ब्लॉगिंग से ट्रेड फेयर में एंट्री…खुशदीप

दिल्ली में 31 वां अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला आज से आम जनता के लिए खुल गया है…खास लोग पहले पांच दिन में ही आराम से ये मेला देख चुके हैं…अब एक हफ्ते यानि अगले इतवार तक बस रेलमपेला ही रहेगा…शनिवार और इतवार को तो इतना रश होता है कि आपको चलने की भी ज़रूरत नहीं, लोग ही आपको पीछे से आगे ठेलते चलेंगे…मेरा सौभाग्य है कि मैं कल ही बिजनेस डे पर पत्नीश्री और बच्चों के साथ मेला देख आया हूं…नहीं बाबा, न तो मुझे बिजनेसमैन के नाते कोई ट्रेड डील करने जाना था और न ही आसमान से ऐसा कुछ तोड़ा है कि खास होने के नाते दनदनाता हुए मेले में घुस जाऊं…तो फिर मेले में बिजनेस डे पर एंट्री कैसे संभव हुई, इसकी भी दिलचस्प कहानी है…

आठ दस दिन पहले छत्तीसगढ़ से ललित शर्मा भाई का फोन आया था, उन्होंने फोन पर राहुल सिंह जी से बात कराई…ललित जी जैसी शानदार हस्ती से भी ब्लॉगिंग के नाते ही परिचय हुआ और राहुल जी से अभी तक पोस्ट और टिप्पणियों की लिखा-पढ़ी के नाते ही जुड़ा था…लेकिन वो एक पंक्ति की टिप्पणी में ही पोस्ट का पूरा भाव लिए जैसा गहरा असर छोड़ते हैं, उससे मैं बहुत प्रभावित था…ये खासियत हिंदी ब्लागिंग जगत में राहुल जी और प्रवीण पांडे भाई के पास ही है… छत्तीसगढ़ के संस्कृति विभाग में आला अफसर होने के नाते राहुल जी के कंधों पर व्यापार मेले में 18 नवंबर को छत्तीसगढ़ का राज्य दिवस मनाने की ज़िम्मेदारी थी…राहुल जी ने बड़े स्नेह के साथ मुझे इस अवसर के लिए आमंत्रित किया और मेरा पता नोट कर जल्दी ही मुझे डाक से निमंत्रण-पत्र मिलने की जानकारी दी…

राहुल जी जैसी शख्सीयत से मिलने की मेरी इच्छा तो पहले से प्रबल थी…ऊपर से बिजनेस डे पर व्यापार मेले में एंट्री का और आकर्षण जुड़ गया था…अब मैं बेसब्री से निमंत्रण-पत्र का इंतज़ार करने लगा…रोज़ लैटर-बॉक्स खोल कर देखता लेकिन वहां का सूनापन मुझे मुंह चिढ़ाता रहता…देखते देखते सत्रह नवंबर भी आ गई…लेकिन निमंत्रण-पत्र नहीं आया…हां राहुल जी का फोन ज़रूर आया…उन्होंने पूछा कि निमंत्रण-पत्र मिल गया…अब मैं क्या जवाब देता…मैंने कहा कि निमंत्रण पत्र तो नहीं मिला, लेकिन आप से मिलने की ख्वाहिश कैसे पूरी हो सकती है…मेले में आप तो सर्विस से जु़ड़े दायित्वों को पूरा करने में बेहद व्यस्त होंगे, इसलिए वहां तो आपको डिस्टर्ब करना ठीक नहीं…दिल्ली में और कहां आप से मिला जा सकता है…या आपको असुविधा न हो तो नोएडा में ही मेरे गरीबख़ाने पर आ सकें तो उससे बढ़िया कोई बात नहीं…अब राहुल जी भी निमंत्रण पत्र न मिलने की बात सुनकर परेशान हुए…लेकिन क्या कर सकते हैं डाक विभाग तो डाक विभाग है…अब बिना निमंत्रण कैसे जाया जाए…बिजनेस डे वाले दिन तो मेले में एंट्री की टिकट भी 400 रुपये की होती है…अब घर के चार सदस्य हैं तो 1600 रुपये तो एंट्री की ही भेंट चढ़ जाते..

