क्या हम इसी ब्लॉगिंग का हिस्सा है…आज इस पोस्ट को पढ़ कर शर्म से सिर झुक गया…किसी धर्म विशेष के लोगों का कार्टून के साथ मज़ाक बनाने की चेष्टा पोस्ट लेखक की सोच को खुद ही जाहिर कर देती है, आखिर ये जनाब कहना क्या चाहते हैं…इन्होंने पहले भी हास्य का नाम लेते हुए एक और धर्म को निशाना बनाया था…तुर्रा ये कि बाद में बाकायदा वोटिंग कराके अपनी करनी को जायज़ भी ठहराया था…ये महाशय ताल ठोक कर कहते हैं कि ये मेरा ब्लॉग है…जिसे पसंद है, पढ़ने आए…जिसे पसंद नहीं है, न आए…बिल्कुल सही कह रहे हैं जनाब…लेकिन ये मत भूलिए कि आपकी पोस्ट एग्रीगेटर पर भी है…जो कि एक सार्वजनिक मंच है…सार्वजनिक मंच पर इस तरह की हरकत का क़ानूनी अंजाम या तो आप जानते नहीं या जानना ही नहीं चाहते…अगर आप इसे ही हास्य मानते हैं तो मुझे यही प्रार्थना करनी होगी…आपको भगवान, वाहेगुरु, अल्लाह, जीसस सन्मति दें…
मैंने इस पोस्ट को लिखने से पहले सौ बार सोचा कि कहीं मैं इनकी पोस्ट का लिंक देकर अनजाने में पाप का भागी तो नहीं बन रहा…लेकिन फिर सोचा कि तटस्थ बने रहने से भी ऐसी बेजा हरकतों को बढ़ावा मिलता है…इनकी जमकर भर्तस्ना की जानी चाहिए, इसलिए मैं अपने ब्लॉग को माध्यम बना रहा हूं…अन्यथा ऐसे ही असंवेदनशील (खुद को ब्लॉगर कहने वाले) लोगों के साथ एग्रीगेटर को शेयर करना है तो ब्लॉगिंग को हमेशा के लिए राम-राम कह देना ही ज़्यादा बेहतर होगा…इनके लिंक को आप तक पहुंचाने का थोड़ा-बहुत पाप मेरे माथे पर भी आता है, उसके लिए मैं आप सबसे एडवांस में ही माफ़ी मांग लेता हूं…
एक प्रार्थना चिट्ठाजगत के संचालकों से भी, क्या किसी धर्म विशेष के लोगों को हास्य के नाम पर निशाना बनाने वाली पोस्ट को एग्रीगेटर पर स्थान दिया जाना चाहिए, आशा है आप इस सवाल पर गंभीरता से विचार करेंगे…
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हर बात का रुख अपनी सोच के अनुरूप मोडने की कोशिश न किया करें
मैंने कहा है कि हर बात का …….रुख मोडने की कोशिश
bhasha vigyaan ki drishti sae dono baat mae bahut antar haen aur dono kaa jwaab bhi alag alag hoga
खुशदीपजी, यदि सम्भव हों तो कृपया मेरी पोस्ट 'उन्हें हँसिये निगलने दीजिए' पढिएगा। शायद आपको अच्छी लगे।
मुझे पर्मालिंक देना नहीं आता। क्षमा कीजिएगा।
जी सही कहा आपने मैं उतना समझदार नहीं हूं ….मगर जरा ठीक से पढिए …..मैंने कहा है कि हर बात का …….रुख मोडने की कोशिश …लेकिन आप समझ नहीं सकतीं ये बात ….रचना जी
रचना जी हर बात का रुख अपनी सोच के अनुरूप मोडने की कोशिश न किया करें
kamaal haen soch sabki shayad apni hi hotee haen lekin aap nahin samjh saktey yae baat ajay ji
thanks kushdeep for your reply to my comment yes this what blogging is all about to comment on what we read and not comment just on our group or friends blog
7/10
very good & nice
कमेन्ट तो मैने भी किया था लेकिन कुछ पल्ले नही पडा था मगर ब्लाग का टाईटिल देख कर ही मैने उसी तरह लिख दिया कि लो मुस्कुरा दिये। पहले वाली जो लिन्क दिये वो अभी पढे हैं। बहुत शर्म की बात है सीता वाली पोस्ट पर तो सिर शर्म से झुक गया। आगे से तो मजाक पर भी कमेन्ट देने से पहले सौ बार सोचना पडेगा। धन्यवाद इस जानकारी के लिये। शुभकामनायें
