हम भैंस को माता क्यों नहीं कहते…खुशदीप

बचपन से सुनता आया हूं गऊ हमारी माता होती है…सीधा सा तर्क है कि हम गाय का दूध पीते हैं, इसलिए गाय हमारी माता होती है…लेकिन अब हम गाय का दूध कहां पीते हैं…हर जगह भैंस का ही दूध मिलता है…वैसे भी भैंस 15-20 लीटर दूध देती है और गाय सिर्फ 5-7 लीटर…फिर भैंस को हम माता क्यों नहीं कहते…गाय तो अब मिलती कहां हैं…गाय बस गौशालाओं में ही देखने की चीज रह गई है..,खास कर महानगरों में गाय के दर्शन ही दुर्लभ होते जा रहे हैं…

मेरी पत्नीश्री धर्मकर्म को मानने वाली है…किसी से उसने सुन लिया कि गाय को रोज़ रोटी खिलाने से पति पर कष्ट नहीं आता…अब उसे कौन समझाए कि पति पर कष्ट कहां से आएगा, पति तो रोज़-रोज़ खुद एक से एक पकाऊ पोस्ट डालकर ब्लॉगर बिरादरी को कष्ट देता है…लेकिन पत्नीश्री तो ठहरी पत्नीश्री…जो आसानी से मान जाए वो पत्नीश्री ही कहां…

खैर जी मरता क्या न करता, मैंने रोटी लेकर नोएडा शहर में गाय को ढूंढना शुरू किया…लेकिन गऊ माता कहीं नहीं दिखी…कहावत खामख्वाह ही कही जाती है कि ऐसे गायब जैसे गाय के सिर से सींग…यहां सींग तो क्या पूरी की पूरी गाय ही गायब हैं…गाय तो कहीं नहीं मिली हां हर चौपले, नुक्कड़ पर सांड और बैल ज़रूर विचरण करते नज़र आ गए…अब रोटी तो गाय को ही खिलानी है, इसलिए सांड और बैल महाराजों को दूर से ही हमने नमस्कार कर दिया…दो-तीन घंटे तक गाय की तलाश करने के बाद  टाएं बोल गई…घर वापस आ गया…

पत्नीश्री के सामने हाथ खड़े कर दिए…कहा…और कुछ करा लो…चांद-तारे तुड़वा लो…सूरज से आंखे मिलवा लो…लेकिन ये गाय को रोज़-रोज़ ढूंढ कर रोटी खिलाने का टंटा हमसे नहीं होगा…खाली टाइम में अपने लैपटॉप बॉस को छोड़कर गली-गली गऊ माता की तलाश में मारा-मारा फिरूं…ये अपने बस की बात नहीं…एक ही दिन में हलकान हो गया…रोज़ रोज़ ये करना पड़ा तो खुद ही ऐसी हालत में पहुंच जाऊंगा कि बस ढूंढते ही रह जाओगे…


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तो जनाब पत्नी को तो मैंने किसी तरह मना लिया कि गली के कुत्तों को ही रोटी डालकर काम चला लिया जाए…लेकिन ये सवाल मुझे ज़रूर परेशान कर रहा है कि अब गाय क्यों नहीं दिखती…पुराण कहते हैं कि जिस दिन गाय दुनिया से खत्म हो जाएंगी उसी दिन सृष्टि का अंत हो जाएगा…तो क्या हमने सृष्टि के अंत की ओर ही बढ़ना शुरू कर दिया है….गाय के गायब हो जाने पर  मैं तथ्यों और आंकड़ों के साथ इस चर्चा को आगे बढ़ाऊंगा…तब तक आपके कुछ विचार हो तो मेरे साथ ज़रूर बांटिए…

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PARAS
3 years ago

गाय को ही रोटी क्यों खिलाते है क्यों बैल को रोटी नहीं खिला सकते है जबकि बैल गाय का ही पुलिंग है कृप्या करके कोई इस बात पर प्रकाश डाले|

gold
6 years ago

thank you

बेनामी
बेनामी
6 years ago

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Jayshree Purwar
7 years ago

एक ओर हम गाय को गोमाता कहते नहीं अघातेओर दूसरी ओर दोहनीके बाद उसे पोलिथिनऔर कचरा खाने को सड़क पर छोड़ देते है. यह तो अत्याचार है .

