महावीर और जानकी देवी की कहानी पर अलग-अलग तरह की प्रतिक्रिया देखने को मिली…
इस पोस्ट को न पढ़ें…खुशदीप
कुछ ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि महावीर और जानकी देवी को उम्र का फर्क देखते हुए शादी नहीं करनी चाहिए थी…समाज का दस्तूर इसे मान्यता नहीं देता…कुछ ने कहा कि महावीर दत्तक पुत्र बनने जैसा कोई रास्ता निकाल सकता था…एनजीओ की मदद ले सकता था…शासन को शिकायत कर सकता था…कुछ ने महावीर के कदम को सही बताया…कुछ ने कहा जिस परिवेश में महावीर और जानकी देवी रहते हैं उसे समझे बिना कुछ कहना उचित नहीं होगा…कुछ अनिर्णय की स्थिति में दिखे…यानि कह नहीं सकते थे कि 22 साल के महावीर और 60 साल की जानकी देवी ने पति-पत्नी बनकर सही किया या नहीं…एक-आध टिप्पणी तो ऐसी भी आई…पहले महावीर के कदम को सही ठहराया…फिर उसे बदलते हुए महावीर के कदम को अगली टिप्पणी में गलत ठहरा दिया गया…यानि महावीर और जानकी को लेकर बंटी हुई राय सामने आईं…
इन सारी टिप्पणियों को पहली बात विवाद के तौर पर न देखा जाए..मेरी नज़र में ये संवाद है…समाज को उद्वेलित करने वाले मुद्दों पर इसी तरह खुल कर विमर्श होना चाहिए…इसी सिलसिले को आगे बढ़ा रहा हूं…...पहली बात तो ये हम सब नेट का इस्तेमाल करते हुए ब्लॉगिंग कर रहे हैं…इसलिए दो जून की रोटी और सिर पर छत का जुगाड़ करना हमारी चिंता नहीं है…हम पढ़े-लिखे हैं…हमारी चिंता बौद्धिक खुराक की है…ज़िंदगी में मिली सभी सुविधाओं के बीच हमारे लिए कोई राय कायम कर लेना आसान है…नैतिकता पर लैक्चर पिला देना आसान है…लेकिन महावीर और जानकी देवी का माहौल हमसे बिल्कुल अलग है…जैसा हम सोच सकते हैं, इस तरह की शिक्षा का सौभाग्य महावीर-जानकी को नहीं मिला है…हम जीने के लिए हर तरह की सुविधाएं चाहते हैं…लेकिन महावीर और जानकी के लिए तो जीना ही सबसे बड़ी सुविधा है…मेरा ये सब लिखने का मकसद महावीर और जानकी की वकालत करना नहीं है…ये भी कहा गया जो भी हो महावीर और जानकी ने जो किया उसे अनुकरणीय नहीं कहा जा सकता…सोलह आने सच बात है…किसी को भी इसका अनुकरण नहीं करना चाहिए…लेकिन कम से कम ये तो सोचा जाए कि किन हालात में जीते हुए आखिरी विकल्प के तौर पर महावीर और जानकी देवी को पति-पत्नी बनने का फैसला लेना पड़ा…जाहिर है हम उस परिवेश में जा नहीं सकते…इसलिए उस मानसिक स्थिति से भी नहीं गुजर सकते जिससे महावीर और जानकी देवी को दो-चार होना पड़ा…
मुझे यहां एक बात और खटकी…महावीर और जानकी के रिश्ते को सिर्फ सेक्स के नज़रिए से ही क्यों देखा गया…हाई क्लास सोसायटी में लिव इन रिलेशन को मान्यता मिल सकती है…पेज थ्री पार्टियों की चकाचौंध के पीछे वर्जनाओं के टूटने के अंधेरे का नज़रअंदाज किया जा सकता है…लेकिन समाज में निचली पायदान पर खड़ा कोई महावीर या कोई जानकी इस तरह का कदम उठता है तो हम सबको ये नितांत गलत नज़र आने लगता है…
विमर्श जारी रखिए…कल मैं तीन अलग-अलग कालों में उम्र के फर्क की पृष्टभूमि में औरत और मर्द के संबधों को लेकर बनी तीन फिल्मों के ज़रिए इस बहस को निर्णायक मोड़ तक पहुंचाने की कोशिश करूंगा…
(इस तरह के विमर्श के साथ स्लॉग ओवर बेमेल नज़र आता है…इसलिए स्लॉग ओवर दो दिन के ब्रेक पर…)
वो पढ़ा तो इसे भी पढ़ लीजिए…खुशदीप
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