ये है दिल्ली मेरी जान…खुशदीप

ए दिल मुश्किल है जीना यहां,  ज़रा बच के, ज़रा हट के…ये है दिल्ली मेरी जान…

गाने में बेशक मुंबई था लेकिन आज देश की राजधानी में लड़कियों या महिलाओं को यही गीत गाना पड़ रहा है…दिल्ली में घटे कुछ दृश्य देखिए…

संसद

संसद पिछले दस दिन से ठप पड़ी है…क्यों भला…सरकार और विरोधी दल आपस में भिड़े हुए हैं…विरोधी दल टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले पर संयुक्त संसदीय समिति की मांग कर रहे हैं…सत्ताधारी सांसद कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदियुरप्पा का हवाला देकर बीजेपी की हवा निकालने में लगे हैं…दोनों अपने रुख से टस से मस नहीं हो रहे…संसद के एक मिनट की कार्यवाही पर चालीस हज़ार रुपये से ज़्यादा का खर्च होता है…अब दस दिन में कार्यवाही के साठ घंटे बर्बाद होने पर कितने करोड़ टैक्सपेयर्स की जेब से चले गए, ज़रा हिसाब लगाईए…मुझे तो सड़क पर दिखने वाला वो नज़ारा याद आ रहा है, जब दो हट्टेकट्टे सांड सींग में सींग फंसा कर भिड़े होते हैं….बस खड़े रहते हैं, दोनों अपनी जगह से एक इंच भी इधर-उधर नहीं होते…

दिल्ली विधानसभा

कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले की जांच को लेकर विरोधी दल बीजेपी ने दिल्ली विधानसभा चलने नहीं दी…विधानसभा के बाहर सड़क पर भी खूब गहमा-गहमी रही…बीजेपी ने लाल किले से विधानसभा तक मार्च निकाला…मज़े की बात ये रही कि इस प्रदर्शन की अगुआई करने वालों में विजय कुमार मल्होत्रा भी शामिल थे…मल्होत्रा दिल्ली विधानसभा में नेता विरोधी दल होने के साथ इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन के सीनियर वाइस प्रेसीडेंट हैं…मल्होत्रा पिछले तीन दशक से भारतीय तीरंदाज़ी संघ के मुखिया पद को भी सुशोभित करते आ रहे हैं…कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान उनकी एक तस्वीर भी सामने आई थी जिसमें वो सुरेश कलमाड़ी के साथ राष्ट्रपति से मिलने के लिए पहुंचे थे…

धौला कुआं-सत्या निकेतन

मंगलवार की रात करीब साढ़े बारह बजे बीपीओ (कॉल सेंटर) में काम करने वाली दो लड़कियों को उनके आफिस की कैब रिंग रोड पर उतार देती है…वहां से उनकी कॉलोनी का गेट पचास मीटर की दूरी पर ही है…कैब के जाने के बाद एक मिनी टैंपो पर सवार चार दरिंदे वहां आते हैं…दोनों लड़कियों को टैंपो पर खींचने की कोशिश करते हैं…एक लड़की तो बामुश्किल बच निकलती है…नार्थ ईस्ट से ताल्लुक रखने वाली एक लड़की को जबरदस्ती टैंपो में डाल लिया जाता है…चलते टैंपो में गैंगरेप के बाद लड़की को चालीस किलोमीटर दूर ले जाकर मंगोलपुरी में पटक दिया जाता है…इस दौरान कहीं कोई पुलिसवाला या पीसीआर नहीं दिखाई देते जो टैंपो को रुकवा कर लड़की को बचा लेते…वारदात को दो दिन बीत जाते हैं और पुलिस को कोई सुराग हाथ नहीं लगता….

ये सब उसी दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की नाक के नीचे हुआ जिन्होंने दो साल पहले महिला पत्रकार सौम्या विश्वनाथन की ऐसी ही परिस्थितियों में मौत के बाद कहा था कि लड़कियां रात को सड़क पर निकलती ही क्यों है...शीला जी ने आज भी बयान दिया….बयान क्या दिया दिल्ली की कानून व्यवस्था को लेफ्टिनेंट गवर्नर और केंद्रीय गृह मंत्रालय की ज़िम्मेदारी बता कर पल्ला ही झाड़ लिया…यानि जिन हु्क्मरानों से जनता को हिफ़ाज़त की आस होती है वो खुद ही चैन की बांसुरी बजा रहे हैं…वैसे उन्हें फुर्सत भी कहा हैं…संसद और विधानसभा में रस्साकशी से वक्त मिले तब वो जनता की सोचे ना….

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