कुछ घंटे की नींद लेने के बाद मैं प्रसन्नचित महसूस करने लगा…अब आई फ्रैश होने की बारी…स्पेस मे फ्रैश होना भी टेढ़ी खीर है…कैसे भला…ये आपको कोई साइंटिस्ट ब्लॉगर भाई ही अच्छी तरह बता सकते हैं…खैर जादू मेरे फ्रैश होने का ही इंतज़ार कर रहा था और बाबा रामदेव की मुद्रा में हवा में ही अपना आसन ले चुका था…शायद जादू ने भी यूनिवर्स को भ्रष्टाचार और काले धन से मुक्त कराने के लिए बाबा से ही प्रेरणा ली हो…
लेकिन जादू की योजना सबसे पहले अपने ग्रह और धरती के समस्त ब्लॉगरों का कल्याण करने की थी…इसके लिए सबसे पहले ज़रूरी था कि एक संघ (एसोसिेएशन) बनाया जाए…बिना संगठित हुए कुछ भी करना धूल में लठ्ठ चलाने जैसा होता है…जादू ने बात को आगे बढ़ाते हुए मुझ पर ही सवाल दागा कि संघ का नाम क्या रखा जाए…मैंने रिपोर्टिंग के सूत्रों के हवाले से बताया कि संघ के लिए जितने भी तरीके के नाम मुमकिन हो सकते थे वो तो धरती पर नवाबों की नगरी में पहले ही रखे जा चुके हैं….इसलिए सोच-समझ कर ही नाम रखना होगा, वरना कहीं क़ानूनी नोटिस ही न आ जाए…जादू और मैंने बड़ी देर तक सिर से सिर भिड़ा कर दिमागी घोड़े दौड़ाए और इस नाम पर सहमति बनी…आल यूनिवर्स ब्लॉगर्स चंडूखाना (AUBC)…
चलो संगठन का नाम फाइनल हो गया…अब जादू ने कहा कि संगठन के कुछ नियम कायदे भी तय हो जाएं…मैंने कहा, जादू भाई, किसी भी संगठन की सफलता के लिए ज़रूरी है कि वो लोकतंत्र को कितना महत्व देता है…ये सुनकर जादू भड़क गया…कहने लगा- की न चंडूखाने वाली बात…कोई लोकतंत्र-वोकतंत्र नहीं…देख नहीं रहे लोकतंत्र के चक्कर में रब दे बंदे मनमोहन सिंह और रब दे देश भारत का हाल…इसलिए AUBC को आयरन हैंड से चलाना होगा…कर्नल गद्दाफी की तर्ज पर…
मैंने कहा…जादू भाई, जब तुमने सब कुछ पहले से ही सोच रखा है तो मुझे बस हुक्म करो कि धरती पर लौटने के बाद क्या करना है…जादू शायद मेरे मुंह से यही सुनना चाहता था…झट से उसने कमर पर लटके स्पेसबैग से एक लिस्ट निकाल कर मेरे हाथ में थमा दी…लिस्ट पर आल यूनिवर्स ब्लागर्स चंडूखाने के पदाधिकारियों और सदस्यों के लिए नियम कायदे लिखे हुए थे…मैंने पढ़ना शुरू किया…
1. कर्नल गद्दाफी की तरह AUBC का असीमित अधिकारों वाला एक चीफ़ चंडू (CC) होगा, जो कभी सलाह लेगा तो सिर्फ चीन के राष्ट्रपति हू जिंताओ जैसे मानव-प्रेमी नेताओं से लेगा ताकि फिर कोई थ्येन आन मन चौक जैसा कोई कांड कराना हो तो आत्मग्लानि जैसी कोई भावना न उपजे…
2 चीफ़ चंडू को किसी भी ब्लागर को एसोसिेएशन का पदाधिकारी बनाने और किसी भी वक्त हटाने का अधिकार होगा…कोई ब्लागर चीफ चंडू के इस अधिकार को चुनौती नहीं दे सकता…
3 एसोसिएशन का सदस्य बनने के लिए उन्हीं ब्लागरों को वरीयता दी जाएगी, जिनके बायोडाटा में सिर-फुटव्वल और लेग-पुलिंग की ज़्यादा से ज़्यादा घटनाएं दर्ज हों…
4 हर सदस्य रोज़ कम से कम दस-बारह पोस्ट चेप कर सभी को पकाने का माद्दा रखता हो…
5 पोस्ट कोई भी लिखे,साथ में फोटो चीफ चंडू की ही जाएगी…
6 सारे पदाधिकारी और सदस्य पीपली लाइव के नत्था की तर्ज पर काम करेंगे…
7 अगर किसी शहर में किसी को AUBC की ब्रांच खोलनी है तो उसे पहले चंडूखाने की एक पीठ स्थापित करनी होगी…जो भी चढ़ावा आएगा, उसका 90 फीसदी हेडक्वार्टर भेजा जाएगा…
8 अमेरिका हो या कनाडा, इंग्लैंड हो या यूएई,भारत हो या साउथ ईस्ट एशिया या फिर दुनिया या जादू के ग्रह के किसी भी स्थान का ब्लागर,ब्रांच किसी भी शहर में खोले, हेडक्वार्टर का पता चीफ चंडू के शहर का ही दिया जाएगा…
9 हर सदस्य के काम का मूल्यांकन करने के लिए एक ‘वाह उस्ताद वाह’ की नियुक्ति चीफ चंडू की ओर से की जाएगी…
10 अगर कोई अविनाश वाचस्पति या अजय कुमार झा जैसे घर-फूंक तमाशा देखने वाले जीव सच में ही ब्लागर्स को किसी सार्थक मंच पर जोड़ने की कोशिश करेंगे तो घेटो-घेटो कहकर उनका जीना हराम कर दिया जाएगा…
एक सांस में लिस्ट पढ़ने के बाद मैने जादू की तरफ देखा…वो मंद मंद कुटिल हंसी के साथ मेरे चेहरे के भावों को पढ़ रहा था…जादू ने फिर मुझसे पूछा कि क्या बोलते हो…क्या बनोगे चीफ़ चंडू…मैंने अपने स्वभाव को देखते हुए वहीं जादू से हाथ जोड़ दिए…क्योंकि मुझे चीफ चंडू का आगे चलकर होने वाला हश्र साफ नजर आ रहा था…जादू इस पर भड़क गया…चीफ चंडू नही बनना था तो मुफ्त की बारात में स्पेस के मज़े लूटने आया है…अब जादू का गुस्सा देखकर मैं ये भी याद नहीं दिला सकता था कि धरती पर स्पेस के लिए रवाना होने से पहले मुझे कुछ बताया ही कहां गया था…लेकिन मैंने फिर भी बात को संभाला…कहा- जादू भाई मैं, धरती पर जाकर फौरन किसी सूटेबल कैंडीडेट की सहमति लेकर चीफ चंडू के लिए आपको नाम भेजता हूं…
अब मैं इसी पर पोस्ट लिखने की सोच ही रहा था कि बताइए कौन बनेगा चीफ चंडू…कि पत्नीश्री की आवाज़ कानों में पड़ी, दस बज गए हैं, छुट्टी वाले दिन कितना सोओगे, बाज़ार नहीं चलना सामान लेने…वरना तु्म्हें हफ्ते भर ड्यूटी और ब्लागरी से फुर्सत ही कहां मिलती है…और मेरी नींद खुल गई…