रचना जी हर बात का रुख अपनी सोच के अनुरूप मोडने की कोशिश न किया करें …..रही बात आपत्ति की ..तो उन पोस्टों पर भी जिन्हें आपत्ति थी उन्होंने उठाई ही होगी ..और सवाल ये नहीं है कि .हमने और हमारे जैसे अन्य साथियों ने कब किस पोस्ट पर आपत्ति जताई या नहीं जताई ..क्योंकि ये सबका अपना अपना निर्णय है …हां फ़र्क सिर्फ़ इतना है कि ..उस आपत्ति का साथ देने वाले कितने हैं ..ताकि कम से कम ये तो लगे कि ….आपत्ति में वाकई तर्क था वजह थी ..। और आप खुद देखें कि न सिर्फ़ इस पोस्ट पर बल्कि अन्य पोस्टों पर भी यही लागू होता है …सेलेक्टिव तो सब कुछ ही होता है ….फ़िर नैतिकता भी क्यों नहीं …आखिर ब्लॉग्स भी हम सेलेक्टिव ही पढ रहे हैं …वर्ना यहां अंतर्जाल पर ..जाने कितना कूडा कचरा भरा पडा है …और मैंने जो कहा है …वो कानून के अनुसार है ….माना जाता है वो कहा है…। उम्मीद है कि मैं अपनी बात कह पाया हूं …रही बात लिंक देने की ..तो बहुत सी बातों को समय अपने गर्त में छुपा इसीलिए लेता है कि अगला कोई सकारात्मक सृजन उसी मिट्टी पर हो सके ..बस अब इससे ज्यादा नहीं कहूंगा । प्रणाम
खुशदीप सर, आप बड़े आदमी है, मीडिया से हैं, आपकी नाराज़गी जायज है भारत वर्ष में – और अपन एक टटपुंजिया ब्लोगर क्या बिसात रखते हैं…. ये मैं नहीं जनता………… उस दिन रामजी वाली बात पर इन्होने जिद लगा रखी थे और अपनी बात को उचित ठहराने के लिए वोटिंग भी की.
आपकी बात मान ली गयी ….. क्योंकि आप समर्थवान हैं. मैं फिर से कहूँगा कि इस बंदे की मानसिकता सहीं नहीं है………. दबाव में जो झुक जाए मैं उसे इंसान नहीं कहता…… बाकि आप सभी मूर्धन्य विद्वान हैं ………. काबिल हैं…… खुद फैसला कीजिए…….
अंत भला सो सब भला ।
कल से बाहर था इसलिए इस पोस्ट को नही देख सका!
—
आपने बहुत ही सटीक पोस्ट लगाई है!
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ऐसे कृत्यों की भर्त्सना करता हूँ!
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नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएँ!
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जय माता जी की!
गजेंद्र भाई,
मैं चाहते हुए भी इस पोस्ट को नहीं हटा सकता…क्योंकि इसके साथ कई लोगों के विचार कमेंट्स के तौर पर जुड़ गए हैं…जो सिर्फ आप ही से न जुड़े होकर और सकारात्मक विरोध जैसे और भी गंभीर मुद्दों से बंधे हैं…इन्हें हटाने का मतलब उनके साथ नाइंसाफ़ी होगी…आपने मान लिया, इससे बड़ी बात दुनिया में और कोई नहीं हो सकती…विनम्र होना ही इनसान की सबसे बड़ी खूबी है….अकड़ते तो वही है जो मुर्दे होते हैं…
आशा है आप इसे मेरी विवशता समझते हुए अन्यथा नहीं लेंगे…हां, इस पोस्ट को पीछे करने के लिए मैं ज़रूर नई पोस्ट डाल रहा हूं…
जय हिंद…
सबसे पहली बात तो ये साफ़ कर दूं कि नोएडा के जिस सेक्टर में मैं रहता हूं, वहां का टेलीफोन एक्सचेंज आज तड़के आग में राख हो गया है…इसलिए न घर में लैंडलाइन फोन काम कर रहा है, न ब्रॉडबैंड…इसलिए साइबर कैफे में आकर ये कमेंट दे रहा हूं…
सबसे पहले तो गजेंद्र जी को तहे दिल से बधाई, उन्होंने सबका मान रखते हुए, अपनी पोस्ट पर जो भी आपत्तिजनक था, सब हटा दिया….
