ट्रकों के पीछे गोल्डन वाक्य लिखे तो आपने भी कभी न कभार ज़रूर देखे होंगे…अक्षय कुमार को उनकी सुपरहिट फिल्म सिंह इज़ किंग का टाइटल भी एक ट्रक के पीछे लिखा हुआ ही दिखा था…आज मैं ऐसा ही एक स्लॉग ट्रकर आपको सुना रहा हूं…
स्लॉग ट्रकर
इंसान इंसान को डस रहा है,
सांप साइड में बैठ कर हंस रहा है…
(सौजन्य जेपी सिंह काका, भोपाल)
स्लॉग गीत
आज मैं अपना एक और बहुत पंसदीदा गीत सुनाना चाहता हूं…किशोर दा की दिल में उतर जाने वाली आवाज़, राजेश रोशन का मधुर संगीत…1977 में आई फिल्म स्वामी का ये गाना उस सिचुएशन पर है जहां शबाना आज़मी की शादी गिरीश कर्नाड से हो जाती है लेकिन शबाना आजमी का प्रेम विक्रम से रहा होता है….डोली के वक्त प्रेमी, सखियां, फूल, नदी, अपनों को याद करते हुए शबाना की दुविधा को दर्शाता गीत…बस अब आप खुद ही सुनिए-
यादों में वो, सपनों में है,
जाएं कहां, धड़कन का बंधन तो धड़कन से है,
सांसों से हूं मैं कैसे जुदा, अपनों को दूं मैं कैसे भुला,
यादों में वो, सपनों में है,
जाएं कहां, धड़कन का बंधन तो धड़कन से है…
ये फूल, ये कलियां सभी रोक रहीं राहें मेरी,
ये मीत, ये सखियां सभी ढ़ूढ रहीं निगाहें मेरी,
हर मोड़ पर एक सपना खड़ा, जाना है मुश्किल मेरा,
यादों में वो, सपनों में है,
जाएं कहां, धड़कन का बंधन तो धड़कन से है…
नैना मेरे असुंअन भरे, पूछ रहे चली है कहां,
बहती नदी, कहने लगी, तेरा तो है येही जहां,
हर मोड़ पर कोई अपना खड़ा, देखूं मैं मुड़ के जहां,
यादों में वो, सपनों में है,
जाएं कहां, धड़कन का बंधन तो धड़कन से है,
सांसों से हूं मैं कैसे जुदा, अपनों को दूं मैं कैसे भुला,
यादों में वो, सपनों में है,
जाएं कहां, धड़कन का बंधन तो धड़कन से है…
स्लॉग ओवर
मक्खन दौड़ा दौड़ा घर आया…चेहरा खुशी के मारे 440 वोल्ट के करंट से चमक रहा था…आते ही मक्खनी को खुशखबरी सुनाई….अरे…आज मैंने कलेक्ट्रेट वालों को बेवकूफ़ बना दिया…
मक्खनी बोली…भला, वो कैसे…
मक्खन…अरे मैंने उन्हें अपनी छाती के सफ़ेद बाल दिखाकर भरोसा दिला दिया कि मैं सीनियर सिटीजन हूं और उन्होंने मेरी वृद्धावस्था पेंशन को मंजूरी दे दी…देखा मैं अभी सिर्फ 45 साल का ही हूं और 15 साल पहले ही उन्हें गोली दे दी…
मक्खनी ठंडी सांस लेकर बोली….काश वो अफसर कुछ और भी देख लेते तो विकलांगता पेंशन भी मिल जाती…
(डिस्कलेमर: मक्खनी का आशय मक्खन के दिमाग से था…)
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