हिंदी किस खेत की मूली है…खुशदीप

हिंदी पिटी…बुरी तरह पिटी…अपने देश में ही पिटी…आखिर हिंदी है किस खेत की मूली…राष्ट्रीय भाषा कोई है हिंदी…जो महाराष्ट्र में चलेगी…जी हां, मैं भी इसी भ्रम में जी रहा था कि हिंदी राष्ट्रीय भाषा है…मैं क्या देश की आधी से ज़्यादा आबादी इसी मुगालते में होगी कि हिंदी राष्ट्रीय भाषा है…हिंदी में ब्लॉगिंग करने वाले भी वहम पाले हुए होंगे कि हम तो राष्ट्र की भाषा में लिखते हैं…

महाराष्ट्र विधानसभा में समाजवादी पार्टी के विधायक अबू असीम आजमी की राज ठाकरे के विधायकों ने ठुकाई कर दी…ठुकाई करने वाले चार विधायक चार साल के लिए सदन से निलंबित कर दिए गए…वैसे यहां ये बताना ज़रूरी है कि पिटने वाले अबू असीम आजमी के खाते में आपराधिक मुकदमों की लंबी फेहरिस्त है…और जिन्होंने ठुकाई की वो भी मुकदमों के मामले में अबू आजमी से कहीं से भी उन्नीस नहीं है…

आजमी साहब लोकसभा चुनाव भी लड़े थे लेकिन कामयाब नहीं हो सके थे…विधानसभा चुनाव में अबू आजमी की लाटरी लगी और दो सीटों से चुनाव लड़कर दोनों ही सीटों पर जीत का परचम लहरा दिया…अबू आज़मी की कुल संपत्ति उनके अपने हलफनामे के मुताबिक सिर्फ 126 करोड़ रुपये है…लेकिन मेरी पोस्ट का मुद्दा अबू आजमी या उनकी ठुकाई करने वाले एमएनएस विधायक नहीं है…मेरा मुद्दा ये है कि अबू आज़मी को हिंदी में शपथ लेने से रोकने के लिए पीटा गया…मेरे लिए अहम है हिंदी की वजह से ये सारा ड्रामा हुआ…

मैंने इस प्रकरण पर गौर से सोचा…और फिर सवाल किया कि महाराष्ट्र में आखिर क्यों ली जाए हिंदी में शपथ…आप कहेंगे कि संविधान अधिकार देता है कि हम देश के किसी भी कोने में जाकर बसें और चाहे कोई भी भाषा बोलें…और हिंदी तो हमारी राष्ट्रीय भाषा है…बस यहीं मात खा गया हिंदुस्तान…मैंने भी यही जानने की कोशिश की आखिर सांविधानिक दृष्टि से हिंदी का देश में दर्जा क्या है…और जो मैंने खंगाला वो मेरे लिए भी चौंकाने वाला रहा…पहली बात तो ये समझ लीजिए कि हिंदी केंद्र में सिर्फ राजभाषा है राष्ट्रीय भाषा नहीं…राजभाषा मतलब सरकारी भाषा…इस राजभाषा में भी अंग्रेज़ी का नप्पुझन्ना साथ लगा हुआ है…यानि व्यावहारिक तौर पर विधायिका हो या न्यायपालिका, सारा काम अंग्रेजी में ही होता है…कुछ विभागों में हिंदी पर अहसान करते हुए राजभाषा बताया ज़रूर जाता है लेकिन वो हिंदी इतनी क्लिष्ट होती है कि सुनने वाला एक ही बार में भाग खड़ा होता है…

आइए अब चलते हैं 26 जनवरी 1950 की तारीख में…इसी तारीख को भारत का संविधान लागू हुआ था…संविधान का अनुच्छेद 343 हिंदी को भारतीय संघ की राजभाषा (सरकारी भाषा) का तो दर्जा देता है लेकिन ये कहीं नहीं कहता कि हिंदी भारत की राष्ट्रीय भाषा है…ये अनुच्छेद अंग्रेज़ी को भी अतिरिक्त सरकारी भाषा का दर्जा देता है…लेकिन ये अतिरिक्त भाषा ही पिछले छह दशक में सब कुछ बनी हुई है…

संविधान लागू करते वक्त ये भी साफ किया गया था कि हिंदी और अंग्रेजी सिर्फ 15 साल यानि 26 जनवरी 1965 तक ही केंद्र की सरकारी भाषा रहेगी…उसके बाद जो भी सरकारी भाषा चुनी जाएगी उसे ही राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दे दिया जाएगा…यानि संविधान बनाने वालों को पूरी उम्मीद थी कि 1965 के बाद हिंदी ही देश की सरकारी और राष्ट्रीय भाषा बन जाएगी… लेकिन 1965 से पहले ही दक्षिणी राज्यों में हिंदी को राष्ट्रीय भाषा बनाने के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गया था…1965 आते-आते दक्षिण में हिंदी विरोधी आंदोलन इतना उग्र हो गया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री और हिंदी के प्रबल समर्थक लाल बहादुर शास्त्री को भी हिंदी के मुद्दे को ठंडे बस्ते में डालना पड़ा…उसके बाद भी केंद्र में किसी सरकार की हिम्मत नहीं हुई कि हिंदी को वो सम्मान दिलाए जिसकी कि वो हकदार है…

ये हालत तब है जबकि संविधान के अनुच्छेद 351 में साफ़ उल्लेख है कि ये संघ (केंद्र) का कर्तव्य है कि वो हिंदी भाषा के प्रचार को बढ़ावा दे, हिंदी को इस तरह विकसित करे कि ये भारतीय संस्कृति के समूचे तत्वों को दर्शाने के लिए माध्यम का काम कर सके…लेकिन संविधान के इस अनुच्छेद पर केंद्र में हमारी कितनी सरकारें ईमानदारी से काम करती दिखीं…हालत ये है कि संविधान लागू होने के 59 साल बाद भी हिंदी अपने हाल पर ही रो रही है…पिट रही है…आखिर पिटे क्यों नहीं…हिंदी के लिए आवाज़ उठाने वाला कौन है…हिंदी भी अनुसूची में शामिल देश की 18 अधिकृत भाषाओं की तरह ही सिर्फ अधिकृत भाषा है…इसके आगे कुछ नहीं….