दूसरी बात अंशुमाला और रचना जी का आभार…उन्होंने खुले दिल से अपने विचार व्यक्त किए…ब्ल़ॉगिंग का यही मतलब है, सकारात्मक विरोध का सम्मान किया जाना चाहिए…यहां सब पढ़े-लिखे हैं और ये जानते हैं कि क्या लिखना गलत है और क्या सही…हर ब्लॉगर अगर खुद ही लेखक के साथ संपादक की भूमिका भी निभाए तो अप्रिय स्थिति आ ही नहीं सकती…
रही बात, सेंस ऑफ ह्यूमर की तो किसी व्यक्ति विशेष, धर्म, जाति, प्रांत, राष्ट्रीयता को लेकर उपहास उड़ाने वाला हास्य निश्चित तौर पर निंदनीय है…लेकिन अगर जैनरलाइज़ वे में पति, पत्नी, दोस्त या अन्य कोई वस्तु ( क़ॉमन नाउन) को लेकर आप विशुद्ध हास्य के लिए कुछ लिखते हैं तो उसे किसी के साथ न जोड़ते हुए सभी को उसका आनंद लेना चाहिए…
यहां मैं ये भी कहूंगा, कहीं लोग मैंने ऐसे भी देखे हैं कि जो दूसरे पर चुटकी किए जाते वक्त बहुत खुश होते हैं लेकिन
जब अपनी बारी आती है तो लाल-पीले होने लगते हैं…स्पोर्ट्समैनशिप कहती है कि खुद या किसी और द्वारा अपने पर ली जाने वाली चुटकी का भी भरपूर आनंद लिया जाए…लेकिन इसके लिए बहुत बड़ा दिल और हौसला चाहिए…यही तो वजह है कि मैं अपने गुरुदेव समीर लाल समीर जी का इतना सम्मान करता हूं…
आखिरी बात बंटी चोर जी के लिए,
यार मैं सब कुछ टिप्पणियों के लिए ही तो करता हूं…पढ़ते रहोगे तो सीखते जाओगे…
जय हिंद…
खुशदीप जी, आप की बात से सहमति, बाकी विघ्न संतोषियों के लिये पहले ही श्रद्धान्जलि….
@ जब आप को पता था कि मै भगवान में विश्वास नहीं करती तो मुझसे वो सवाल किया ही क्यों
@अंशुमाला जी
इसका मतलब आपने सवाल ठीक से पढ़ा नहीं है
बस यही गड़बड़ है, यहीं तो दो विचार आ रहे हैं एक साथ
@धार्मिक प्रतिको कि जगह जीवित इंसानों से ज्यादा जुडी हु |
जब आपके पहले कुछ लोग विरोध कर चुके थे तो उनकी भावनाओं का ख्याल नहीं आया आपको ??
ठीक है बाकी बहस मेरे ब्लॉग पर ही कर लेंगे
गौरव जी
जब आप को पता था कि मै भगवान में विश्वास नहीं करती तो मुझसे वो सवाल किया ही क्यों | जी हा यही करण है कि मैंने अपनी दूसरी टिप्पणी में धर्म के साथ कट्टरता को नहीं जोड़ा क्योकि उससे मै नहीं जुडी हु मै नहीं समझ सकती कि इस तरह के मजाक पर लोगों को इतना क्रोध क्यों आता है धार्मिक प्रतिको कि जगह जीवित इंसानों से ज्यादा जुडी हु और उस पर किये मजाक को महसूस कर सकती हु | और बाकि हमारी बहस आप के पोस्ट के लिए छोड़ देते है |
खुशदीप जी
मुझे तो लगता है कि इस पोस्ट को बने रहना चाहिए ताकि भविष्य में आने वाले नए ब्लोगर यदि यही गलती करे तो फिर से वाद विवाद करने और फिर से नई पोस्ट लिखने के बजाये उसे सिर्फ इस तरह कि पोस्टो का लिंक दे दिया जायेगा उसे समझा आ जायेगा |
नवरात्रो की आपको भी शुभकामनायें। हुन्न ठंड रखो जी, ऎथे बड्डॆ बड्डॆ नमुने होर भी हेंगे….. जल्दी ही मिलांगें:)
@ अंशुमाला जी
मैं अपना स्पष्टीकरण दे दूँ
@जब अपने धर्म पर आई तो सभी को मानवता इज्जत सब याद आ गया
मुझे तो कभी पता नहीं था इस पोस्ट के बारे में वो तो कमेन्ट से पता चला जब मैं सिक्खों पर बने चुटकुलों का विरोध मेरी पोस्ट के जरीये कर रहा था
http://my2010ideas.blogspot.com/2010/10/blog-post_03.html
@" मुझे तो मजा आया" उस पूरी बहस पर
ये उत्तर सोचने में दो तीन दिन तो लगा ही दिए आपने
