वर्ल्ड रेसलिंग इंटरटेंमेंट (WWE) की कुश्तियां देखने में बड़ी रोमांचकारी होती हैं…एक से एक तगड़ा पहलवान…ऐसे खूंखार कि किसी को भी लमलेट कर देने के लिए सिर पर ख़ून सवार…इनकी मारकाट देखकर कोई भी दहल जाए…लेकिन यही तो इनका खेल है…इसी के पीछे तो इनकी कमाई का शास्त्र छुपा है…झूठ की लड़ाई ऐसी सफ़ाई से लड़ो कि सच भी उलटे पैर सरपट दौड़ता नज़र आए…
बचपन में एकाध बार मुझे भी मेरठ के स्पोर्ट्स स्टेडियम में फ्री-स्टाईल कुश्तियां देखने का मौका मिला था…किंगकांग जैसा कोई विदेश से आया सूरमा…और उसे चुनौती देते दारा सिंह और उनके छोटे भाई रंधावा जैसे खालिस देसी पहलवान…पहले किंगकांग दहाड़ता…भारत में है कोई माई का लाल जो उससे भिड़ने की हिम्मत दिखा सके…रंधावा की ओर से इस चुनौती को कबूल किया जाता…लेकिन एरिना पर पूरा दमखम दिखाने के बावजूद रंधावा मात खा जाते….फिर भाई की हार का बदला लेने के लिए अगले दिन दारा सिंह मैदान में आते..इस गर्जना के साथ कि किंगकांग का ऐसा भुर्ता बनाएंगे कि दोबारा कभी भारत का रुख करने की ज़ुर्रत नहीं करेगा…फिर शुरू होता महासंग्राम…दारा सिंह किंगकांग को धूल चटा कर ही दम लेते…अब इस नूराकुश्ती से जीतने-हारने वाले पहलवान और आयोजक तो मालामाल हो जाते…और दर्शकों को ठगे जाने के बावजूद कोई मलाल नहीं होता…
सोच रहा हूं होली पर ब्लॉगरों का ऐसा ही कोई दंगल क्यों न करा दिया जाए…
BLOGGING OF THE BLOGGERS, BY THE BLOGGERS, FOR THE BLOGGERS...यानि ब्लॉगर ही लेखक, ब्लॉगर ही पाठक और ब्लॉगर ही टिप्पणीदाता…पिछले कुछ अरसे से ब्लॉगिंग के साथ एक और आयाम भी जुड़ता दिख रहा है…ब्लॉगरों का साहित्यकार बनना...ब्लॉगर की लिखी किताबें, ब्लॉगर के लिए लिखी किताबें और ब्लॉगर की ओर से ही प्रकाशित किताबें..अब भईया हिंदी ब्लॉगिंग में तीस चालीस हज़ार ब्लॉगर (प्रमाणित कोई आंकड़ा नहीं) होने की बात तो की ही जाती है…यानि किताबें बेचने के लिए अच्छा खासा मार्केट तो यहीं मौजूद हैं…अब सवाल ये कि अपनी किताबों को प्रमोट कैसे किया जाए…
हर कोई तो चेतन भगत है नहीं जो अपनी हर नई किताब को मार्केट करने के लिए कोई नायाब फंडा ढूंढ लाए…आजकल हर फिल्म की रिलीज से पहले भी बड़े से बड़े सितारों को प्रमोशन के लिए दुनिया भर की ख़ाक छानते देखा जा सकता है…अभी सैफ़ अली ख़ान पर मुंबई के ताज़ होटल में एनआरआई इकबाल शर्मा की धुनाई करने का आरोप लगा तो ऐसा कहने वालों की भी कमी नहीं रही कि ये सारा ड्रामा सैफ़ की आने वाली फिल्म एजेंट विनोद को प्रमोट करने के लिए किया गया…मैं तो कहता हूं ब्लॉगर बिरादरी को भी खुद को प्रमोट करने के लिए मार्केटिंग के ऐसे ही फंडे अपनाने चाहिए…
बात खत्म अलबेला खत्री जी के सुनाए एक किस्से से करूंगा…मुझे ठीक तरह से तो याद नहीं…उन्होंने बताया था कि किसी शहर में दो भाई थे…दोनों की दुकानें साथ-साथ थीं…और दोनो दिन होते ही एक दूसरे से लड़ना शुरू कर देते थे….और इस लड़ाई का मज़ा लेने के लिए उनकी दुकानों पर तमाशबीनों की भीड़ लगी रहती थी…ज़ाहिर है ये लोग उनकी दुकानों से सामान भी खरीदते थे…यानि इस लड़ाई से आखिरकार फायदा उन दोनों भाइयों को ही होता था…अलबेला जी से निवेदन करुंगा कि इस किस्से को विस्तार से सुनाएं…
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ब्लागिंग के जमाने में पुस्तक प्रकाशित करवाने की आवश्यकता नहीं है।
वाह! वंदना जी,काले कृष्ण कन्हैया की सोहबत में
महाभारत करवाना चाहती हैं आप ब्लॉग जगत में भी.
जो मज़ा लडाई मे वो प्यार मे कहाँ राकेश जी…………प्रचार का सबसे सस्ता और सुलभ माध्यम्………हींग लगे ना फ़िटकरी रंग चोखा ही चोखा
अरे खुशदीप जी वो तो यहाँ होता ही रहता है………दंगल ……………:) हो भी रहा है …………:) बस देखते रहिये …………वैसे आपका आइडिया अच्छा है ………शुरुआत आप करो हम साथ साथ हैं जब तक ना जूते सिर पर पडते हैं …………हमारे नही आपके उसके बाद सब गायब ………:))))))))
तो, हो जाए। आपस में रोज एक लड़ाई तय कर लें।
🙂
albela jee ki kahani ka intzaar hai.. bhaiya:)
दंगल तैयार किया जाये..
कल ही खबर आयेगी कि दो बिलागरों में मार-पीट हुई. हा हा…
जय जय हनुमान गुंसाईं…….
क्या आपस में लड़कर ही प्रचार हो सकता है?
मिलकर नहीं,
zarur honi chahiye…
कई तो अजमाते भी रहे हैं, शायद.
अलबेला जी का किस्सा किस्सा नहीं है यह तो हकीकत है
जो दिखता है वो बिकता है, फ़िर भले ही लड़ाई करके दिखे ।