आजकल ब्लॉगिंग में दूसरों को उपदेश देने वालों की बाढ़ सी आ गई है…कोई मर्यादा का पाठ पढ़ा रहा है…कोई टिप्पणी विनिमय का शिष्टाचार सिखा रहा है…कोई भाषा पर सवाल कर रहा है…कोई इसी फिक्र में ही कांटा होता जा रहा है कि हिंदी ब्लॉगिंग का उत्थान कैसे होगा…कई तो ब्लॉगिंग ही इसीलिए कर रहे हैं कि किसी पोस्ट पर कुछ ऐसा मिले कि पलक झपकते ही उसे लताड़ते हुए पोस्ट तान दी जाए…हिंदी ब्लॉगिंग की यही सबसे बड़ी खामी है कि यहां अपने लिखने पर ध्यान देने की जगह इस बात में ज्यादातर घुले जा रहे हैं कि दूसरे क्या लिख रहे हैं…
ब्लॉगिंग को सीमाओं से बंधे तालाब की जगह ऐसी उफनती नदी की तरह होना चाहिए जो पहाड़ों को भी काटते हुए अपना रास्ता खुद बनाती चले..इसलिए हर ब्लॉगर विशिष्ट है, और उसे अपने हिसाब से ब्लॉगिंग की छूट होनी चाहिए…अगर गलत करेगा तो किसी की नज़र से छुपा नहीं रह सकेगा…आजकल किसी को एक्सपोज़ होने में ज़्यादा देर नहीं लगती…फिर अगर कांटे नहीं होंगें तो फूलों की पहचान कैसी होगी…इस मामले में मुझे याद पड़ता है कि महागुरुदेव अनूप शुक्ल भी पहले सचेत कर चुके हैं कि यहां सब ज्ञानी है, इसलिए ज्ञान बखारने की जगह सिर्फ खुद को ही सुधारने की कोशिश करनी चाहिए…
यहां ऐसा भी है कि खुद अलोकतांत्रिक तरीके अपनाए जा रहे हैं और दूसरों को दुनिया जहां की नसीहतें दी जाती हैं…मैं जब से ब्लॉगिंग कर रहा हूं माडरेशन को मैने हमेशा दूसरों की अभिव्यक्ति को घोंटने का औज़ार माना है…अब तो टिप्पणी आप्शन बंद करने और ब्लॉग को आमंत्रित सदस्यों के लिए रिज़र्व रखने का भी ट्रेंड शुरू हो गया है…
खैर, हर किसी को अपने हिसाब से ब्लॉगिंग की छूट है…लेकिन ये कहां तक सही है कि आप ब्लॉग को सिर्फ आमंत्रित सदस्यों के लिए सीमित कर दें और उसे एग्रीगेटर पर भी बनाए रखें…आप खुद ही सोचिए कि आप एग्रीगेटर के ज़रिए किसी पोस्ट को पढ़ने के लिए पहुंचे और वहां नोटिस लिखा मिले कि आप इस पोस्ट को पढ़ने के हक़दार नहीं हैं तो आप को कैसा लगेगा…एक तरफ आप कहते हैं कि बीस पाठक भी बहुत है सार्थक विमर्श के लिए और दूसरी तरफ पाठक बढ़ाने के लिए आप एग्रीगेटर पर मौजूदगी बनाए रखें…ये उस पाठक के लिए वैसा ही है जैसे कि वो बिना बुलाए मेहमान की तरह ही किसी के घर पहुंच गया…और जब लोगों के पास टाइम की कमी है, ऐसे में उसके दो मिनट भी इस काम में व्यर्थ जाते हैं तो ये उसके साथ अन्याय ही है…
चलिए अब गाना सुनिए…ये जो पब्लिक है, ये सब जानती है…
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स्वास्थ्यलाभ के लिए शुभकामनाएं, खुशदीप जी|
आपकी बातों से असहमत हूँ, ऐसा कुछ भी अलोकतांत्रिक नहीं है…अलोकतांत्रिक तो तब होगा जब आप किसी से ज़बरदस्ती कहें कि वो अपना ब्लॉग भी खुला रखे, अपना कमेन्ट बॉक्स भी खुला रखे और मोडरेशन भी हटाये..लोकतंत्र का अर्थ ही है, फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन…आपको कुछ किसी के बारे में एक्सप्रेस करना है, आप अपने ब्लॉग का भरपूर उपयोग कर सकते हैं…कोई नहीं रोकेगा आपको..