http://my2010ideas.blogspot.com/2010/10/blog-post_03.html
आपको मजा आने का कारण है आप भगवान् पर विशवास नहीं करती
अगर आप के पास उत्तर होता तो आपने जरूर दे दिया होता
यही सवाल पूछा था ….. आज यहाँ उत्तर मिला है… मान गए आपको
please read this too ……
http://my2010ideas.blogspot.com/2010/10/blog-post_06.html
राम इस बार जनता से हार गया और इसीलिए स्वर्ग सिधार रहा है मानवतावाद"> [Extra post ]
राम इस बार जनता से हार गया और इसीलिए स्वर्ग सिधार रहा है मानवतावाद [Extra post ]
हास्य जब नेह के नातो से आता हैं और हास्य नहीं होता आपत्ति तब भी दर्ज करे
वोटिंग इस पोस्ट पर भी हुई थी http://bspabla.blogspot.com/2009/10/blog-post_09.html
हास्य यहाँ भी नहीं था पर ताली खूब बजी
http://doordrishti.blogspot.com/2009/10/blog-post_10.html
विद्रूपता और अश्लीलता अगर और माध्यमो मे हैं और आप ब्लॉग पर लिख कर उसको दूर करना चाहते हैं तो पहले अपने ब्लॉग पर से तो उसको हटाये ।http://parayadesh.blogspot.com/2010/03/blog-post_17.html
और पता नहीं किसकी किसकी टिप्पणी भी मिटा दी है उसने। देख लो आप सब
क्षमा मांगने के बाद सरदार शब्द के बदले दोस्त लिखकर गजेन्द्र सिंह ने फोटो बदल दिया था। अब धमकी देने के बाद आदरणिय नरेन्द्र मोदी जी वाली वह फोटो भी हटा दी है उसने और नीचे दी गई सिक्ख बुजुर्ग वाली फोटो भी हटा दी है। बहुत बहादुर बनता था यह बी एड करने वाला। सारी अकड़ निकल गई।
और जान लीजिये कि बंटी का पता भी मिल गया!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!111
@ भाई गजेन्द्र जी,
जिनसे आप कह रहे है वो खुद सस्ती लोकप्रियता पाना चाहते है …. आपने तो जन भावना के नाम पर अपनी पोस्ट में परिवर्तन कर लिया लेकिन ये साहब तो खुस होंगे इतनी तिप्प्निया पाकर …… नहीं तो अभी तक इस पोस्ट में भी परिवर्तन हो ही जाता …… खैर हम लिखते है अपने लिए जिसे पसंद है वो पढ़े जिसे नहीं वो भोक्ता रहे ….
यहाँ पर आये और कहे जो कहना चाहते है ….
http://chorikablog.blogspot.com/2010/10/blog-post_10.html
आप को याद होगा जब ब्लोगरा शब्द के लिये मैने डॉ मिश्र को कहा था कि उनपर यौनिक शोषण का आरोप हो सकता हैं उस समय बहुतो ने इसके विरोध मे मेरे खिलाफ बहुत जहर उगला था और उसको हास्य कि परिभाषा दी थी आज अजय जी कह रहे हैं
"…कानून के अनुसार यदि कोई जानबूझ कर किसी की कैसी भी भावना चाहे वो धार्मिक हो या दैहिक , लैंगिक हो…" ज़रा अब उस मुद्दे पर दुबारा विचार करे सब और सेलेक्टिवे नैतिक ना बने
ब्लॉग एक सार्वजनिक मंच हैं । यहाँ अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता हैं । लेकिन हास्य का अर्थ क्या हैं ???? कानून के दायरे मे क्या सही हैं क्या गलत हैं ??? ये बताने से पहले हम सब को वो सब याद रखना होगा जो हमने पहले कहा ।
बाकी अंशुमाला ने सब कह ही दिया हैं हां हिंदी ब्लोगिंग को परिवार मानने वाले न्याय को अपनी जेब मे रख कर घुमते हैं
खुशदीप जी
धन्यवाद पत्नी लिखने की मेरी मंसा यही थी की आप ये जवाब दे जो आप ने दिया अब इसे समझिये आप ने कहा की ये @परिस्थितिजन्य हास्य है
@ हास्य को भी विरोध की सीमाओं से बांधने लगेंगे तो फिर तो सेंस ऑफ ह्यूमर जैसी कोई बात ही नहीं रहेगी.
