दिल्ली के पॉश इलाके खान मार्केट में कारों की मामूली भिड़ंत के चक्कर में मंगलवार को एक होटल के युवा मैनेजर की जान चली गई…कारों को मामूली खरोच जैसा ही नुकसान हुआ था…लेकिन कड़ाके की सर्दी में भी पारा ऐसा हाई हुआ कि एक कीमती जान जाने के बाद ही उसका अंत हुआ…होटल मैनेजर उतर कर दूसरी कार वाले से तू-तू, मैं-मैं करने लगा…दूसरा कार वाला वहां से तेज़ी से जाने लगा तो होटल मैनेजर कार के पिछले पहिए के नीचे आ गया…ये घटना इसलिए भी ताज़्जुब करने वाली है कि दोनों कार मालिक खासे पढ़े लिखे और अच्छी नौकरियां कर रहे थे…मरने वाला होटल मैनेजर था तो दूसरा एक निजी एयरलाइंस का पायलट…क्या हमारे अंदर इतना भी संयम नहीं रह गया कि ज़रा से उकसावे पर ही आपा खो बैठें…
अगर साइकाइट्रिस्टों की राय जानें तो ये सच है कि हमारे अंदर बर्दाश्त का माद्दा कम होता जा रहा है…हमारा रहन-सहन और सामाजिक परिवेश इतनी तेज़ी से बदल रहा है कि उसके साथ गति बनाना हमारे लिए मानसिक तनाव की वजह बनता जा रहा है…आक्रोश में आ कर हम न चाहते हुए भी ऐसा कदम उठा बैठते हैं कि जिससे नुकसान हो जाता है…फिर हमें जीवन भर पछताना पड़ता है…सड़कों पर आए दिन इस तरह की घटनाएं बढ़ने की वजह एक और भी है कि हर कोई अपने को तुर्रमखान समझता है…कुछ कुछ वैसे ही अंदाज़ में…जानता नहीं कि मेरा बाप कौन है…या जानता नहीं कि मेरी पहुंच कहां तक है…एक और वजह है कि मध्यम वर्ग की आय बढ़ी है तो वो भी ये समझने लगा है कि पैसे से सब कुछ खरीदा जा सकता है…क़ानून भी पैसे वालों का कुछ नहीं बिगाड़ सकता…पुलिस का भ्रष्ट चेहरा हमारी आंखों पर ऐसा छाया हुआ है कि हम ये समझने लगे है कि चंद हरे नोट पुलिसवाले की मुट्ठी में पकड़ाओ और किसी भी मुसीबत से बच जाओ…अब क़ानून के डंडे का डर ही नहीं होगा तो फिर क़ानून हाथ में लेने की दुस्साहसिक घटनाएं बढ़ेंगी ही…
ऐसा नहीं कि आदमी गुस्से में आकर दूसरों से मरने-मारने पर ही उतारू हो जाता है…दबाव में आकर खुद जान देने की घटनाएं भी देश में खूब हो रही हैं…युवा पीढ़ी में सहनशक्ति कम होने की वजह से देश में खुदकुशी की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं…यहां तक कि विवाहितों में भी बर्दाश्त का स्तर अब बहुत कम होता जा रहा है…अब वो ज़माना नहीं रहा कि एक दूसरे की विपरीत आदतों के चलते भी एडजस्ट करने की कोशिश की जाए…
शायद यही वजह है कि साल 2009 में खुदकुशी करने वाले लोगों में कुंवारे-कुंवारियों की तुलना में शादीशुदा लोगों की तादाद कहीं ज़्यादा थी…ये मैं नहीं कह रहा, नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो की ताजा रिपोर्ट कह रही है…रिपोर्ट के मुताबिक महिलाओं की तुलना में पुरुषों ने ये दुस्साहसिक कदम ज़्यादा उठाया…पिछले साल देश में 1,27,151 लोगों ने खुदकुशी की जिनमें से 70.4 फीसदी शादीशुदा, 21.9 फीसदी कुंवारे, 4.3 फीसदी विधवा-विधुर और 3.4 फीसदी तलाकशुदा या अकेले रह रहे शादीशुदा लोग थे…
रिपोर्ट बताती है कि पिछले साल 58,192 शादीशुदा पुरुषों और 31,300 शादीशुदा महिलाओं ने खुदकुशी की…इसी साल 17,738 कुंवारों और 10,063 कुंवारियों ने खुद ही मौत को गले लगाया…पुरुष और महिलाओं के हिसाब से देखा जाए तो खुदकुशी करने वालों में 64 फीसदी पुरुष और 36 फीसदी महिलाएं थीं…खुदकुशी का सबसे बड़ा कारण घरेलू परेशानियां निकला…इसके चलते 23.7 फीसदी लोगों ने जान दी…दूसरी सबसे बड़ी वजह बीमारी रहा…बीमारी से परेशान 21.7 फीसदी लोगों ने खुद ही मौत को गले लगाया…
फिर किया क्या जाए…खुद पर कंट्रोल कैसे किया जाए…या तो आमिर ख़ान का थ्री इडियट्स वाला फंडा अपनाइए…होठों को करके गोल, सीटी बजा के बोल…के भईया आल इज़ वैल…
या फिर वो एड याद कीजिए…जिसमें गाड़ियों की टक्कर होने के बाद भी दोनों के मालिक बाहर आकर लड़ने की बजाय गाना गाने लगते हैं…न तेरा कसूर, न मेरा कसूर, दोनों जवानी की मस्ती में चूर, न तूने सिगनल देखा, न मैंने सिगनल देखा…ओ एक्सीडेंट हो गया, रब्बा-रब्बा…
चलिए छोड़िए ये गुस्से की बातें…लोहड़ी और मकर संक्रांति का त्यौहार है, कुछ मीठा-शीठा हो जाए…वैसे लोहड़ी पर दूल्हे भट्टी और सुंदर-मुंदरिए गीत के बारे में जानना चाहते हैं तो पिछले साल की मेरी इस पोस्ट पर नज़र मार सकते हैं…