आप किसी लेखक की किताब पढ़ते हैं, पढ़ कर अपनी बात अपने तक ही रखते हैं, किसी लेखक से नहीं कहने जाते कि आपकी फलां बात मुझे पसंद नहीं आई..
ये भी सही नहीं है कि एग्रीगेटर से ही लोग पढ़ने आते हैं..मैं ब्लोग्वाणी पर नहीं हूँ..लेकिन मुझे पढ़ने लोग भारी संख्या में आते हैं…
अजय जी,
हमारीवाणी पर भी बिना कोड पर क्लिक किये पोस्ट्स अपडेट होती हैं और मैं ये बात खुद चैक करने के बाद ही बता रहा हूँ| मुझे ध्यान नहीं की आख़िरी बार कितने महीने पहले मैंने अपनी पोस्ट हमारीवाणी पर सबमिट की थी, लेकिन लेटेस्ट पोस्ट से पहले की बहुत सी पोस्ट्स अभी भी हमारीवाणी पर मौजूद हैं| वैसे इस बात से मुझे कोई शिकायत नहीं लेकिन आपका कमेन्ट देखने के बाद यूं ही चैक किया है तो ऐसा पाया, ये सिर्फ आपकी जानकारी अपडेट करने का प्रयास है|
बहुत दिनों बाद नेट पर आ पायी हूं। आपकी पोस्ट पढी, मैं आपसे सहमत हूं। ब्लागिंग है ही खुला प्लेटफार्म, मोडरेशन आदि ऐसी बाते हैं जैसे कोई पुस्तक प्रकाशित कराए और स्वयं तक सीमित रख ले या िफर कहे कि भैया पढ़ लेना लेकिन कुछ कहना नहीं। लेकिन सभी के अपने अपने डर है क्या कीजिएगा।
नाम और लिंक देते तो मनोज जी का ये कमेन्ट यहाँ कभी ना होता ये में दावे से कह सकती हूँ
बहुत सही लिखा है आपने मगर मुझे सबसे ज्यादा सही डॉ साहब की टिप्पणी लगी….क्यूंकी आपकी पोस्ट को पढ़कर जो कुछ मैं कहना चाहती थी वह सब कुछ उन्हीं ने कह दिया अब मैं क्या कहूँ 🙂
सिर्फ़ पोस्ट ही नहीं , टिप्पणियों पर भी नज़र है हमारी , देखिए आज आपकी पोस्ट पर पाठकों ने क्या प्रतिक्रिया दी , हमने सहेज लिया है , इस टिप्पणी पर क्लिक करें
101….सुपर फ़ास्ट महाबुलेटिन एक्सप्रेस ..राईट टाईम पर आ रही है
एक डिब्बा आपका भी है देख सकते हैं इस टिप्पणी को क्लिक करें
जहां तक हमारीवाणी की बात है तो जैसा कि मैं जानता हूं कि हमारीवाणी पर ब्लॉग के जुडे होने के बावजूद भी पोस्ट तब तक नहीं दिखाई देती जब तक कि हमारीवाणी के क्लिक कोड पर चटका न लगाया जाए , पोस्ट प्रकाशित होने के बाद । तो ये स्पष्ट है कि यदि कोई न चाहे तो पोस्ट वहां नहीं दिखाई देगी । हां ब्लॉगस्पॉट पर बने हुए छोटे संकलक नुमा ब्लॉगों पर जैसा आप सबने कहा वैसा ही है , यानि कोई भी अपनी पसंद के ब्लॉग्स को जोड और घटा सकता है । रही बात आमंत्रण की तो जिन्हें पढना होगा वे जरूर भेज सकते हैं , उन्हें भेजना चाहिए । किंतु पोस्ट के शीर्षक को देख कर उस पर जाने की स्वाभाविक उत्सुकता के बाद पेज खुलने पर ऐसा संदेश थोडा अटपटा तो अवश्य लगता है । लेकिन आखिरकार ब्लॉग मालिक का ही निर्णय अंतिम होता है ।
मैं कोई तकनीकी विशेषज्ञ नहीं, लेकिन मैंने अपना ब्लॉग हमारीवाणी से हटाने की कोशिश की थी पर मुझे कोई ओप्शन नहीं दिखा| अगर अपनी मरजी से हम अपना ब्लॉग हमारीवाणी से हटा नहीं सकते तो किसी ब्लोगर को ये कहना की वो एग्रीगेटर से खुद को हटा ले, कहाँ तक उचित है?