यही तो मै कह रही हु की हास्य का पैमाना क्या होगा हो सकता है पत्नी वाले मजाक से किसी महिला को दिल को ठेस पहुचे यदि वो इसका विरोध करे तो हम सभी यही कहेंगे ना की वो कुछ ज्यादा ही कट्टर है क्या ये कट्टरता सही है |
कोई पति इन्ही मजाको को लेकर आपने पत्नी का या इसका उलटा या कोई पुरुष महिलाओ को या महिला पुरुष का हर समय मजाक उड़ाने लगे उसे बेफकुफ़ कहे कम अक्ल कहे और एक आदत बना ले तो ये एक परिपाटी बन जाये तो उसे क्या कहंगे |
मतलब की हास्य, मजाक का पैमाने क्या होगा और इसे कौन तय करेगा | जो मजाक बनाएगा उसे तो ये हमेसा हास्य ही लगेगा पर जिस पर मजाक बनेगा उसे तो बुरा ही लगेगा चाहे वो कोई भी हो |
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जी,
मेरे ब्लॉग पर दी गयी पोस्ट पर तो आप सभी ने विरोध जाता दिया और मैंने जन भावनाओ का सम्मान करते हुए अपनी पोस्ट में आवश्यक परिवर्तन भी कर दिए … लेकिन आप भी अपनी ये पोस्ट हटा दे तो अच्छा रहेगा ….. भविष्य में मेरे ब्लॉग पर किसी भी धर्म के बारे में कोई उपहास नहीं किया जायेगा ..
इन गजेन्द्र जी को पहले भी बहुत प्यार से समझाया गया था पहले की पोस्ट पर … लेकिन इनकी दुम सीधी नहीं हो रही है … इनकी एक खासियत और भी है … टिप्पणियों को अपने हिसाब से संपादित भी कर लेते हैं कभी कभी … मेरी एक टिप्पणी को संशोधित कर के कुछ और ही बना दिया गया था … इसी से इनकी मानसिकता और कमीनेपन की झलक मिल गयी … ब्लॉग जगत में बहुत से उल्लू ऐसे घूम रहे हैं किस किस को ठीक करियेगा … लेकिन एक बात आपकी भी लाख पते की है कि ऐसी किसी भी चेष्टाओं के प्रति हम तटस्थ रहके ही हम कौन सा तीर मार रहे हैं… इसका मुखर विरोध होना चाहिए विरोध होना चाहिए…
और करते रहो आलोचना …. लेकिन मेरे ब्लॉग पर आकर
अमर जीत तुम कितने दिन में पता करोगे जवाब…..
http://chorikablog.blogspot.com/2010/10/blog-post_10.html
और इसकी मूल पोस्ट यहाँ पर पढ़े ….
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/10/blog-post_08.html
हम भी उस जगह पर टिपिया आये है कि………….
ऊपर लगी फोटो में किनारे बैठे आदरणीय नरेन्द्र मोदी जी को दारू का गिलास थामे दिखाया गया है। उस मुख्यमंत्री ने दारू का गिलास पकड़ा हुया है जिस प्रदेश में शराबबंदी है!!!!!!!
