अन्ना, अंधभक्ति और राजनीति…खुशदीप

अन्ना के अन्दर लोगों ने असली गांधी देख लिया है, उनका निष्पाप जीवन दधीचि की याद दिलाता है जिसने अपनी हड्डियां, राक्षसों से किये जाने वाले युद्ध के लिये वज्र बनाने के लिये दान कर दीं…


यह तौल तौल कर बोलना,और हर बोल के राजनैतिक परिणाम सोच कर बोलना, उस मानसिकता का प्रतीक है जो बिके हुये मीडिया के जरिये माहौल बनाती बिगाड़ती है…


सवाल सिर्फ एक है आप अन्ना के साथ है या नहीं ! हमें गर्व है कि हम अन्ना के अन्धभक्त हैं…

ये तीन पंक्तियां कल अपनी पोस्ट पर सम्वेदना के स्वर की दो टिप्पणियों से ली हैं…सोलह आने सही बात है कि देश के हर इनसान को अब सोचना होगा कि वो कहां खड़ा है…किसके साथ चलना चाहता है…हर पांच साल में धोखा देने वाले राजनेताओं के साथ या 73 साल के नौजवान ख़ून अन्ना के साथ…अन्ना पर अंधभक्ति रखना सबूत है कि देश की जनता कितनी त्रस्त हो चुकी है…किस तरह का लावा उसके अंदर घर कर चुका है…

ये जोश अच्छी बात है…लेकिन सिर्फ जोश दिखाने से ही काम नहीं बनता…जोश के साथ होश भी बहुत ज़रूरी है…हमें देखना चाहिए कि हमारे मुकाबिल कौन है…वो राजनीति जिसकी कोई नीति ही नहीं…हर तौल-मौल कर बोलने वाला ज़रूरी नहीं कि राजनीतिक परिणाम सोच कर ही बोलता हो…आपको सामने वाले खेमे की हर चाल का पूर्वानुमान लगाना आना चाहिए…तभी तो उस चाल का तोड़ आप ढूंढ पाएंगे…लोहे को लोहा ही काटता है…जंग मुश्किल है…इसे सिर्फ बाजुओं के दम पर ही नहीं जीता जा सकता…दिमाग का खम दिखाना भी ज़रूरी है…

ये अच्छी बात है कि अन्ना के पास अरविंद केजरीवाल, जस्टिस संतोष हेगड़े, शांतिभूषण, प्रशांत भूषण जैसे थिंकटैंक मौजूद हैं…ये भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ाई को तार्किक अंजाम तक पहुंचाने के लिए पूरी तरह काबिल हैं…बस इन्हें सियासत की शतरंज पर सामने से चले जाने वाले हर मोहरे की काट पहले से ही सोच कर रखनी होगी…

अब यहां एक किस्से के ज़रिए बताना चाहूंगा कि राजनीति कितनी ख़तरनाक शह होती है…नीचे लिखी एक एक लाइन ज़रा गौर से पढ़िएगा…

जॉर्ज बुश अमेरिका के राष्ट्रपति थे तो एक स्कूल में गए…बच्चों से अनौपचारिक परिचय के बाद बुश ने कहा कि अगर वो कोई सवाल पूछना चाहते हैं तो पूछ सकते हैं…


एक बच्चे ने अपना हाथ उठाया और सवाल पूछने के लिए खड़ा हो गया…


बुश ने बच्चे से कहा… पहले अपना नाम बताओ…


बच्चा… जॉन…


बुश…सवाल क्या है…


जॉन…सर, मेरे तीन सवाल हैं…


1) अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र की अनुमति के बिना इराक पर हमला क्यों किया…


2) ओसामा कहां है…


3) अमेरिका पाकिस्तान पर इतना फ़िदा क्यों है…इतनी मदद क्यों करता है…


बुश… तुम बुद्धिमान छात्र हो, जॉन…(तभी स्कूल की आधी छुट्टी की घंटी बज जाती है)…ओह, हम इंटरवल के बाद बातचीत जारी रखेंगे…


आधी छुट्टी के बाद…


बुश…हां तो बच्चों हम कहां थे…कोई किसी तरह का सवाल पूछना चाहता है…


पीटर अपना हाथ खड़ा करता है..


बुश…बच्चे, नाम क्या है…


पीटर…सर, मेरे पांच सवाल हैं…


1) अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र की अनुमति के बिना इराक पर हमला क्यों किया ?


2) ओसामा कहां है ?


3) अमेरिका पाकिस्तान पर इतना फ़िदा क्यों है…इतनी मदद क्यों करता है ?


4) आधी छुट्टी की घंटी निर्धारित वक्त से 20 मिनट पहले ही कैसे बज गई ?

5) मेरा दोस्त जॉन कहां हैं ?

यही राजनीति है…!!

अब अन्ना को ज़ेहन में रखकर ये गाना सुनिए…इसका एक-एक बोल अन्ना की शख्सियत पर पूरी तरह फिट बैठता है…

निर्बल से लड़ाई बलवान की…
ये कहानी है दिए की और तूफ़ान की…

error

Enjoy this blog? Please spread the word :)