Unknown
8 years ago

बचपन में कभी सुना था पूरा याद नहीं हैं. वेदो के अनुसार माता के ३२ गुण होते है। ऋषि-मुनियो ने जिस भी सजीव-निर्जीव में इन में से कोई भी गुण पाया, उसे माता का दर्ज़ा दिया. गाय को उसके दुग्ध के कारण दिया, क़ि माँ के बाद शिशु के लिए गाय का दुग्ध सर्वोतम है. इसी प्रकार, नदी, धरती, तुलसी को इन के गुण (जो की माता के गुणों से मिलते है ) के कारण माता कहा। अन्य गुण याद नहीं (क्षमा सहित)

sst
sst
8 years ago

गौ माता की जिसने भी सेवा की हो अर्थात् सप्रेम पालन किया है सिर्फ़ वही समझ सकता है कि गौ जब हम से प्रेम करती है तो उसे मां की ममता नज़र आती है। मैं ने स्वयं देखा है जब मेरे पिता जो प्रतिदिन गौ सेवा करते थे वेजफ कभी शहर से बाहर गये तो गाय ने चारा खाने में रुचि नहीं और दूध भी निकलवाने में परेशान किया गाय को देखकर ही लगता था कि वह उदास है। और जिस तरह से वह अपने फछडे को अपनी जिव्हा से चाटकरश् दुलार करती है वैसे ही हमें भी दुलार करती है। पिता के द्वारा नाम पुकारने पर आवाज़ देना और भागकर पास आ जाती थी। गाय के दूध गोबर और मूत्र की महिमा निराली है जो उपर की टिप्पडियो में बताया गया है जिसे विग्यान द्वारा प्रमाणित किया जा चुका है। हमारे प्रभु श्री कृष्ण जी का नाम गोपाल भी इसी प्रेम और ममता के रहते हुआ ये सब बातें भैंस के साथ सम्भव नहीं हो सकती। हमारे छोटे बच्चे जिनकी मां को दूध नहीं निकलता उसकी पूर्ति गाय के ही दूध से होती है डॅाक्टर भी सलाह इसी की देते हैं। गाय ही माता का सम्मान पाने की अधिकारी है भैंस नहीं।

sst
sst
8 years ago

गौ माता की जिसने भी सेवा की हो अर्थात् सप्रेम पालन किया है सिर्फ़ वही समझ सकता है कि गौ जब हम से प्रेम करती है तो उसे मां की ममता नज़र आती है। मैं ने स्वयं देखा है जब मेरे पिता जो प्रतिदिन गौ सेवा करते थे वेजफ कभी शहर से बाहर गये तो गाय ने चारा खाने में रुचि नहीं और दूध भी निकलवाने में परेशान किया गाय को देखकर ही लगता था कि वह उदास है। और जिस तरह से वह अपने फछडे को अपनी जिव्हा से चाटकरश् दुलार करती है वैसे ही हमें भी दुलार करती है। पिता के द्वारा नाम पुकारने पर आवाज़ देना और भागकर पास आ जाती थी। गाय के दूध गोबर और मूत्र की महिमा निराली है जो उपर की टिप्पडियो में बताया गया है जिसे विग्यान द्वारा प्रमाणित किया जा चुका है। हमारे प्रभु श्री कृष्ण जी का नाम गोपाल भी इसी प्रेम और ममता के रहते हुआ ये सब बातें भैंस के साथ सम्भव नहीं हो सकती। हमारे छोटे बच्चे जिनकी मां को दूध नहीं निकलता उसकी पूर्ति गाय के ही दूध से होती है डॅाक्टर भी सलाह इसी की देते हैं। गाय ही माता का सम्मान पाने की अधिकारी है भैंस नहीं।

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