और आप दिखाना चाह रहे हैं कि नरेन्द्र मोदी जी की दोस्ती मुसलमानों के साथ है? लम्बी दाड़ी और ऊँची हरी टोपी वाला मुसलमान ही है ना? मतलब मुसलमान भी दारू पीते हैं? उनके धर्म में तो यह सब हराम है।
और नीचे वाली फोटो में सिक्ख बंदा सीटी बजा रहा है कि साबुन के बुलबुले उड़ा रहा या बिडी सिगरेट है। यह बात तो दमदमी टकसाल वाले आपसे पूछ ही लेंगे।
आपने शीर्षक में पूछा है कि आपको कितने दिन लगेंगे बताना जरूर्। तो मैं यह बता दूँ कि इन दोनों फोटो को आदरणीय नरेन्द्र मोदी जी के समर्थकों और अकाल तख्त वालों के सामने ले जा रहा। अब उन्ही को बताना आप कि यह हास्य है या सत्य।
दोपहर के बारह बजे तक आपने फोटो समेत यह पोस्ट नहीं हटाई तो फिर देखेंगे कि बारह किसके बजते हैं। बाद में नहीं कहना कि पहले बताया नहीं। अब आप ही बतायो कितने मिनट लगेंगे यह पोस्ट हटाने में।
अंशुमाला जी की टिप्पणी पर गौर किया जाय..
..जब इन्होने ईसा मसीह पर चुटकुला बनाया तो भी सब ने मजे लिए किसी ने विरोध नहीं किया शायद हिंदी ब्लॉग पर कोई ईसाई नहीं है या उनका ध्यान उस पर नहीं गया पर बवाल तब हुआ जब उन्होंने रामायण पर चुटकुला लिखा | जब अपने धर्म पर आई तो सभी को मानवता इज्जत सब याद आ गया|…
…गलत हमेशा गलत होता है। यह नहीं कि मुझ पर कोई हंसे तो गलत, मैं किसी पर हंसूँ तो सही। हिन्दू समाज में इक दूजे पर जाति विशेष टिप्पणी करने और मजाक उड़ाने की प्राचीन कुप्रथा है..दुःखद पहलू यह है कि पढ़ने लिखने वाले भी व्यंग्य के नाम पर कुरूपता ही परोसते हैं। जब कभी, जहाँ कहीं ऐसी ओछी हरकत, जिस किसी के साथ भी की जाय, समझदारों को विरोध करना चाहिए।
…जब आप गली-मोहल्ले में, दोस्तों के साथ बातचीत में, ऐसे चुटकुलों को पढ़कर आनंदित होते हैं और मजा लेते हैं तो निश्चित है कि जब आप उजले वस्त्र पहन, बगुले भगत बन, हंस की सभा में बैठेंगे तो वहाँ भी इन ओछी हरकतों से दो-चार होंगे।
…आइए हम सभी स्तर पर, सभी के प्रति, इसका दिल से विरोध करने की कसम खाएँ। धर्म-जाति से ऊपर उठकर, मानवता को गले लगाएँ।
..विचारोत्तेजक पोस्ट के लिए आभार।
उक्त ब्लोगर द्वारा इस तरह की पोस्ट लिखना बहुत ही निंदनीय कुकृत्य है जिसकी जितनी आलोचना व निंदा की जाय कम ही है |
शायद उन्होंने क्षमा मांग भी ली है
सम्मति की जगह सन्मति पढ़ें…
जय हिंद…
चलिए विरोध करने का असर ये तो हुआ उन्होंने सरदार शब्द हटाया, कार्टून में भी कुछ बदलाव किया…लेकिन एक तस्वीर को न हटाने पर अब भी वो अड़े हुए हैं…इंतज़ार करते हैं कि कब तक पूरी सम्मति आती है…
जय हिंद…
अंशुमाला जी,
आपने अतीत में की गई मेरी एक गलती की ओर ध्यान दिलाया…उसके लिए आभारी हूं…मुझे मल्लू शब्द का
इस्तेमाल नहीं करना चाहिए था…लेकिन आप पति, पत्नी, रिश्तों को भी समुदाय से जोड़ कर रख रही हैं तो यहां मेरी राय आपसे अलग है…पति-पत्नी की आपसी नोक-झोंक न हो तो जीवन ही नीरस हो जाए…मैंने पत्नियों पर चुटकी ली तो पतियों की भी कम खबर नहीं ली…मैं अपने पर भी हंसना जानता हूं…जो अपने पर नहीं हंस सकता, उसे दूसरों पर हंसने का कोई अधिकार नहीं है…परिस्थितिजन्य हास्य और धर्मविशेष को निशाना बनाकर किए गए हास्य में बहुत फर्क होता है…धर्म पर ज़रा सी चिंगारी