अस्सी के दशक के शुरू में नर्गिस की कैंसर से मौत के बाद उनके पति सुनील दत्त ने एक फिल्म बनाई थी दर्द का रिश्ता…उस फिल्म से खुशबू ने बाल कलाकार के तौर पर शुरुआत की थी…वही खुशबू जो साउथ की टॉप हीरोइन बनी और शादी से पहले यौन संबंधों को जायज़ करार देने वाले बयान देकर विवादों के घेरे में रहीं…खैर आज फादर्स डे 100 साल का हो गया है, इसलिए बात सिर्फ पिता की…पहले ये गाना सुन लीजिए…
मां की जगह बाप ले नहीं सकता, लोरी दे नहीं सकता
कल यूपी में बीएड एन्ट्रेंस का इम्तिहान था…कई माओं ने भी ये इम्तिहान दिया…मां अंदर हाल में जिस वक्त इम्तिहान दे रही थीं…उनके पति बाहर गर्मी में बच्चों को संभाल रहे थे…उन बेचारों की हालत देखते ही बनती थी…वाकई उन्हें दो-तीन घंटे में ही आटे-दाल का भाव पता चल रहा था कि किस तरह बच्चों को संभालने के लिए माओं को मशक्कत करनी पड़ती होगी…
आज फॉदर्स डे पर बी एस पाबला जी ने भी बड़ी शानदार पोस्ट लिखी है-मेरे पापा को तो बर्दाश्त करना मुश्किल होता जा रहा है…इसमें पाबला जी ने बड़े सटीक ढंग से बताया है कि किस तरह चार साल की उम्र से लेकर 60 साल की उम्र तक पापा को लेकर विचार बदलते बदलते फिर वहीं आ टिकते हैं जहां से शुरू हुए थे…
मैं पाबला जी की पोस्ट पढ़ने के बाद बस इतना ही कहना चाहूंगा…
हम उन किताबों को काबिल-ए-ज़ब्ती समझते हैं,
जिन्हें पढ़कर बेटे बाप को ख़ब्ती समझते हैं…
फादर्स डे का इतिहास
वाशिंगटन स्पोकेन के सोनोरा स्मार्ट डॉ़ड की पहल पर सबसे पहले 19 जून 1910 को फादर्स डे मनाया गया…उन्हें फादर्स डे का विचार मदर्स डे के बढ़ते प्रचार और आयोजनों से मिला था…दिलचस्प बात ये है कि जहां मदर्स डे, डॉटर्स डे, टीचर्स डे, वेलेटाइंस डे आदि की तारीख दुनिया भर में एक सी रहती है…वहीं फादर्स डे अमेरिका, यूके, कनाडा, हांगकांग, जापान, पाकिस्तान, मलयेशिया, चीन और भारत समेत 55 देशों में जून के तीसरे रविवार को मनाया जाता है…
सर्बिया में 6 जनवरी, रूस में 23 फरवरी, पुर्तगाल-इटली समेत 8 देशों में 19 मार्च, रोमानिया में मई का दूसरा रविवार, डेनमार्क में 5 जून, इजिप्ट समेत 5 देशों में 21 जून, डोमिनिकन रिपब्लिक में जुलाई का आखिरी रविवार, ताइवान में 8 अगस्त, आस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड समेत 4 देशों में सितंबर का प्रथम सप्ताह, स्वीडन समेत 5 देशों में नवंबर के दूसरे रविवार, थाइलैंड में 5 दिसंबर और बुल्गारिया में 26 दिसंबर को इसका आयोजन किया जाता है…
लेकिन ये सब उस युग की देन है जहां माता-पिता के लिए वक्त ही नहीं होता…सिर्फ एक दिन फादर्स या मदर्स डे मनाकर और कोई गिफ्ट देकर उन्हें खुश करने की कोशिश की जाती है…लेकिन ये भूल जाते हैं कि मां के दूध का कर्ज या बाप के फ़र्ज का हिसाब कुछ भी कर लो नहीं चुकाया जा सकता…ये फादर्स डे या मदर्स डे के चोंचले छोड़कर बस इतनी कोशिश की जाए कि दिन में सिर्फ पांच-दस मिनट ही बुज़ुर्गों के साथ अच्छी तरह हंस-बोल लिया जाए…यकीन मानिए इससे ज़्यादा और उन्हें कुछ चाहिए भी नहीं…
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