गब्बर की होली पर हिंदी लोक डॉट कॉम पर पीयूष पांडे का एक व्यंग्य पढ़ा…बड़ा आनंद आया…इसी व्यंग्य से ख्याल आया कि अगर रामगढ़ की जगह गब्बर ब्लॉगवुड में होली खेलने आ जाता तो क्या होता…एक तो गब्बर दिमाग़ का वैसे ही पूरा-सूरा… फिर ऊपर से उसे हर साल ये जानने में बड़ी मशक्कत करनी पड़ती है कि होली कब होगी….बेचारे का गला सूख जाता है, पूछते-पूछते...होली कब है? कब है होली, कब? लेकिन कोई उसे नहीं बताता…
अब यहां पीयूष पांडे के व्यंग्य को रिपीट कर रहा हूं…बस आपको इतना करना है कि इसे पढ़ते वक्त आपको रामगढ़ की जगह ब्लॉगवुड को ध्यान में रखना है…जैसे कि रामगढ़ के कई अहम किरदार वहां से शिफ्ट हो गये, वैसे ही ब्लॉगवुड के कई महारथियों ने भी कल्टी काट ली…यहां आपको अपने हिसाब से ब्लॉगवुड के किरदार फिट करने की छूट है…फिर देखिए कि होली की तरंग दुगनी होती है या नहीं…
“अरे ओ सांभा, होली कब है?कब है होली?” जेल से छूटकर लौटे गब्बर ने बौखला कर सांभा से पूछा…
“सरदार, होली 27 तारीख को है… लेकिन, अचानक होली का ख्याल कैसे आया? बसंती तो गांव छोड़कर जा चुकी है, और ठाकुर भी अब ज़िंदा नहीं है… फिर, होली किसके साथ खेलोगे?
“धत तेरे की…लेकिन, वीरु-जय उनका क्या हुआ?”
“सरदार, तंबाकू चबाते चबाते तुम्हारी याददाश्त भी चली गई है…जय को तुमने ही ठिकाने लगा दिया था, और वीरु बसंती को लेकर मुंबई चला गया था…”
“जे बात… जेल में बहुत साल गुजारने के बाद फ्लैशबैक में जाने में दिक्कत हो रही है…खैर, ये बताओ बाकी सब कहां हैं…”
“ कौन बाकी…तुम और हम बचे हैं…कालिया को जैसे तुमने मारा था, उसके बाद सारे साथी भाग लिए थे…बचे खुचे जय-वीरु ने टपका दिए थे…”
“तो रामगढ़ में हमारी कोई औकात नहीं अब ? कोई डरता नहीं हमसे? एक ज़माना था कि यहां से पचास पचास मील दूर कोई बच्चा रोता था तो मां कहती थी कि…..”
“अरे, कित्ती बार मारोगे ये डायलॉग…इन दिनों बच्चे रोते नहीं, मां-बाप रोते हैं…बच्चे हर दूसरे दिन मैक्डोनाल्ड जाने की जिद करते हैं… मल्टीप्लेक्स में फिल्म देखने की मांग करते हैं….बंगी जंपिग के लिए प्रेशर डालते हैं…एक बार बच्चों को घुमाने गए मां-बाप शाम तक दो-तीन हजार का फटका खाकर लौटते हैं….।“
“सांभा,छोड़ो बच्चों को…बसंती की बहुत याद आ रही है… बसंती नहीं है धन्नो के पास ही ले चलो…”
“अरे सरदार…कौन जमाने में जी रहे हो तुम…धन्नो बसंती की याद में टहल गई थी…अब, धन्नो नहीं सेट्रो, स्विफ्ट, नैनो, एसएक्स-4,सफारी वगैरह से सड़कें पटी पड़ी हैं”
“अरे, ये कौन से हथियार हैं?”