भावनाओं की आग को सुलगा सकती है…लेकिन अगर रोज़मर्रा की छोटी-छोटी बातों से पैदा होने वाले हास्य को भी विरोध की सीमाओं से बांधने लगेंगे तो फिर तो सेंस ऑफ ह्यूमर जैसी कोई बात ही नहीं रहेगी…जिन साहब का लिंक मैंने इस पोस्ट में दिया है, उनसे कोई निजी तौर पर कोई आपत्ति नहीं है…मैंने उन्हें पहले भी सावधान रहने के लिए कहा था…अब वो सबके समझाने के बाद भी गलती पर गलती किए जा रहे हैं तो मैंने ये पोस्ट लिखी…एक बार फिर आपका आभार…
जय हिंद…
कानून के अनुसार यदि कोई जानबूझ कर किसी की कैसी भी भावना चाहे वो धार्मिक हो या दैहिक , लैंगिक हो या कोई और …का मजाक उडाता है ..वो भी तब जबकि उसे जताया बताया जा चुका है कि ..ऐसा करके वो किसी को दुख पहुंचा रहा है …तो निश्चित रूप से अपराध की श्रेणी में आता है ..इससे पहले तक ..सब हास्य है ..।
खुशदीप जी
टिप्पणी में जो कहने जा रही हु उसके लिए पहले ही माफ़ी माग ले रही हु कोई भी इसे व्यक्तिगत रूप में ना ले |
हास्य में इस बात का पैमाना क्या होगा की कौन सा हास्य है और कौन सा किसी का मजाक | दिख तो ये रहा है जब हमारे धर्म बिरादर पर हमला हो तो हम बोलेंगे नहीं तो या तो मजे लेंगे या फिर तटस्थ बने रहेंगे या खुद भी इसी तरह किसी समाज का मजाक बनायेंगे बिना कुछ सोचे | शुरू के दो तीन बात जब मैंने इनको पढ़ा तो इनके चुटकुले अश्लील थे पर किसी ने कुछ नहीं कहा सबने मजे लिए जब इन्होने ईसा मसीह पर चुटकुला बनाया तो भी सब ने मजे लिए किसी ने विरोध नहीं किया शायद हिंदी ब्लॉग पर कोई ईसाई नहीं है या उनका ध्यान उस पर नहीं गया पर बवाल तब हुआ जब उन्होंने रामायण पर चुटकुला लिखा | जब अपने धर्म पर आई तो सभी को मानवता इज्जत सब याद आ गया | उस दिन की बहस देख कर मुझे इतना गुस्सा आया की अब सबकी नींद खुली है मै जो कभी उनको टिप्पणी नहीं देती थी विरोध स्वरूप उस दिन मैंने साफ लिखा की " मुझे तो मजा आया" उस पूरी बहस पर | अब आपने आज ये बात लिखी है की ये किसी समुदाय का मजाक है अपने पर मजाक हर समुदाय को बुरी लगती है चाहे वो सरदार हो या मल्लू या फिर पत्निया | मै इस तरह के किसी बातो का विरोध टिप्पणी दे कर नहीं करती हु मुझे बुरा लगा ये मेरी व्यक्तिगत विचार है बाकि तो मजे ले रहे है | आप ने विपरीत विचार लिखने की छुट दी है और आज ये बात उठाई है तो मै ये टिप्पणी दे रही हु | आशा है सभी इसे सकरात्मक रूप में लेंगे |
निश्चित ही आजतक जितने चुटकुले सरदारों को लेकर कहे गये हैं उतने शायद किसी के लिए न कहे गये होंगे…
किन्तु जब उद्देश्य किसी को इस माध्यम से नीचा दिखाना हो तो बात गलत हो जाती है…स्थितियों की गंभीरता को मैने भी कमेंट करने के बाद जाना और फिर कहा:
*****
शायद इसीलिए बुजुर्गों ने समझाया होगा कि पब्लिक में धर्म और राजनिति की बात संभल कर करना चाहिये.
इतना कुछ कहने से ज्यादा उचित होता कि यदि किसी की भावनाओं को ठेस पहुँची हो तो उससे क्षमा मांग ली जाये
*****
शायद उन्होंने क्षमा मांग भी ली है इसके बाद…
" पहली बार आपका ब्लॉग देखा था तो लगा था कि खुले दिमाग का बन्दा है ज़िन्दगी के पलो में हास्य खोज लेता है …. पर अब लगता है आपका मकसद केवल इस प्रकार से सस्ती लोकप्रियता पाना ही है !
