सरदार का सम्मान या मोदी का अहम…खुशदीप

सरदार वल्लभ भाई पटेल आज
धन्य हुए. आख़िर जिस विचारधारा के वो विरोधी रहे
, उस विचारधारा के वंशज भी उनकी
मूर्ति के उद्घाटन के बाद लहालोट हो रहे हैं. मूर्ति भी कोई ऐसी वैसी नहीं
,
182 मीटर यानि दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति. अहमदाबाद से 200
किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस
 
स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ प्रोजेक्ट पर प्रत्यक्ष तौर पर 3000 करोड़
रुपए से अधिक खर्च हुए हैं.
भारतीय लोहा बनाम चीनी कांसा


आइए इस मूर्ति के प्रोजेक्ट
को लेकर थोड़ा अतीत में चलते हैं. आपको याद होगा कि पिछले लोकसभा चुनाव से पहले
गुजरात सरकार की ओर से 2013 में सरदार पटेल की मूर्ति के प्रोजेक्ट को बहुत ज़ोरशोर
से प्रचारित किया गया था. देश की एकता के प्रतीक सरदार पटेल की मूर्ति
 के लिए देश के गांव गांव
से लोहा इकट्ठा करने का बात कही गई. लोहा इकट्ठा भी हुआ. लेकिन वो लोहा मूर्ति में
कहीं नहीं लगा. इंजीनियरों की ओर से कहा गया कि इस तरह के लोहे से मूर्ति नहीं
बनाई जा सकती. फिर कहा गया कि इकट्ठा किए गए लोहे का स्मारक में ही कहीं और
इस्तेमाल होगा. वैसे जिन्होंने लोहा दिया
, उनका अब ये सवाल करने का हक़
तो बनता है कि भाई ये तो बता दो कि उनके लोहे का आख़िर इस्तेमाल कहां हुआ
? बताते हैं
कि इस तरह के बिना इस्तेमाल किए लोहे का ढेर लगा हुआ है.   
31 अक्टूबर 2013 को सरदार
पटेल की मूर्ति के लिए भूमि पूजन गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी ने किया.
ये प्रोजेक्ट सरदार सरोवर बांध से 3.5 किलोमीटर दूर पानी के बीचोंबीच बनना था
इसलिए पर्यावरणविदों ने इसका शुरुआती दौर में ही विरोध किया.
खैर मूर्ति के प्रोजेक्ट
का ठेका लार्सन
एंड टुब्रो कंपनी को दिया
गया. इस कंपनी ने फिर चीन में ऐसे प्रोजेक्ट में एक्सपर्ट लोगों से संपर्क किया.
वहीं से ब्रॉन्ज़ प्लेट बन कर आईं जिन्हें भारत में लाकर मूर्ति के लिए असेंबल किया
गया.

गुजरात में सरदार,
महाराष्ट्र में शिवाजी


बताया जा रहा है कि 1700
टन वजनी स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का निर्माण जानेमाने शिल्पकार राम वी. सुतार की देखरेख
में हुआ है. सुतार इन दिनों मुंबई के समंदर में लगने वाली शिवाजी की मूर्ति की
डिजाइन भी तैयार करने में जुटे हैं. महाराष्ट्र सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि
शिवाजी की ये मूर्ति ऊंचाई के मामले में
स्टैच्यू ऑफ यूनिटी को भी पीछे छोड़ देगी.
सरदार पटेल से मोदी इतने
अभिभूत क्यों
?


आख़िर नरेंद्र मोदी को
आज़ाद भारत के पहले गृह मंत्री सरदार पटेल से इतना लगाव क्यों
 दोनों का ताल्लुक गुजरात
से होना ज्यादा मायने नहीं रखता. वजह कुछ और है. देश का ओरिजनल लौह-पुरुष सरदार
पटेल को ही माना जाता है. रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के बाद बीजेपी की ओर से लालकृष्ण
आडवाणी के नाम से पहले भी लौह-पुरुष जोड़ा जाने लगा. इक्कीसवीं सदी के आगाज के साथ
ही मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने. शुरुआती एक-दो वर्ष गोधरा कांड के बाद गुजरात
में दंगों के बाद बनी स्थिति की वजह से काफी उथल-पुथल वाले रहे.

