‘खिला नहीं सकते तो पैदा क्यों करते हो? मारना जुर्म है तो पैदा करना जुर्म क्यों नहीं है?’ एक पिता का क़त्ल करने वाली लड़की फांसी के फंदे पर झूलने से पहले ये सवाल पूछे तो समझा जा सकता है कि उसे कैसी भयावह परिस्थितियों से गुज़रना पड़ा होगा…पाकिस्तान के फिल्मकार शोएब मंसूर ने अपनी नई फिल्म बोल में यही सवाल शिद्दत के साथ उठाया है…
| गीताश्री |
मुझे इस फिल्म के बारे में नुक्कड़ पर गीताश्री की पोस्ट पढ़ कर जानकारी मिली…गीताश्री से शिकायत है कि वो अपने ब्लॉग पर बहुत कम लिखती हैं…लेकिन जब लिखती हैं तो कमाल करती हैं…एक ही पोस्ट में कई दिनों से न लिखे होने की सारी कसर पूरी कर देती हैं…इस बार उन्होंने फिल्म ‘बोल’ के कथानक पर कलम चलाई है…
फिल्म में एक बेटी अपने कट्टïर रूढि़वादी पिता के खिलाफ आवाज बुलंद करती हैं…महिलाओं को पुरुषों के सामने तुच्छ समझने की सदियों पुरानी परंपरा का मुकाबला करने का साहस करती हैं…हकीम साहब की दिल दहलाने वाली कहानी है…वह चाहते हैं कि उनकी पत्नी एक बेटे को जन्म दे जिससे भविष्य में उनका खानदान चलता रहे और उनका नाम रोशन रहे…इस चक्कर में उनकी पत्नी 14 बेटियों को जन्म देती हैं, जिनमें सात ही जिंदा रहती हैं… उनकी आठवीं औलाद ‘किन्नर’ है…फिल्म में भावनाओं का उफान गजब का है…बड़ी बेटी ( हुमैमा मलिक) और पिता (मंजर सेहबाई) की सोच हर मुद्दे पर अलग-अलग है…
बोल को सही तरह से समझने के लिए गीताश्री की इस पोस्ट को ज़रूर पढ़िए और वहीं अपनी राय देना मत भूलिए…बोल..कि बोलना है जरुरी
…………………………………………………………………………………………………….
Related posts:
"पत्नी को कितने घंटे निहारोगे?"- ये कहने वाले पर भड़कीं दीपिका पादुकोण, ज्वाला गुट्टा
ऑटो है या मिनी ट्रक...दो-तीन नहीं 18 सवारी बैठाकर ले जा रहा था
‘सूट-बूट की, सूट-बूट द्वारा, सूट-बूट के लिए’...खुशदीप
US में बाप-बेटी की हत्या, क्या भारतीयों से बढ़ रही नफ़रत?
शाहरुख़ ख़ान के मन्नत के लिए टूटे नियम? क्या चलेगा NGT का डंडा?
- वीडियो: अमेरिका में सड़क पर गतका कर रहा था सिख, पुलिस ने गोली मारी, मौत - August 30, 2025
- बिग डिबेट वीडियो: नीतीश का गेम ओवर? - August 30, 2025
- आख़िर नीतीश को हुआ क्या है? - August 29, 2025

बीती इतवार मैंने ये फिल्म देखी.. वाकई बहुत बोल्ड फिल्म है ये…
बहुत सुन्दर रचना .
धनतेरस व दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
अच्छा तो लिखती हैं ..
आपकी शिकायत के बाद अब शायद अधिक भी लिखें ..
.. सपरिवार आपको दीपावली की शुभकामनाएं !!