जहां तक मुझे लगता है, एग्रीगेटर से ब्लॉग को हटाने की शक्ति खुद एग्रीगेटर मालिकों के ही पास है, और उनके विवेकानुसार इसका उपयोगदुरूपयोग भी होता ही रहता है तो इस बार भी हो जाए, लोकतंत्र सलामत रह जाएगा|
संकलक, हिंदी ब्लागजगत, ब्लाग परिवार जैसे और भी कई एग्रीगेटर है
yae sab agreegator nahin haen kewal apni pasand kae blog jodae huae haen wahaan aur wo sab is blog ko khud hataa saktae haen
ham apne blog ko wahaan sae hataa nahin saktae kyuki { blog parivaar ko chhod kar } hamne kahin apnae blog ko jodnae kae liyae koi email nahin bheji haen
yahii sabsey badii bhranti haen ki jo chahey hamara blog apni pasand me jod saktaa haen lekin apna email nahin dae saktaa haen hamara blog padhnae kae liyae
taknik sae judaa haen yae muddaa
दो दिन बरेली में रहने की वजह से ब्लागिंग से दूर रहूंगा….इसलिए किसी टिप्पणी पर जवाब देने की आवश्यकता हुई तो लौटने के बाद ही दे पाऊंगा…
जय हिंद…
विचार शून्य जी,
मैं ये कहीं नहीं कह रहा कि कोई ब्लागर खुद को बदल दे…हर किसी को अपने हिसाब से चलने का अधिकार है…
मैनें सिर्फ उस असुविधा का उल्लेख किया है जो आमंत्रित सदस्यों वाले ब्लाग पर एग्रीगेटर के माध्यम से जाने से हुई…और मैं असुविधा शून्य नहीं हूं…
जय हिंद…
दिल बहलाने को ग़ालिब ख्याल अच्छा है…
जय हिंद…
शुक्रिया, मुझ जैसे फक्कड़ आदमी को पैसे वाला समझने का…
पहली बात हमारीवाणी के संचालन से मेरा कोई जुड़ाव नहीं है…बात सिर्फ हमारीवाणी तक ही सीमित नहीं है…संकलक, हिंदी ब्लागजगत, ब्लाग परिवार जैसे और भी कई एग्रीगेटर है…सभी के पाठकों को इस असुविधाजनक स्थिति का सामना करना पड़ता होगा…आप को पूरा अधिकार है जैसे चाहे अपने ब्लाग को चलाएं…वैसे नीचे मनोज कुमार जी ने उस बात को बड़ी अच्छी तरह इंगित किया है, जिसे मैंने पोस्ट में उठाया है….