2003 तक राजनीतिक स्थिरता
और प्रशासन पर पकड़ मजबूत होने के बाद मोदी ने जोरशोर से पटेल का नाम लेना शुरू
किया. दरअसल मोदी खुद की छवि ऐसे मज़बूत नेता के तौर पर पेश करना चाहते थे जो कि
कुशल प्रशासक होने के साथ कठोर फैसले लेना जानता है. इसके लिए उन्होंने सरदार पटेल
को अपने आदर्श के तौर पर पेश करना शुरू किया. मोदी जानते थे कि पटेल का नाम गुजरात
के जन-जन के मन में बसा हुआ है. 2004 में इंडिया शाइनिंग के नारे के बावजूद अटल
बिहारी वाजपेयी सरकार को आम चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा.

2005 के बाद मोदी ने
केंद्र की यूपीए सरकार पर गुजरात के साथ सौतेला बर्ताव करने का आरोप लगाना शुरू
किया. साथ ही ये कहना भी शुरू किया कि सरदार पटेल के साथ भी नेहरू परिवार की ओर से
हमेशा अन्याय किया गया
.

आख़िर मोदी क्यों कह रहे
थे ये सब
?  क्या ये रणनीति थी पटेल की
लौह-पुरूष वाली विरासत पर अपना दावा ठोकने की
?  2009 का आम चुनाव बेशक बीजेपी ने आडवाणी को
आगे रख कर लड़ा लेकिन पार्टी की हार ने मोदी को ये जताने का मौका दे दिया कि
केंद्र की राजनीति के लिए बीजेपी को आडवाणी की नहीं बल्कि सरदार पटेल सरीखे
लौह-पुरुष की ज़रूरत है
,
जिसके खांचे में सिर्फ वो ही फिट बैठते हैं.
 मोदी की कोशिश ये भी रही
है कि आने वाली पीढ़ी उन्हें पटेल की तरह ही मजबूत नेता के तौर पर याद करे.

सरदार पटेल मुसलमानों को हिन्दुओं
की तरह ही देश का एकसमान नागरिक मानते थे. सरदार पटेल
 धार्मिक आधार पर देश का
विभाजन भी नहीं चाहते थे. यानि वो कभी हिन्दू राष्ट्र बनाने के पक्ष में नहीं थे.
सरदार पटेल ने महात्मा गांधी की हत्या के बाद कुछ जगह जश्न मनाने की ख़बरें मिलने
के बाद गृह मंत्री के नाते आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया.

स्थानीय
किसानों, आदिवासियों का क्या फायदा
? 
आप और हम जैसे टैक्स
पेयर्स के 3000 करोड़ रुपए सरदार पटेल की भव्य मूर्ति बनाने पर खर्च किए गए. इससे
आखिर क्षेत्र के किसानों और आदिवासी समुदाय को क्या लाभ हुआ
?  वहीं लोग जिनके हितों के
लिए सरदार पटेल हमेशा खड़े होते थे. किसानों
, आदिवासियों, दिहाड़ी मज़दूरों और श्रमिकों की मुश्किलें दूर करने के लिए मोदी सरकार ने
आखिर क्या किया
? दक्षिणी
गुजरात के नर्मदा ज़िले में इस मूर्ति के आसपास रहने वाले लोग मानते हैं कि 3000
करोड़ रुपए अगर ज़रूरतमंदों पर लगाए जाते
, तो उनके हालात
काफी बेहतर हो सकते थे. हालत ये है कि नर्मदा नदी के किनारे रह रहे किसान ही अपने
खेतों में पानी की बूंद बूंद के लिए तरस रहे हैं.
 नर्मदा
ज़िला
 गुजरात के सबसे ग़रीब
पिछड़े और आदिवासियों की
बहुलता वाले नर्मदा ज़िले में स्थित है.

स्थानीय किसान बताते हैं
कि नर्मदा नदी का पानी गुजरात के अंदरूनी इलाक़ों में तो पहुँच जाता है
लेकिन मूर्ति स्थल के पास
के किसी गाँव में नहीं पहुँचता.
हालत ये है कि कुछ किसानों
ने मजबूर होकर बांध तक चोरी से पाइप बिछाए हैं जिससे कि वो अपने खेतों तक पानी ला
सकें. किसानों का कहना है कि बांध से पानी लेना गैर कानूनी है लेकिन वो ज़िंदा रहने
के लिए और क्या करें
?