आज आप बारी बारी सभी धर्मो पर या उनके मानने वालो पर लतीफे सुना रहे है कल कुछ और नया शगूफा ले कर आयेगे …..क्या जरुरत है इस सब की ? आप इन सब के बिना भी काफी हास्य पैदा कर सकते है ….. कोशिश तो कीजिये ! आपकी पोस्ट की मैंने चर्चा भी की थी …. पर शायद गलती की ! जहाँ तक अपनी बात कहने के लिए शब्दों के चुनाव की बात है तो मैं आपको यकीन दिलाना चाहूँगा ….मैं आप से रुबारु होता तो शायद मेरे शब्द कुछ और ही होते …. हर किसी की कुछ हरकते बर्दाश्त करने की एक हद होती है और आप मेरी उस हद को पार कर चुके है ! शुभकामनाएं ! "
यह मेरा कमेन्ट है उस ब्लॉग पर…..वैसे बन्दा किसी भी तरह से मानने वाला नहीं लगता ! हर किसी से तो बहस पर उतारू हो जाता है !
…. बहुत बेलिजरेंस है….वो क्या कहते हैं…. हिंदी में…. अरे! याद नहीं आ रहा है…. म्मम्म ……… म्मम्मम्मम्म ………. हाँ! याद आ गया….'वैमनस्यता"……… या फिर 'वैमनस्यता" फैलाया जा रहा है… मेरा मन तो करता है…. कि हर कोई जो दूसरे के धर्मों को गाली देता है… या फिर खराब कहता है… उसका पिछवाड़ा खराब कर दूं… हे हे हे ……. वैसे गजेन्द्र का ब्लॉग व्यंग्य के हिसाब से तो ठीक है…. कभी कभी गलती हो ही जाती है… बस ऐडामेंट नहीं होना चाहिए….
जय हिंद….
खुशदीप भाई
इस निंदनीय कार्य की घोर भर्तसना करते हैं।
आपके द्वारा दी गई लिंक के माध्यम से इस ब्लॉग तक जाना हुआ । ऐसा नहीं है कि हमारे देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर या हास्य व्यंग्य के नाम पर सब जायज़ है । व्यंग्य लिखना आसान भी नहीं है । हमारे यहाँ हिन्दी साहित्य में परसाई , शरद जोशी , रवीन्द्रनाथ त्यागी जैसे विख्यात व्यंग्यकार हुए हैं । इन लोगों ने जब भी व्यंग्य के विषय के रूप में किसी धर्म को लिया उसकी कुरीतियों , सड़ी गली और पुरानी ,त्याज्य मान्यताओँ पर प्रहार किया लेकिन कभी भी धर्म के लिए अपशब्द नहीं कहे । यही कारण रहा कि वे न केवल साहित्य में अपितु जनमानस में भी लोकप्रिय रहे । यह हमारे बौद्धिक विकास पर निर्भर करता है कि हम इस तरह के प्रयासों को किस तरह लेते हैं । विशुद्ध हास्य के लिये भी हमारे देश में ऐसी स्थितियाँ नहीं हैं कि हम इस तरह किसी भी बात पर हँस सकें ।
वाह खुशदीप भाई अब तेवर सही जा रहे हैं आपके ..सच कहा आपने कि अब तटस्थ रहके ही हम कौन सा तीर मार रहे हैं तो ऐसे ही सही …मैं उन गजेन्द्र सिंह जी से अपनी पुरानी टीप मिटा कर एक नई लिख कर आया हूं और आग्रह भी कर आया हूं …देखता हूं कि वे मानते हैं या कि मुझे भी ब्लॉग से बाहर का रास्ता दिखाते हैं
खुशदीप सर, इसी ब्लॉग मैंने तकरीबन १ महीने पहले इनको चेताया था. तो महाशय ने काफी बवाल मचा कर अन-शन पर बैठ गए. आपने ठीक फ़रमाया – उसके बात इन्होने वोटिंग करवाई थी अपने ब्लॉग पर. .
फिर धड़ले से धार्मिक भावनाओं पर लिखने लग गए..
इनको शर्म भी नहीं आती………
अब क्या कहा जा सकता है…..
बस सभी लोग इनको सामाजिक बहिष्कार करो.