जय हिंद…
हम तो उस ब्लॉग पर हमारीवाणी से ही गए थे, तो लिखा मिला कि आपको अनुमति नहीं है। बड़ा अटपटा लगा। लगा दरवाज़े से धकिया कर निकाल दिया गया हूं।
मैं तो शुरु से ही इसके ख़िलाफ़ हूं, कि
मोडरेशन भी क्यूं? जब आपके पास कमेंट डिलिट कर देने के ऑप्शन हैं। लोग टिप्पणी करके पोस्ट भी लगा ही देते हैं। विचार कोई मन माफ़िक हों ज़रूरी नहीं। मोडरेशन से पता ही नहीं चलता कि अगले के विचार क्या थे? हां यदि असभ्य या असंसदीय भाषा का प्रयोग हो तो आप हटा दो।
दो, ये अनुमति देना और न देना — ये क्या बात हुई और कौन सा ट्रेंड? हम ऐसे ब्लॉग पर जहां मॉडरेशन हो और जहां इस तरह का लिखा हो जाना ही बंद करते हैं आज से।
आपसे सौ फ़ीसदी सहमत । और जहां तक एग्रीगेटर्स पर पोस्ट को लगाने दिखाने की बात है तो वो सिर्फ़ इसलिए ही की जाती हैं शायद ताकि पाठक उन पोस्टों तक पहुंच सकें । यदि पाठकों की पहुंच को ब्लॉग मालिक द्वारा रोका जाता है तो फ़िर उन्हें ऐसी पोस्टों को संकलकों तक साझा करने की ज़हमत नहीं उठानी चाहिए । इसके लिए संकलकों को नहीं बल्कि खुद लेखक को ही निर्णय करना चाहिए ।
हा हा हा द्विवेदी जी ने एकदम असली बात कह दी है ,उसके बाद कोई गुंजाइश नहीं है कहने की
एक छात्र किसी अफसर को थप्पड़ मार देता है, अगले साल कालेज के छात्र संघ का अध्यक्ष हो जाता है। धीरे धीरे उस का उत्थान होता रहता है। उत्थान होते होते एक दिन वह मंत्री बन जाता है जिस का टेलीफोन पीए उठाता है और कहता है साहब बाथरूम में हैं। मिलने वालों को पर्ची भेजनी पड़ती है। निर्मल बाबा का उत्थान होता है तो दरबार में जाने के लिए टिकट खरीदना पड़ता है। खुशदीप भाई! जरा निर्मल बाबा से कुछ तो सीखो।
It is the prerogative of the blogger if he/she wants to keep the blog content public/private. If you are interested in reading a particular blog, you can email them to add you to the invited readers list.
It is quite common among bloggers. And, they do not mind if you send a request to them.
अच्छे पाठक नाटकों को समुचित समझते हैं।
1)आजकल ब्लॉगिंग में दूसरों को उपदेश देने वालों की बाढ़ सी आ गई है…कोई मर्यादा का पाठ पढ़ा रहा है…कोई टिप्पणी विनिमय का शिष्टाचार सिखा रहा है…कोई भाषा पर सवाल कर रहा है…
2)लेकिन ये कहां तक सही है कि आप ब्लॉग को सिर्फ आमंत्रित सदस्यों के लिए सीमित कर दें और उसे एग्रीगेटर पर भी बनाए रखें…
श्रीमंत आपकी लिखी उपरी दोनों बातें दर्शाती हैं की आपने भी वही किया जिसके लिए आप दूसरों को दोषी घोषित कर रहे हैं. हम लोगों में यही कमी है की हम लोग जिन कमियों से खुद ग्रसित रहते हैं उनका दोषारोपण दूसरों पर कर देते हैं.
"कम से कम वे तो अवश्य ही पढ़ें जिन को लिखे से मिर्ची लगती हो। फिर अपनी सीईईईईई …… टिप्पणी बक्से में जरूर छोड़ें। ये सब न हो तो ब्लागिंग नीरस हो जाएगी।" मैं भी दिनेश जी से सहमत हो लेता हूँ 🙂
और लोगों का देख देख कर मेरा भी सहमताने का मन हो आया .. 🙂
अच्छी पोस्ट! हम तो लिखते ही इसलिए हैं कि लोग इसे पढ़ें। कम से कम वे तो अवश्य ही पढ़ें जिन को लिखे से मिर्ची लगती हो। फिर अपनी सीईईईईई …… टिप्पणी बक्से में जरूर छोड़ें। ये सब न हो तो ब्लागिंग नीरस हो जाएगी।
ब्लॉग को आमंत्रित सदस्यों के लिए रिज़र्व रखने का भी ट्रेंड शुरू हो गया है…
trendsetters are well ahead of time and there is no wrong in being a trend setter
एक तरफ आप कहते हैं कि बीस पाठक भी बहुत है सार्थक विमर्श के लिए और दूसरी तरफ पाठक बढ़ाने के लिए आप एग्रीगेटर पर मौजूदगी बनाए रखें…
आप को भ्रम हैं की पाठक अग्रीगेटर से आते हैं , अग्रीगेटर का वजूद ब्लॉग से हैं नाकि ब्लॉग का अग्रीगेटर से .
