(फोटो Stu: Engerland’s Greatest Patriot के ट्विटर हैंडल से साभार)
इतिहास की किसी
हस्ती की पत्थर या धातु से बनी मूर्ति को निशाना बनाया जाए, उसमें तोड़फोड़ की जाए? अब एक और सूरत ली जाए,
ऐसा ही हमला अगर पत्थर की किसी आम दीवार पर किया जाए या लोहे के
किसी साधारण गेट को निशाना बनाया जाए, उसे नष्ट कर दिया जाए?
इन दोनों हालात में क्या फ़र्क है? है तो
दोनों जगह ही पत्थर या धातु से हुए किसी निर्माण पर हमला. भौतिक स्थिति कहती है
दोनों सूरतों में अपराध एक जैसा है इसलिए सज़ा भी एक जैसी ही होनी चाहिए.
नामचीन लोगों
या महापुरुषों की मूर्तियों पर तोड़फोड़ और साधारण दीवार या गेट पर तोड़फोड़ में
सबसे बड़ा फ़र्क़ है भावनाओं का. जी हां, मूर्तियों की स्थिति में जिस तरह महापुरुषों या चर्चित हस्तियों के साथ
बड़ी संख्या में लोगों की भावनाएं जुड़ी होती है, वैसा
जुड़ाव पत्थर या लोहे के किसी साधारण निर्माण के साथ नहीं हो सकता.
ऐसा ही कुछ
दिलचस्प सवाल ब्रिटेन की संसद में उठा है. दरअसल ब्रिटेन में एक ऐसा कानून
प्रस्तावित है जिसमें मूर्तियों में तोड़फोड़ किए जाने को अपराध की श्रेणी में
लाने का प्रावधान है. कानून का मकसद इस तरह की हरकतों से होने वाले भावनात्मक
नुकसान को रोकना है. अगर ये कानून पास होता है तो मूर्तियों पर हमला या तोड़फोड़
का किसी पर दोष साबित होने पर उसे 10 साल जेल तक की सजा दी जा सकेगी. ब्रिटेन में
विपक्षी लेबर पार्टी की सांसद नाज शाह ने हाउस ऑफ कॉमन्स में अपने भाषण में इस
प्रस्तावित कानून का हवाला देते हुए 10 साल की सजा को खासा सख्त बताया.
(ब्रिटिश लेबर पार्टी सांसद नाज शाह के ट्विटर हैंडल से साभार)
नाज शाह ने इस
मौके पर कहा कि ब्रिटिश लोगों के विंस्टन चर्चिल और ओलिवर क्रोमवैल जैसी हस्तियों
के साथ जुड़ाव को समझा जा सकता है. उनकी भावनाओं को समझ कर उनकी कद्र की जानी
चाहिए. नाज शाह ने यूके इतिहास के स्मारकों के महत्व और प्रतीकात्मकता का समर्थन
किया. सांसद ने जोर देकर कहा कि किसी भी ऐतिहासिक स्मारक की अवमानना किए जाना गलत
और लोगों को बांटने वाला है. हालांकि नाज शाह ने किसी ऐतिहासिक हस्ती के महत्व को
लेकर बहस या असहमति के अधिकार का भी बचाव किया.
लेबर पार्टी MP ने आगे कहा कि जिस तरह यहां भावनाओं को समझते हुए दस साल जेल की सजा वाला
कानून लाने के बारे में सोचा गया, ऐसी ही सोच इस बात पर भी
अपनाई जानी चाहिए कि यूरोप में हाल में ऐसे कुछ अपमानजनक कार्टून और रेखाचित्र
प्रकाशित किए गए, जिनसे दुनिया भर के मुस्लिमों की भावनाएं
आहत हुईं. नाज शाह ने पैगम्बर मोहम्मद को लेकर मुस्लिमों की भावनाओं का हवाला
दिया. उन्होंने कहा, “मुस्लिम दुनिया की आबादी का करीब एक
चौथाई हिस्सा है, उन मुद्दों की तरफ भी सोचा जाना चाहिए जो
मुस्लिमों को उनके पवित्रों की अवमानना किए जाने से पेश आते हैं, जब कट्टरपंथी और नस्लवादी हमारे पैगम्बर की अवमानना करते हैं या अपशब्द
कहते हैं तो इससे हमारे दिलों को होने वाला भावनात्मक नुकसान असहनीय होता है.”
नाज शाह ने कहा
कि जिस तरह ब्रिटेन का प्रस्तावित कानून चर्चिल जैसी ऐतिहासिक हस्तियों की
मूर्तियों की सुरक्षा के लिए है, वैसा ही संरक्षण
अन्य समुदायों के सम्मानितों की सुरक्षा के लिए भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए.
