 10 तक करें काम?
Matiks के को-फाउंडर मोहन कुमार की पोस्ट से छिड़ी बहस
सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया के बाद पोस्ट हटाई
-खुशदीप सहगल
नई दिल्ली (12 जुलाई 2025)|
क्या आप अपने ऑफिस में हर दिन सुबह 10 बजे से रात 10 बजे तक 12-12 घंटे काम करने के लिए खुशी-खुशी तैयार हैं, कभी-कभार इससे ज़्यादा भी, और रविवार की छुट्टी के दिन भी.
चलिए आप फिर मोहन कुमार को सुनिए. जनाब IIT गुवाहाटी से पासआउट हैं. मटिक्स के नाम से बेंगलुरु में चलने वाली मोबाइल गेमिंग एप फर्म के को-फाउंडर हैं. मोहन कुमार खुद युवा उद्यमी हैं. उन्होंने एक्स पर अपनी पोस्ट में बड़े शान के साथ बताया कि वो अपनी युवा टीम से हर दिन सुबह 10 बजे से रात 10 बजे तक यानि 12 घंटे काम कराते हैं. सोमवार से शनिवार तक. हालांकि टीम के कई सदस्य रविवार को भी लॉग इन करते हैं. टीम के हर सदस्य को सख़्ती के साथ इस वर्क शेड्यूल को मानना होता है. मोहन कुमार ने ये भी बताया कि रात दस बजे के बाद भी टीम मेंबर्स काम करते दिख जाते हैं. हालांकि न जाने क्यों मोहन कुमार ने इस पोस्ट को बाद में डिलीट कर दिया.
हिन्दुस्तान टाइम्स डॉट कॉम से बातचीत में मोहन कुमार ने कहा- “लोग हमारी आलोचना करेंगे. लेकिन वास्तविकता ये है कि अगर हमें भारत में निर्मित पहला ग्लोबल प्रोडक्ट बनाना है. हम सभी को जुटना होगा. हमें जॉब माइंडसेट से निकल कर बिल्डिंग माइंडसेट की ओर जाना होगा. हम अपनी टीम को एम्पलाइज़ की तरह नहीं देखते बल्कि को-फाउंडर्स की तरह देखते हैं. हम पे-चेक्स देते रहें इसके लिए कंपनी नहीं बना रहे बल्कि हम ऐसा कुछ बना रहे हैं जिस पर भारत ग्लोबल स्टेज पर गर्व कर सके. निश्चित रूप से हर कोई इस सहमत नहीं होगा, हमें इसे लेकर कोई समस्या नहीं है, लेकिन वो जो कर रहे हैं, उनको ये यात्रा जॉब की तरह नहीं लगती.”
मोहन कुमार की इस पोस्ट पर सोशल मीडिया पर तमाम तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं. एक यूज़र ने लिखा- पूरी तरह असहमत, कोई भी हफ्ते में 40-50 घंटे के बाद पीक बैंडविथ बरकरार नहीं रख सकता. इसके बाद जो भी है वो बस ड्रैग है.”
मोहन कुमार की ओर से हर एम्पलाई को को-फाउंडर बताने पर सोशल मीडिया पर एक यूज़र ने तंज कसा कि कृपया अपना इक्विटी स्ट्रक्चर बताएं. उसके बाद हम माइंडसेट को ज़्यादा अच्छी तरह से समझ सकेंगे.” एक और यूज़र ने लिखा है- “आप अपने सारे एम्पलाइज़ को को-फाउंडर दर्जा देंगे.” चौथे यूज़र ने लिखा, “मैं सच में उम्मीद करता हूं कि ये गुस्सा दिलाने वाला चारा है.”
मोहन कुमार ने बेशक हर दिन 12 घंटे काम वाली पोस्ट हटा दी लेकिन अपनी बात के समर्थन में कुछ और पोस्ट डालीं. इनमें ऑफिस का लचीला, आरामदायक माहौल दिखाया. इसमें वर्कप्लेस में बेड भी दिखाया. एक तस्वीर के साथ उन्होंने लिखा- देखिए हम टेन टू टेन सेटअप में किस तरह काम करते हैं, मटिक्स का कॉन्फ्रेंस रूम और शनिवार की रात.”
मोहन कुमार के मुताबिक उनकी टीम में 12 फुल टाइम मेंबर्स और कुछ इंटर्न्स हैं. मोहन कुमार ने एचटी डॉट कॉम को बताया- हममें से अधिकतर ऑफिस से ही काम करते हैं, इसलिए नहीं कि ये अनिवार्य है, बल्कि इसलिए कि जिस तरह का मटिक्स को बनाने के लिए मोमेंटम चाहिए वो दूर रह कर नहीं दिया जा सकता.”