अग्रीगेटर को अधिकार हैं किसी भी ब्लॉग को अपने स्क्रोल से हटाने का अगर क़ोई नियम भंग किया गया हो
आमंत्रित की परिभाषा अलग हैं भारत में निमन्त्रण का अर्थ हैं किसी को आमंत्रित करना , हम यहाँ आमंत्रित करने वाले से पूछते नहीं हैं जबकि बाकी जगह आमत्रित करने वाले से पहले पूछा जाता हैं "क्या आप आना पसंद करेगे , क्या आप आ सकते हैं " . जब उनसे सहमति मिल जाती हैं तब उनको निमन्त्रण भेजा जाता हैं .
ये एक सेट प्रोसेस हैं जो हमारे यहाँ अभी केवल कुछ वर्गों में प्रचलित हैं .
उसी आधार पर गूगल ने अपनी नीति बनाई हैं की जो ब्लॉग मालिक से कहे की "मुझे पढना हैं " ब्लॉग मालिक उसको निमन्त्रण भेज दे .
अब वो पढ़े जो अपने ईमेल आईडी मुझे दे .
मेरे रेगुलर पाठक जो टिपण्णी केवल इस वजह से नहीं करते हैं की मेरा साथ देने से बहस होगी खुश हैं क्युकी अब वो खुल कर बात कर सकेगे .
और हाँ मेरी बात को अपने पाठको तक रखने का थैंक्स
लिंक भी दे देते
और अगर हमारिवानी आपके पैसे से चलता हो तो सूचित कर दे में अपना ब्लॉग हटा लूंगी क्युकी हमारिवानी पर ब्लॉग जोडने के लिये मुझे ईमेल से निमंत्रण दिया गया था और मुझे आभास था की ये शाहनवाज का हैं .
अच्छे मुद्दे उठाए गएँ हैं पोस्ट में .कबीरा खड़ा बाज़ार में सबकी चाहे खैर ,न काहू से दोस्ती न काहू से बैर . . .कृपया यहाँ भी पधारें –
ram ram bhai
शनिवार, 26 मई 2012
दिल के खतरे को बढ़ा सकतीं हैं केल्शियम की गोलियां
http://veerubhai1947.blogspot.in/तथा यहाँ भी ज़नाब –
malma kya hae ?
सही लिखा है सर .
बहुत ही सार्थक प्रश्न उठाये हैं….सुन्दर विवेचन आज के ब्लॉग जगत का…
अब तो आदत पड़ गयी है ….शुभकामनायें आपको !
हम तो हमेशा अच्छी तरह पढ़ कर ही टिप्पणी देते हैं, वर्ना नहीं…. मगर अक्सर एक-दो शब्दों से अधिक समझ में ही नहीं आता कि क्या लिखें… ऐसा अक्सर तब होता है, जब कोई रचना अच्छी लगे और उसकी तारीफ़ में लिखने का दिल करे…
इसलिए एक-दो शब्दों की टिप्पणियों को भी बिना पढ़े लिखी गयी टिपण्णी नहीं समझना चाहिए… 🙁
जब लोगों के पास टाइम की कमी है, ऐसे में उसके 2 मिनट भी इस काम में व्यर्थ जाते हैं तो ये उसके साथ अन्याय ही है…
ब्लागिंग एक बवाल है, बड़ा झमेला राग,
पल में पानी सा बहे, छिन में बरसत आग!
भाई हते जो काल्हि तक,वे आज भये कुछ और,
रिश्ते यहां फ़िजूल हैं, मचा है कौआ रौर!
हड़बड़-हड़बड़ पोस्ट हैं, गड़बड़-सड़बड़ राय,
हड़बड़-सड़बड़ के दौर में,सब रहे यहां बड़बड़ाय!
हमें लगा सो कह दिया, अब आपौ कुछ कहिये भाय,
चर्चा करने को बैठ गये, आगे क्या लिक्खा जाय!
बाकी रचना जी ने जो आमंत्रित पाठकों मात्र के लिये अपना ब्लॉग कर दिया है वो कुछ जमा नहीं!