सांसद ने पैगम्बर मोहम्मद के सम्मान की रक्षा के लिए कानून लाने पर भी जोर दिया.
यूरोप में
पैगम्बर मोहम्मद की अवमानना वाले कार्टून प्रकाशित किए जाने का हवाला देते हुए नाज
शाह ने कहा, “उन जैसों कि तरह जिनके लिए ये
सिर्फ कार्टून हैं, मैं ये नहीं कहूंगी कि ये सिर्फ
मूर्तियां हैं क्योंकि मैं उस ब्रिटिश भावना को अच्छी तरह समझती हूं जो यहां के
इतिहास, संस्कृति और पहचान से जुड़ी है. ये सिर्फ कार्टून
नहीं हैं और वो सिर्फ मूर्तियां नहीं हैं. ये हमारे जैसे इनसानों के लिए बहुत अधिक
महत्व रखते हैं.”
बता दें कि
फ्रांस की व्यंग्यात्मक पत्रिका शार्ली हेब्दो का नाम इस तरह के कार्टून छापने को
लेकर बहुत विवादों में रहा है. पिछले साल अक्टूबर महीने में शार्ली हेब्दो में छपे
पैगंबर मोहम्मद के एक कार्टून को दिखाने वाले टीचर सैमुअल पेटी की एक व्यक्ति ने
हत्या कर दी थी.
शार्ली हेब्दो
ने हाल में भारत में कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान तंज कसते हुए भी एक कार्टून
छापा था. 28 अप्रैल को प्रकाशित इस कार्टून में मेडिकल ऑक्सीजन की कमी का हवाला
देते हुए तंज कसा गया था भारत में करोड़ों देवी देवता है लेकिन कोई ऑक्सीजन की कमी
को पूरा नहीं कर पा रहा.
ब्रिटिश सांसद
नाज शाह के भावनाओं को लेकर अहम सवाल उठाया. अगर हम ऐतिहासिक हस्तियों की
मूर्तियों को लेकर इतने संवेदनशील हो सकते हैं, तो दूसरे समुदायों की भावनाएं आहत होने को लेकर क्यों नहीं हो सकते. क्यों
उस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए भी सख्त कानून नहीं बना सकते. क्यों शार्ली
हेब्दो इस तरह के कार्टून छाप कर बड़ी संख्या में लोगों की भावनाओं को आहत करने की
गुस्ताखी करता है. क्यों अकबरुद्दीन ओवैसी जैसा शख्स हिन्दू देवी देवताओं की
अवमानना का बयान देने से पहले सौ बार नहीं सोचता. क्यों पंजाब में श्री गुरु ग्रंथ
साहिब की अवमानना करने वालों को छह साल बीत जाने के बाद भी कटघरे में नहीं खड़ा
किया जा सका जबकि इसी मुद्दे पर 2017 में पंजाब में सरकार भी बदल गई.
बहरहाल ब्रिटिश
सांसद नाज शाह के इस सवाल में दम है कि अगर ऐतिहासिक हस्तियों की मूर्तियों को
लेकर भावना का हवाला देकर सख्त कानून बनाया जा सकता है तो यही मापदंड असंख्य लोगों
की भावनाएं आहत करने वाली धार्मिक प्रतीकों की अवमानना की घटनाओं पर क्यों नहीं
अपनाया जा सकता.
- बिलावल भुट्टो की गीदड़ भभकी लेकिन पाकिस्तान की ‘कांपे’ ‘टांग’ रही हैं - April 26, 2025
- चित्रा त्रिपाठी के शो के नाम पर भिड़े आजतक-ABP - April 25, 2025
- भाईचारे का रिसेप्शन और नफ़रत पर कोटा का सोटा - April 21, 2025
आस्था का सम्मान होना चाहिए , केवल अहंकारी ही किसी अन्य की आस्था का अपमान करेगा , इंसान के लिए त्याज्य होना है !
बिल्कुल सही तर्क है, हालांकि किसी मूर्ति के तोड़ने, धार्मिक ग्रंथ की बेहुरमती करने या कार्टून बनाकर करोड़ों लोगों के दिल दुखाने जैसे जघन्य अपराध के बावजूद सज़ा कानून के दायरे और अदालती प्रोसेस से ही होनी चाहिए, ख़ुद से सज़ा देने की सोच का भी हरगिज़ तरफदारी नहीं की जा सकती है। अगर अदालती प्रोसेस में सख्त सजा का प्रावधान नहीं है तो कोशिश सख्त सजाएं दिलाने की होनी चाहिए। लोगों का दिल दुखाना कम बड़ा गुनाह नहीं है और ऐसी हरकतें वैश्विक शांति के लिए खतरा भी हैं
An eye opener to all of us regarding double standards of affluent society.