वो बिटिया ! आज के दौर की रानी लक्ष्मीबाई…खुशदीप

बुंदेले हर बोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी…
कवियत्री
सुभद्रा कुमारी चौहान की ये पंक्तियां
आज के हालात में फिर
याद आ रही हैं…नारी शक्ति की पहचान वीरांगना रानी झांसी लक्ष्मीबाई ने अपनी
महिला सेनापति झलकारी बाई के साथ फिरंगी सेना का मुकाबला करते हुए युद्ध के मैदान
में शहीद होना पसंद किया था, लेकिन अंग्रेज़ों की दासता नहीं मंजूर की थी…ये सब आज़ादी
से 90 साल पहले हुआ था…आज़ादी के 65 साल बाद एक और वीरांगना शहीद हुई है…23
साल की इस बिटिया ने अपनी अस्मिता बचाने के लिए छह नर-पिशाचो से तब तक संघर्ष किया
जब तक उसमें होश रहा…इस बिटिया की शहादत से पूरी दुनिया में आज लोग उद्वेलित
हैं…ये बिटिया नारी अस्मिता की सबसे बड़ी पहचान बन गई है…जिस बिटिया को हम
जीते-जी सुरक्षा नहीं दे सके, उसे मरने के बाद भी क्यों हमेशा के लिए गुमनामी के
साये में रखना चाहते हैं
? उसे क्यों आज के युग
की रानी लक्ष्मीबाई नहीं माना जा सकता
? क्यों नहीं उस
माता-पिता को सैल्यूट किया जा सकता, जिन्होंने ऐसी बहादुर बेटी को जन्म दिया
?


लड़की
की पहचान छुपाने का तर्क तब तक तो समझ आता है, जब तक वो लड़की जीवित थी…अब वो
लड़की अमर हो चुकी है…जो नुकसान होना था, हो चुका…दुनिया का बड़े से बड़ा
सुरक्षा का तामझाम भी उस लड़की को दोबारा जीवित नहीं कर सकता… ये भरपाई अगर हो
सकती है तो सिर्फ इसी बात से कि अब और किसी बिटिया को ऐसे हालात से न गुज़रना
पड़े…ये ज़िम्मेदारी जितनी सरकार और पुलिस की है, उतनी ही पूरे समाज की है…वो
समाज जो मेरे और आप से बना है…
आज मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री शशि थरूर ने सोशल माइक्रो
वेबसाइट ट्विटर पर एक सवाल रखा कि इस बिटिया की पहचान छुपाए रखने से कौन से हित की
रक्षा होगी
? थरूर ने
ये भी कहा कि अगर बिटिया के माता-पिता को ऐतराज़ ना हो तो बलात्कार विरोधी क़ानून
का नाम भी उसी के ऊपर रखा जाए…थरूर के इस बयान पर हर तरह की प्रतिक्रिया सामने
आई…किसी ने थरूर से सवाल किया कि वो क्यों सम्मान, मूर्ति और मंदिर बनाना चाहते
हैं, इसकी जगह आपराधिक न्याय व्यवस्था में वास्तविक बदलाव के लिए क्यों ज़ोर नहीं
लगाते…वही देश की पहली महिला आईपीएस अधिकारी किरण बेदी ने ट्विटर पर ही बलात्कार
विरोधी क़ानून का नाम इस बिटिया के नाम पर करने का समर्थन किया है…किरण बेदी के
अनुसार अमेरिका में ऐसा पहले हो चुका है…
जहां तक देश के क़ानून की बात है तो वह यही कहता है कि
बलात्कार पीड़ित की पहचान नहीं खोली जा सकती…कहीं भी उसके नाम का उल्लेख नहीं
किया जा सकता…ऐसा करना आईपीसी की 228-ए के तहत अपराध है…लेकिन क़ानून की दुहाई
देकर हमेशा एक ही लक़ीर को पीटते रहना क्या उचित है…इस बिटिया की शहादत के बाद जो
हालात हैं, वो रेयरेस्ट ऑफ रेयर हैं…इसलिए अब फ़ैसले भी रेयरेस्ट ऑफ रेयर ही
लेने चाहिए…इस बिटिया के चेहरे की इतनी सशक्त पहचान बन जानी चाहिए कि फिर कोई
दुराचारी ऐसा कुछ करने की ज़ुर्रत ना कर सके…उस दुराचारी को फौरन याद आ जाना
चाहिए कि देश ने एकजुट होकर कैसा गुस्सा व्यक्त किया था और उसका क्या हश्र होगा…वैसे भी हम समाज की सोच को बदलने की बात करते हैं…बलात्कार पीड़ित या उसके परिवार के लिए हम फिर क्यों इस नज़रिये को नहीं बदल सकते…पहचान छुपाने के तर्क के पीछे क्या यही सोच तो नहीं है कि बलात्कार पीड़ित या उसका परिवार हमेशा नज़रें नीचे रखकर जीने को मजबूर रहे? नज़रें तो उस समाज की नीचे होनी चाहिए जो एक बिटिया को हवस के भेड़ियों से बचा नहीं सका… 
बिटिया की पहचान सार्वजनिक
होने पर एक सवाल खड़ा हो सकता है कि उसके परिवार वालों की सुरक्षा को ख़तरा हो
सकता है…ये सवाल भी बेमानी है… क्या हमारे देश का सुरक्षा तंत्र सिर्फ वीआईपी
महानुभावों की सुरक्षा के लिए है…अगर उन्हें सुरक्षा का अभेद्य कवच देने के लिए
X, Y, Z  कैटेगरी के घेरे हो सकते हैं तो इस परिवार के लिए
क्यों नहीं…इस परिवार की बिटिया को तो हम बचा नहीं सके, फिर क्यों नहीं अब इस
परिवार को ऐसा अभूतपूर्व सम्मान दिया जाता कि हमेशा हमेशा के लिए मिसाल बन जाए…मुझे
तो यहां एक शंका भी है कि कहीं इस बिटिया और परिवार की पहचान छुपाए रखने में
सरकारी तंत्र का कहीं कोई हित तो नहीं है…आखिर क्या वजह है कि देश के हुक्मरान
तो रात के आखिरी पहरे में भी बिटिया का शव पहुंचने पर शोक जताने पहुंच गए….दूसरी
और आम लोगों की इकट्ठा होकर श्रद्धांजलि व्यक्त करने पर पहरे लगा दिए गए…कहीं
पहचान छुपाने की आड़ में ही बिटिया के परिवार पर कोई दबाव तो नहीं डाला जा रहा…


इस मुद्दे पर सब की अलग-अलग
राय हो सकती है लेकिन मेरे लिए तो ये बिटिया आज के दौर की रानी लक्ष्मीबाई ही है…आप क्या कहते हैं?