अच्छा जो मेरे साथ बीती, ठीक ऐसा ही सतीश सक्सेना भाई जी के साथ भी बीत रहा था..वो भी डाक से न्यौते का इंतज़ार ही करते रह गए…और मज़े की बात इस विषय पर सतीश जी और मेरी कोई बात भी नहीं हुई…और तो और समस्या का तोड़ भी सतीश जी और मेरे बिना एक दूसरे की जानकारी के एक जैसा ही निकला…वैसे मीडियाकर्मी के नाते मेरे लिए प्रवेश का रास्ता निकल सकता था लेकिन मैं ऐसे रास्ते निकालने से बचने की हर संभव कोशिश करता हूं…रास्ता ये निकला कि राहुल जी को इन्फॉर्म कर दिया जाए वो गेट पर बता देंगे और एंट्री मिल जाएगी…अब मैं परिवार सहित गेट पर पहुंचा और राहुल जी को फोन करने की सोच ही रहा था कि वहां तैनात पुलिस अधिकारियों ने पूछा भी नहीं, बस गेट पर बैग आदि की स्क्रीनिंग हुई और हमें एंट्री मिल गई…अब मैं हैरान-परेशान ये चमत्कार कैसे हुआ…न कुछ कहना पड़ा और हम मेले के अंदर…क्या ब्लॉगिंग इतनी ताकतवर हो गई है या कोई और बात, अब ये मेरे लिए भी पहेली है…
 
मैंने मेले के अंदर पहुंच कर राहुल जी को फोन किया…तब दोपहर का एक बजा था…मैंने राहुल जी से कहा कि अभी थोड़ी देर परिवार को दूसरे राज्यों के पैवेलियन दिखाने के बाद आप तक पहुंचता हूं…मेले में कुछ मीडिया से ही जुड़े दोस्त भी मिले…करीब साढ़े चार बजे सतीश सक्सेना जी का मुझे फोन आया…वो राहुल जी के पास थे…मैंने कहा बस पंद्रह मिनट तक आपके पास पहुंचता हूं…लेकिन मुझे राहुल जी के पास पहुंचने में आधा घंटा लग गया, तब तक सतीश जी वापस जा चुके थे…राहुल जी छत्तीसगढ़ मंडप के गेट पर मुझे लेने के लिए पहुंचे…जैसा सोचा था, उससे भी कहीं बढ़कर पर्सनेल्टी…मैं छह फुट का हूं…और राहुल जी मेरे से भी लंबे…हाथ में फाइलें…दरअसल साढ़े पांच बजे से छत्तीसगढ़ दिवस का समारोह शुरू होने जा रहा था…ऐन टाइम पर राहुल जी को कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ के महामहिम के आने की भी सूचना मिली थी…ऐसे में उनकी व्यस्तता समझी जा सकती थी…लेकिन राहुल जी ने ऐसी स्थिति में भी मेरे लिए नेशनल अवार्ड विजेता और कोसा साड़ी के डिजाइनर नीलांबर से मिलवाने के लिए वक्त निकाला…मैंने पांच मिनट राहुल जी के साथ रहने के बाद आग्रहपूर्वक उनसे विदा ली…मुझे पता था कि इस वक्त उनके लिए एक एक मिनट भी कितना कीमती है…ये तय हुआ कि राहुल जी अगले दिन मुझसे नोएडा मिलते हुए लौटेंगे…अगले दिन क्या हुआ…ये कल पढ़िएगा…कल ही की पोस्ट में पढ़िएगा कि सतीश सक्सेना भाई जी और दिव्या भाभीश्री ने कैसे अपने घर पर ‘वसुंधरा राजे’ जी की अगवानी की…

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shikha varshney
13 years ago

खुशदीप जी !इस बार की ट्रिप में राहुल जी और सतीश जी से भी मिलवाने की आप की ही जिमेदारी हा हा हा.

Satish Saxena
13 years ago


भारतीय इतिहास और पुरातत्व के विषय में, बचपन से ही रूचि रही है चूंकि राहुल सिंह इन विषयों के आधिकारिक विद्वान् हैं अतः उन्हें पढने से निस्संदेह अपने अधकचरे ज्ञान को संवारने का सुंदर मौका मिलता है !

गंभीर और व्यवस्थित लेखन के धनी और भारतीय कला संस्कृति के इस गुरु के प्रति शुरू से ही श्रद्धा भाव रहा है !

"राहुल कुमार सिंह एवं प्रवीण पाण्डेय एक ही क्लास के लेखक हैं जिनके प्रति श्रद्धा अनायास ही उमड़ती है " आपके द्वारा कहे यह शब्द बहुत अच्छे लगे ….

शायद यही ब्लोगिंग का सुख है !

आभार आपका !

Satish Saxena
13 years ago


वाकई खुशदीप भाई !

राहुल कुमार सिंह से आकस्मिक मिलन बेहद सुखद रहा ….

इनकी लेखन क्षमता और विषय पांडित्य पर पहले से ही श्रद्धा थी जब उनका फ़ोन पर छत्तीसगढ़ के मंडप में आने का निमंत्रण मिला तो उनसे मिलने की इच्छा रोक न सका !