@सब ज्ञानी है, इसलिए ज्ञान बखारने की जगह सिर्फ खुद को ही सुधारने की कोशिश करनी चाहिए…
ek gyani hi aise vichar rakh sakte hain…..
pranam.
jandar..shandar cha majedar…
इसे कहते हैं खरी खरी . 🙂
ऐसी ब्लॉगिंग कुछ लोग करते हैं और वो टिप्पणियां बटोरते हैं। स्टार बनते हैं। बुरा भी बहुत जल्द मानते हैं। जो ब्लॉगिंग कररते हैं, वो ब्लॉ ब्लॉ नहीं करते।
बहुत ही शानदार टिप्पणी..
जब तक बिहेवियरल मैच्योरिटी नहीं आएगी …तब तक ऐसा ही होगा.. मैंने कभी मॉडरेशन नहीं लगाया.. हाँ! एक ही झटके में टिप्पणी का ऑप्शन ही बंद कर दिया… सिर्फ इसीलिए कि मुझे अब टिप्पणी नहीं चाहिए…. मैं लोगों के वेयूज़ लेकर क्या करूँगा.. ? मैं अपने आपको आपको ब्लॉगर नहीं मानता… मैं खुद को एक राइटर मानता हूँ.. और मैं मान्यता प्राप्त भी हूँ.. नेट पर तो टेक्नोलोजी ने फैसिलिटी दी है तो यहाँ भी लिखने लग गया.. और लोगों ने ब्लॉगर कहना शुरू कर दिया.. बाकी..यहाँ अच्छा लगा आकर… और क्या चाहिए..
मेरा आज का फेसबुक स्टेटस है…
फेसबुक और ब्लॉग पर लोगों ने ख़ुद को "ज़बरदस्ती" साहित्यकार घोषित कर रखा है.. भले ही कोई माने या ना माने.. कोई एजेंसी रिकौग्नाइज़ करे या ना करे.. जैसे देखता हूँ कि लोग अपने घरों का नाम साहित्य सदन या साहित्यकार भवन रख देते हैं.. अब भाई वाईट हाउस रख दो… लोकसभा रख दो या विधान सभा रख दो… उससे कुछ थोड़े ही ना हो जायेगा..रिकौग्नाइज़ड..बौडी से रिकॉग्निशन हो तो कोई बात बने.. खुद को ओबामा मान लो.. चाहे श्री.कृष्ण .. रहोगे तो वही जो हो.. ""नालायक""
इतनी जल्दी स्पैम में चली गई !
स्टार वाली पहली पंक्ति आपके लिए नहीं है . कृपया क्षमा कीजियेगा .
अरविन्द जी के ब्लॉग पर दी गई यह टिप्पणी यहाँ भी तर्क संगत लग रही है . इसलिए चेप दी है .
ब्लॉगिंग में इस तरह की फीलिंग्स अक्सर सभी को कभी न कभी आती हैं . बेशक यहाँ सभी लेखक हैं , शुद्ध पाठक कोई नहीं . टिप्पणियों का मामला भी पेचीदा है . यदि कोई एक दो बार न आए तो लगता है या तो नाराज़ है या उपेक्षा कर रहा है .
लेकिन अनुभव के साथ कुछ बातें सीखना ज़रूरी है . जैसे :
* सप्ताह में एक या दो से ज्यादा पोस्ट लिख कर हम दूसरों पर अत्याचार ही करते हैं .
* टिप्पणी तभी देनी चाहिए जब आप पोस्ट में दिलचस्पी रखते हों .
* बिना पोस्ट पढ़े एक दो शब्द की टिप्पणी देकर हाज़िरी लगाना एक लेखक को शर्मिंदा करता है .
* लेखों और पोस्ट्स में विविधता ज़रूरी है ताकि आप टाइप्ड न हों और नीरसता न आये .
* यह ज़रूरी नहीं की आप हमेशा किसी से सहमत हों , या असहमत हों .
* जो लोग ब्लॉग पर कभी नहीं आते , उन्हें हम नहीं पढ़ते भले ही इ मेल करें या कोई और अनुरोध . ऐसे लोगों की कमी नहीं है . कईयों को तो हमने फोलो करना भी बंद कर दिया है .
* सामूहिक ब्लॉग्स हमें कभी पसंद नहीं आये .
अंत में यही कहूँगा की पसंद अपनी अपनी — जो सही लगे , वही करना चाहिए .