सादे शादी-ब्याह…क्यों न ब्लॉगर ही कोई पहल करें…खुशदीप

शादी तो एक बार ही होनी है…रोज़ रोज़ कोई ये दिन आना है…और फिर कमाते किस लिए हैं…सब इन बच्चों के लिए ही न…और फिर शादी-ब्याह तो वैसे भी बिरादरी में नाक का सवाल होता है…ये बातें विकास की रौशनी से दूर किसी इलाके में अनपढ़ लोग नहीं करते…ये सारे डॉयलाग शहरों में रहने वाले पढ़े लिखे लोगों के मुंह से अक्सर सुने जाते हैं…

माना आपको अपने बेटे-बेटी से बहुत प्यार है…उनके शादी-ब्याह में आप दिल के सारे अरमान निकाल लेना चाहते हैं…लेकिन बेतहाशा पैसा फूंक कर आप किस का भला करते हैं…बस चंद मेहमानों के मुंह से ये सुनने के लिए…वाह क्या बात है…क्या धूमधाम से शादी की है…अगर आपको बेटे-बेटी से इतना ही प्यार है तो आप उसे दूसरे तरीके से भी तो जता सकते हैं…शादी की चकाचौंध पर पैसा पानी की तरह बहाने से क्या ये बेहतर नहीं कि पैसा बच्चों के नाम फिक्सड डिपोज़िट करा दिया जाए…जिससे उनका भविष्य भी सुधर सके…

फिर क्या ये कहीं शास्त्रों में लिखा है कि रात में ही शादी का आयोजन होना चाहिए…क्या दिन में समारोह कर बिजली के खर्च को बचाया नहीं जा सकता…

क्या ये ज़रूरी नहीं कि शादी के वक्त सारा ध्यान पवित्र रिश्ते की सभी रस्मों को विधि-विधान से संपन्न कराने पर होना चाहिए…ये तभी संभव है जब आप मेहमानों की आवभगत की चिंता से दूर होकर पूरी निष्ठा से अपने कर्तव्यों का पालन करें…

मेरे विचार से तो सबसे अच्छा तरीका यही है कि जिस दिन शादी की मुख्य रस्म हो, उसमें घर के या बहुत ही खास लोग शरीक हो…और ये पूरा आयोजन सादगी लेकिन गरिमापूर्ण ढंग से कराया जाए…ऐसे में सारी रस्मों पर सभी घरवालों का पूरा ध्यान रहेगा…

शादी के बाद एक दिन सभी परिचितों को बुलाकर प्रीतिभोज कराया जाए…इस प्रीतिभोज में खाने के लिए आइटम बेशक दस से ज़्यादा न हो लेकिन सब हलवाई पर खड़े रहकर वैसे ही प्यार और देखरेख के साथ बनवाएं जैसा कि घर की रसोई में खाना बनवाया जाता है…(ऐसे में सोचिए बुज़ुर्ग कितने काम आ सकते हैं)

आपके घर में मंगलकार्य को एक और तरीके से हमेशा के लिए यादगार बनाया जा सकता है…बेटे या बेटी के सुखी विवाहित जीवन की कामना के लिए कुछ पैसा खर्च कर शहर के किसी वृद्धाश्रम, अनाथालय, स्पेशल बच्चों के होम, कुष्ठ आश्रम या गरीबों के इकट्ठा होने की किसी जगह पर जाकर खाना बंटवा दिया जाए…यकीन मानिएगा, इन लोगों के मुंह से आपके और आपके बच्चों के लिए इतनी दुआएं निकलेंगी कि जीवन भर साथ देंगी…

ये सारी पहल कहीं से तो होनी चाहिए न…आजकल दूल्हा-दुल्हन सब पढ़े लिखे होते हैं…अपना भला-बुरा सब समझते हैं…अगर वो खुद भी अपने माता-पिता को झूठी शान-ओ-शौकत से बचकर समझदारी से काम लेने के लिए दबाव डालें तो तस्वीर काफ़ी कुछ बदल सकती है…

चलिए ये तो सब हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम किस तरह से अपने बच्चों की शादी करना चाहते हैं…लेकिन इस मुद्दे पर सरकार भी बड़ी भूमिका निभा सकती है…सरकार शादियों के लिए नियम बांध सकती है…जैसे मेहमानों की निश्चित संख्या, खाने के लिए आइटम की निश्चित संख्या, बिजली की सजावट पर रोक…सरकार का डंडा होगा तो फिर हर कोई फिजूलखर्ची से बचेगा…साथ ही देखादेखी पैसा फूंकने की प्रवृत्ति पर भी लगाम लगेगी…ऐसे ही नियम पड़ोसी देश पाकिस्तान में लागू हैं…यही वजह है कि जब टेनिस स्टार सानिया मिर्जा की शादी पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेट कप्तान शोएब मलिक से हुई थी तो उनके रिसेप्शन में गिनती के मेहमानों को ही न्यौता दिया गया था…ये अलग बात है कि जिन्हें न्यौता मिला था, उन्हीं में से कुछ ने अपने इन्वीटेशन कार्ड मोटी कीमत वसूल कर दूसरे लोगों या पत्रकारों आदि को बेच दिए थे…

क्या हम सब ब्लॉगर सादे शादी-ब्याह पर कोई प्रण लेकर समाज को नया रास्ता नहीं दिखा सकते…