मोहन कुमार ने कहा- “हमारी टीम की खासियत है कि इसमें सभी 25 साल से नीचे की उम्र के हैं. हम सब कॉलेज से फ्रेश निकले हैं. स्क्रैच से हम अपना करियर और लाइफ बना रहे हैं. हम टिपिकल एम्पलाइज़ की तरह काम नहीं करते. कभी हम लंबे घंटों तक काम करते रहते हैं; किसी दिन बस फन यानि हंसी मजाक ही चलता है. देर रात को ब्रेन स्टॉर्मिंग सेशंस होते हैं, इससे ऑफिस वर्क का नहीं बल्कि कॉलेज ग्रुप स्टडीज़ जैसा ही फील आता है.”
मोहन कुमार ने ये भी सफ़ाई दी कि उनकी पोस्ट से ये आभास हुआ कि एम्पलाइज़ को 12 घंटे वर्क करने के लिए फोर्स किया जाता है. मोहन कुमार ने कहा, “किसी से भी ऐसा नहीं कहा जाता. लेकिन हममें से अधिकतर ऐसा करते हैं, रविवार को भी आते हैं. इसलिए नहीं कि हमें ऐसा करना है बल्कि इसलिए कि हम करना चाहते हैं. यही अंतर है, जब आप कुछ बिल्ड कर रहे हो तो उसकी केयर करते हो.”
अब देशनामा के सवाल-
मोहन कुमार आपने जो भी बातें कहीं उनमें जोश, युवा स्फूर्ति नज़र आती है. लेकिन को-फाउंडर वाली बात का खुलासा तो तभी होगा जब आप ये बताएं कि कमाई का शेयर आपके कथित को-फाउंडर्स यानि एम्पलाइज़ में कैसे बंटता है. आप मटिक्स के बिल्ड अप की भी बहुत बात कर रहे हैं. ईश्वर करें जैसी आपकी इच्छा है वो पूरी हो यानि मटिक्स भारत का पहला ग्लोबल ब्रैंड बने जिस पर गर्व किया जा सके. लेकिन ये भी साफ़ किया जाए कि जैसे जैसे आपकी कंपनी ग्रो करेगी, आपके एम्पलाइज़ का भी कमाई में वैसे वैसे ही हिस्सा बढ़ता जाएगा, वो बस सैलरी या हर साल होने वाले 8-10 परसेंट इनक्रिमेंट पर ही निर्भर ना रह जाएं. आखिर वो भी को-फाउंडर जो ठहरे. आपका ब्रैंड विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनाता है, एक वक्त में कोई मल्टी नेशनल जाएंट आकर उसे खरीद लेता है, तो क्या जिस रकम में कंपनी बेची जाएगी, उसमें भी को-फाउंडर्स यानि एम्पलाइज़ को वैसा ही हिस्सा मिलेगा. जगजाहिर है जब किसी कंपनी की नींव रखी जाती है तो उसके लिए कड़ा पसीना बहाना पड़ता है. मोहन कुमार कहीं को-फाउंडर का शोशा छोड़कर एम्पलाइज़ से 12-12 घंटे हर दिन काम कराने की आपकी मंशा तो नहीं है.
आपने वो गाना तो सुना ही होगा- “मतलब निकल गया तो पहचानते ही नहीं.” ये गाना अपने एम्पलाइज़ यानि को-फाउंडर्स को कभी गाने के लिए मजबूर नहीं कर देना.
मोहन कुमार की बातों ने मुझे लार्सन एंड टुब्रो कंपनी के चेयरमैन एस एन सुब्रह्मण्यन और इंफोसिस फाउंडर नारायणमूर्ति के बयान भी याद दिला दिए. सुब्रह्मण्यन ने कहा था कि वो चाहते हैं एल एंड टी के कर्मचारी हफ्ते में 90 घंटे तक काम करें. कंपनी के एक इंट्रैक्शन सेशन में अपने इस विचार को रखते हुए सुब्रह्मण्यन ने ये भी कहा था- “मुझे अफ़सोस है कि मैं आप लोगों से संडे को काम नहीं करा पा रहा हूं, आप लोग घर बैठकर क्या करते हो. आख़िर घर बैठ कर कितनी देर तक पत्नी को निहारोगे. इससे अच्छा है ऑफिस आओ और काम करो. आप लोगों को 90 घंटे तक काम करना चाहिए.”
कुछ अर्सा पहले इंफोसिस के फाउंडर चेयरमैन नारायणमूर्ति ने भी चीन का हवाला देते हुए भारत में हर हफ्ते 70 घंटे काम की वकालत की थी. तब भी देश में वर्क एंड लाइफ बैलेंस पर जमकर बहस हुई थी. नारायणमूर्ति का अब भी कहना है कि वो अपनी इस राय पर कायम हैं और मरते दम तक इसे नहीं छोड़ेंगे. नवंबर 2024 में सीएनबीसी ग्लोबल लीडरशिप समिट में कहा था कि 1986 में भारत में सिक्स डे ए वीक की जगह फाइव डे ए वीक शुरू हुआ था तो वो निराश हुए थे. नारायणमूर्ति ने कहा था कि भारत के विकास के लिए त्याग की ज़रूरत है न कि आराम की.
गाना याद कीजिए- सुबह ओ शाम काम ही काम, क्यों नहीं लेते पिया आराम का नाम…
इस स्टोरी का वीडियो यहां देखिए-