पानी का संकट, जिन किसानों
की जमीन ली गई, उनकी दिक्कतें
? कौन ध्यान देगा इन पर? क्या दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति स्थापित करने का अहम ही सब कुछ है?
गुजरात और केंद्र सरकार के
दावे हैं कि मूर्ति से पर्यटन की अपार संभावनाएं होंगी और नर्मदा ज़िले की आर्थिक
स्थिति सुधरेगी. रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और स्थानीय लोगों की माली हालत मजबूत
होगी.

2014 का दांव क्या
2019 में भी चलेगा
?


देखना है कि
2014 लोकसभा चुनाव से पहले सरदार धाम के भूमिपूजन के बाद नरेंद्र मोदी
प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे. अब देखना होगा कि सरदार पटेल की जयंती पर उनकी मूर्ति
का अनावरण 2019 लोकसभा चुनाव में मोदी के लिए कितना मददगार साबित होगा
?

#हिन्दी_ब्लॉगिंग 
.

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
sonia
3 years ago

bahot hi badhia jankari hai

HINDIHELPON

Unknown
6 years ago


blog.scientificworld.in
veeruji05.blogspot.com
vaahgurujio.blogspot.com
"2014 का दांव क्या 2019 में भी चलेगा?

देखना है कि 2014 लोकसभा चुनाव से पहले सरदार धाम के भूमिपूजन के बाद नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे. अब देखना होगा कि सरदार पटेल की जयंती पर उनकी मूर्ति का अनावरण 2019 लोकसभा चुनाव में मोदी के लिए कितना मददगार साबित होगा?"

खुशदीप जी !हम जहां पहंचे कामयाब आये।

२०२ ५ तक शासन मोदी का है। अच्छा प्रयास किया है आपने। देश का नाम जो दुनिया भर में रोशन करे जिसके प्रधानमन्त्री बन ने के बाद हमारे अनिवासी भारतीय शान से चलें वह मोदी आपकी नज़रों में भले अहंकारी हो २०१९ फैसला सुनाएगा। बहरसूरत प्रस्तुति अपने तर्कों के साथ कसाव लिए हुए है। बधाई आपको।

Unknown
6 years ago

blog.scientificworld.in
veeruji05.blogspot.com
vaahgurujio.blogspot.com
"2014 का दांव क्या 2019 में भी चलेगा?

देखना है कि 2014 लोकसभा चुनाव से पहले सरदार धाम के भूमिपूजन के बाद नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे. अब देखना होगा कि सरदार पटेल की जयंती पर उनकी मूर्ति का अनावरण 2019 लोकसभा चुनाव में मोदी के लिए कितना मददगार साबित होगा?"

खुशदीप जी !हम जहां पहंचे कामयाब आये।

२०१५ तक शासन मोदी का है। अच्छा प्रयास किया है आपने। देश का नाम जो दुनिया भर में रोशन करे जिसके प्रधानमन्त्री बन ने के बाद हमारे अनिवासी भारतीय शान से चलें वह मोदी आपकी नज़रों में भले अहंकारी हो २०१९ फैसला सुनाएगा। बहरसूरत प्रस्तुति अपने तर्कों के साथ कसाव लिए हुए है। बधाई आपको।

दिख रही ऊंची प

गोपेश मोहन जैसवाल

लालकृष्ण अडवाणी ने दूसरा लौहपुरुष बनने की कोशिश की तो वो मार्ग-दर्शक बनकर रह गए. अब ऐसा ही हश्र उनकी गगन-चुम्बी मूर्ति बनवाने वालों का भी न हो जाए. लगता है कि हमारे ओरिजिनल लौहपुरुष को अपने नाम पर सस्ती लोकप्रियता बटोरने वाले क़तई पसंद नहीं हैं. इसीलिए इन नौटंकीबाज़ों को उनका आशीर्वाद नहीं, बल्कि उनका श्राप मिलता है. तो हे पाखंडियों ! आने वाले समय में हमारे लौहपुरुष के श्राप का परिणाम देखने के लिए तैयार रहो!

HARSHVARDHAN
6 years ago

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन स्टैच्यू ऑफ यूनिटी – लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर …. आभार।।

0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x