सारी धरती एक देश है
धरती एक राज्य है और इस धरती पर आबाद मनुष्य एक विशाल परिवार हैं।
राजनीतिक सीमाएं आर्टीफ़ीशियल हैं। यही वजह है कि ये हमेशा बदलती रहती हैं। ये केवल फ़र्ज़ी ही नहीं हैं बल्कि ग़ैर ज़रूरी भी हैं। किसी देश के पास आबादी कम है लेकिन उसने ताक़त के बल पर ज़्यादा ज़मीन और ज़्यादा साधन हथिया लिए हैं जबकि किसी देश के पास आबादी ज़्यादा है और उसके पास ज़मीन और साधन कम रह गए हैं।
राजनीतिक सीमाएं अपने पड़ोसी देशों के प्रति शक भी बनाए रखती हैं जिसके कारण अपनी रक्षा के लिए विनाशकारी हथियार बनाने पड़ते हैं या बने बनाए ख़रीदने पड़ते हैं। इस तरह जो पैदा रोटी, शिक्षा और इलाज पर लगना चाहिए था वह हथियारों पर ख़र्च हो जाता है।
चीज़ें अपने इस्तेमाल के लिए कुलबुलाती भी हैं। हथियार कुलबुलाते हैं तो जंग होती है और इस तरह पहले से बंटी हुई धरती और ज़्यादा बंट जाती है और पहले से ही कमज़ोर मानवता और ज़्यादा कमज़ोर हो जाती है।
काला बाज़ारी, टैक्स चोरी, रिश्वतख़ोरी, विदेशों में धन जमा करना, जुआ, शराब और फ़िज़ूलख़र्ची के चलते हालात और ज़्यादा ख़राब हो जाते हैं। लोगों की सोच बिगड़ जाती है। लोग अपनी आदतें और अपनी व्यवस्था बदलने के बजाय इंसान को ही प्रॉब्लम घोषित कर देते हैं।
इंसान की पैदाइश पर रोक लगा दी जाती है।
निरोध, गर्भ निरोधक गोलियां और अबॉर्शन की सुविधा आम हो जाती है और नतीजा यह होता है कि केवल विवाहित जोड़े ही नहीं बल्कि अविवाहित युवक युवती भी सेक्स का लुत्फ़ उठाने लगते हैं। मूल्यों का पतन हो जाता है और इसे नाम आज़ादी का दे दिया जाता है।
लोग दहेज लेना नहीं छोड़ते लेकिन गर्भ में ही कन्या भ्रूण को मारना ज़रूर शुरू कर देते हैं। लिंगानुपात गड़बड़ा जाता है। जिन समाजों में बच्चों की पैदाइश को नियंत्रित कर लिया जाता है वहां बूढ़ों की तादाद ज़्यादा और जवानों की तादाद कम हो जाती है। बूढ़े रिटायर होते हैं तो उनकी जगह लेने के लिए उनके देश से कोई जवान नहीं आता बल्कि उनकी जगह विदेशी जवान लेने लगते हैं। देश अपने हाथों से निकलता देखकर वे फिर अपनी योजना को उल्टा करने की घोषणा करते हैं लेकिन तब तक उनकी नौजवान नस्ल को औलाद से आज़ादी का चस्का लग चुका होता है।
चीज़ बढ़ती है तो वह क़ायम रहती है और जो चीज़ बढ़ती नहीं है वह लाज़िमी तौर पर घटेगी ही और जो चीज़ घटती है वह ज़रूर मिट कर रहती है।
ताज्जुब है कि लोग बढ़ने को बुरा मानते हैं और नहीं जानते कि ऐसा करके वे अपने विनाश को न्यौता दे रहे हैं।
विनाश के मार्ग को पसंद करने वाले आजकल बुद्धिजीवी माने जाते हैं।
मानव जाति को बांटने वाले और विनाशकारी हथियार बनाने वाले भी यही बुद्धिजीवी हैं।
मानव जाति की एकता और राजनैतिक सीमाओं के बिना एक धरती पर केवल एक राज्य इनकी कल्पना से न जाने क्यों सदा परे ही रहता है ?
जो कि मानव जाति की सारी समस्याओं का सच्चा समाधान है।
सारी धरती एक देश है
जाते हैं वहीं ! अब आपकी सिफारिश है !
जाते हैं गीता जी की पोस्ट पर.वाकई बहुत कम लिखती हैं.
लिंक देने के लिए आभार,खुशदीप भाई.
गीताश्री जी शायद ब्लॉग जगत का भी बहुत कम भ्रमण करतीं हैं.
धनतेरस व दीपावली की समस्त परिवार सहित आपको हार्दिक शुभकामनाएँ.
सब हृदयों को अभिव्यक्ति मिले।
आभार…..