“ये हथियार नहीं…मोटर कार हैं… तुम्हारे जमाने में तो एम्बेसेडर भी बमुश्किल दिखती थी…अब नये नये ब्रांड की कारें आ गई हैं…”
“सांभा. होली आ रही है…रामगढ़ की होली देखे जमाना हो गया… होली कार में बैठकर देखेंगे…आओ कार खरीदकर लाते हैं…“
“अरे तुम्हारी औकात नहीं है कार खरीदने की…”
“जुबान संभाल सांभा…पता नहीं है सरकार कित्ते का इनाम रखे है हम पर… ”
“घंटा इनाम…कोई इनाम नहीं है तुम पर अब…और जो था न पचास हजार का !उसमें गाड़ी का एक पहिया नहीं आए…सबसे छोटी गाड़ी भी तीन-चार लाख की है…तुम तो साइकिल पर होली देख लो-यही गनीमत है…”
“सांभा,बहुत बदल गया रे रामगढ़…अब कौन सी चक्की का आटा खाते हैं ये रामगढ़ वाले?”
“अरे, काहे की चक्की…चक्की बंद हो लीं सारी सालों पहले…अब तो पिज्जा-बर्गर खाते हैं…गरीब टाइप के रामगढ़ वाले कोक के साथ सैंडविच वगैरह खा लेते हैं…इन दिनों गरीबों के लिए कंपनी ने कोक के साथ सैंडविच फ्री की स्कीम निकाली है…
“सांभा, खाने की बात से भूख लग गई… होली पर गुझिया वगैरह तो अब भी बनाते होंगे ये लोग?”
“गब्बर बुढ़ा गए हो तुम…आज के बच्चों को गुझिया का नाम भी पता नहीं…बीकानेरवाला, हल्दीरामवाला,गुप्तावाला वगैरह वगैरह मिठाईवाले धांसू डिब्बों में मिठाई बेचते हैं…बस, वो ही खरीदी जाती हैं। एक-एक डिब्बा सात सौ-आठ सौ का आता है…तुम्हारी औकात मिठाई खाने की भी नहीं है…
“सांभा, तूने बोहत बरसों तक हमारा नमक खाया है न..? ”
“जी सरदार”
“तो अब गोली खा…गोली खाकर फिर जेल जाऊंगा… वहां अब भी होली पर रंग-गुलाल उड़ता है, दाढ़ी वाले गाल पर ही सही पर बाकी कैदी प्यार से रंग मलते हैं तो दिल खुश हो जाता है…जेल में दुश्मन पुलिसवाले भी गले लगा लेते हैं होली पर…ठंडाई छनती है खूब…और मिठाई मिलती है अलग से… सांभा, रामगढ़ हमारा नहीं रहा…तू जीकर क्या करेगा… ” (क्या वाकई ब्लॉग जगत का भी ऐसा ही हाल नहीं है…)
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एक पिंकू स्लॉग ओवर…
गुल्ली : ‘होली’ के त्योहार को “शेर का बच्चा ” भी कहते हैं!
मक्खन : क्या बकवास कर रहे हो!
गुल्ली : क्यूँ? आपको याद नहीं जब ‘शोले’ (Sholay ) पिक्चर में गब्बर सिंह ने कहा था, “होली ‘कब'(Cub) है!”
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होली पर पिछले वर्षों की मेरी पोस्ट…
2010
समीर संतरीमंडल शपथ ग्रहण समारोह की तैयारी…खुशदीप
2011
ब्लॉगरों का सबसे बड़ा पोल खोल…खुशदीप
2012
होली पर ब्लॉगिंग की ‘नूरा कुश्ती’…खुशदीप
- कपिल शर्मा शो के दास दादा नहीं रहे… - May 22, 2025
- कौन हैं पीएम मोदी की मुरीद रुचि गुज्जर? - May 21, 2025
- यूट्यूबर ज्योति मल्होत्रा निकली पाकिस्तानी जासूस! - May 17, 2025
अहा…. मज़ेदार!
मंगलकामनाएं रंगोत्सव पर !!
रंग पर्व की आपको हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ !
बदलते समय पर सटीक व्यंग्य!सुंदर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई!बहुत-बहुत शुभकामनाएं होली की!कामनाएं जमकर ठिठोली की!!हंसते रहें और हंसाते रहें!जीवन को खुशदीपजी खुशरंग बनाते रहें!!
राज भाटिया जैसे प्रोड्यूसर और आप जैसे डाइरेक्टर हो तो ब्लॉग जगत की होली तो सुपर-डुपर हिट होनी ही है।
होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएं!
यह गौरव अता करने के लिए जन्म जन्मांतर आभारी रहूँगा )
कहाँ हैं बसन्ती पकड़ लाईये न इस होली पर !
सतीश भाई,
असली धमाका तो इससे अगली पोस्ट पर है…वहां ठाकुर बलदेव सिंह का गेट-अप आपका इंतज़ार कर रहा है…
शुभ होली…
जय हिंद…
चंद्र प्रकाश जी,
जब टिप्पणियां कम आएं तो ये टोटका कारगर रहता है…
शुभ होली…
जय हिंद…
बेहतरीन धमाका है , सुबह सुबह आनंद आ गया !
हैप्पी होली !!
खुशदीप जी,
होली तो परसों हो लेगी लेकिन लगता है कि आप तो आज ही रंग पिचकारी लेकर बैठ गए ।
कमाल है आज बसंती के तकिया कलाम – हमको ज्यादा बात करने की आदत तो हैं नहीं .. का अनुसरण करते नजर आ रहे हैं । हरेक को रिप्लाई कर रहे हैं । बहती गंगा में हम भी हाथ धो लें, यह बात दीगर है कि परसों नहाना भी पडेगा । बहरहाल, होली की हार्दिक शुभकामनाएं।
सी पी बुद्धिराजा
शुक्रिया राजेश जी,
आपको होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएं…
जय हिंद…
दराल सर,
गब्बर आज तक दो से आगे गिनती तो सीख नहीं पाया बेचारा…
हां, वैसे ठीक कह रहे हैं ब्लॉगिंग में वो भी खप सकता है…
शुभ होली…
जय हिंद…
आपको भी होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएं…
जय हिंद…
बसंती…चल भाग धन्नो, आज तेरी बसंती की लाज ख़तरे में है…
धन्नो…चुप कर बकवास मत कर…अगर छह डाकू तेरे पीछे पड़े है तो उनके साथ छह घोड़े भी है…
शुभ होली…
जय हिंद…
प्रवीण भाई,
ब्लॉगिंग के असली आनंद तो आप हैं…
जय हिंद…
वाणी जी,
अब तो गब्बर ने अगले साल के लिए पूछना शुरू कर दिया है कब है होली, कब?
आपको शुभ होली…
जय हिंद…
अरविंद जी,
गब्बर के लिए मेरा वोट तो आपको ही जाएगा…
वैसे बसंती ने तो रामगढ़ छोड़ा लेकिन आपने उसका 'ब' कहा छोड़ दिया…बेचारी संती ही रह गई…
आपको भी शुभ होली…
जय हिंद…
संती तो गांव छोड़कर जा चुकी है, और ठाकुर भी अब ज़िंदा नहीं है… फिर, होली किसके साथ खेलोगे?
“सांभा,छोड़ो बच्चों को…बसंती की बहुत याद आ रही है… बसंती नहीं है धन्नो के पास ही ले चलो…”
उफ़!
अब गब्बर दो ही हो सकते हैं -ऐसा करते हैं अनूप शुक्ल जी ये पदवी मझे अता कर दें और मैं इसे उन्हें समर्पित !
होली की रंगारंग शुभकामनाएं!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल 26/3/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका स्वागत है ,होली की हार्दिक बधाई स्वीकार करें|
गब्बर को भी ब्लॉगिंग सिखा दी जाये। :)!
:):)..हैप्पी होली
ये ससुरी टिप्पणियां भी रामगढ की धन्नौ और बसन्ती हो गई लगती हैं.
हा हा हा हा, हम भी कुछ आनन्द तलाशते हैं।
गब्बर की तो हो ली होली !
रोचक !