गेट नंबर १ पर जब मैंने राहुल सिंह जैसी शक्ल वाले एक लम्बे तड़ंगे नौजवान, सुदर्शन अधिकारी को अपनी और आते देखा तो निस्संदेह विश्वास नहीं कर पाया कि यह वही बुजुर्ग, गंभीर शांत प्रकृति राहुल सिंह हैं या उनका कोई १५ वर्ष छोटा भाई …..

यह व्यक्तित्व भ्रम पहली बार हुआ है मैं इनकी प्रोफाइल फोटो बदलने की मांग करता हूँ :-))

राहुल सिंह को आदर सहित

Satish Saxena
13 years ago

इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

Satish Saxena
13 years ago

राहुल सिंह से मिलना वाकई सुखद था खुशदीप भाई !
आम तौर पर राहुल सिंह की छवि मेरे मन में एक बेहद गंभीर और विद्वान् बुज़ुर्ग जैसी थी, मगर जब मैंने उन जैसी शक्ल के ६ फूटा लम्बे तगड़े नौजवान सरकारी अधिकारी को, अपनी और हाथ हिलाते आते देखा तो हतप्रभ रह गया ! राहुल सिंह कि लेखन क्षमता और विषय पांडित्य के कारण मैं बहुत पहले से उनसे प्रभावित रहा हूँ मगर वे इतने शानदार व्यक्तित्व के मालिक होंगे यह कभी नहीं सोंचा था …
यकीनन इनका ब्लॉग फोटो इनके व्यक्तित्व का सही प्रतिनिधित्व नहीं करता !
कृपया इनसे इनका प्रोफाइल फोटो बदलवाएं 🙂
आभार आपका …

Rakesh Kumar
13 years ago

मिलने की सच्ची चाहत ही रंग लाती है,
यह तो बस मेला है,खुशदीप भाई
उसके घर तक में एंट्री मिल जाती है.

आपका और राहुल जी का स्नेह
प्रेरक व सराहनीय है.

Rahul Singh
13 years ago

लगता है कि जिंदगी के मेले में खोना-बिछड़ना और मिलना इसी तरह होता है.
दिल्‍ली के दौरान मैं जिन शख्सियतों से मिला… कौन कहता है बेदिल दिल्‍ली…, दिल्‍ली होगी बेदिल, लेकिन दिल वालों की दिल्‍ली और दिल्‍ली वालों की दिलदारी जो इस बीच मैंने महसूस की उसके लिए कुछ कहने की जगह ही कहां बची इस पोस्‍ट के बाद मेरे लिए.

वाणी गीत
13 years ago

पिछले कुछ वर्षों तक जयपुर से विशेष बसे जाती रही इस मेले के दर्शन के लिए ,दर्शकों की लाईव रिपोर्टिंग से हम भी जुड़ जाते थे , आजकल टीवी और ब्लॉग पर कोटा पूरा हो जाता है !
आभार !

Smart Indian
13 years ago

दिल्ली वाले खुशकिस्मत हैं कि महारथियों से मुलाकात की सम्भावना प्रबल रहती है। राहुल जी से साक्षात्कार की बधाई। कल की कड़ी का इंतज़ार है।

Atul Shrivastava
13 years ago

वाह।
…और हम सोचते ही रह गए कि इस बार इस मेले में जरूर जाएंगे……

दिनेशराय द्विवेदी

हम तो ऐसे मेलों को दूर से प्रणाम कर लेते हैं। लेकिन ब्लागरी वाकई बहुत ताकतवर है इस का अहसास मैं अनेक स्थानों पर कर चुका हूँ।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून

इस मेले जाना बड़ी हिम्मत का काम है

vandana gupta
13 years ago

उस निमन्त्रण पत्र का तो हम भी इंतज़ार कर रहे थे मगर यहाँ भी नही पहुँचा…………तो क्या हुआ ब्लोगर्स तो पहुँच ही गये ना…………ब्लोगिंग ज़िन्दाबाद्।

डॉ टी एस दराल

एंट्री का चमत्कार कैसे हुआ , यह तो पता ही नहीं चला ।
अब से हम भी रोज एक पोस्ट ठेलना शुरू करते हैं ।
यह मेला भी हमारे लिये तो दिल्ली में क्रिकेट मैच जैसा हो गया है , कभी अवसर ही नहीं मिल पाता घुसने का ।

राज भाटिय़ा

खुशदीप जी कब तक यह मेला लगा रहेगा, जरुर बतलाये,शायद हम भी घुम आयेगे, या अगले महीने कोई ओर मेला हो तो उस के बारे बतलाये…

प्रवीण पाण्डेय

कब हमको भी अवसर मिले और कब हम भी मिलें।

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