फुरसत में सुरेश ब्लॉगर, रमेश ब्लॉगर…खुशदीप

(डिस्क्लेमर- ये पोस्ट पूरी तरह काल्पनिक है, इसमें असल ज़िंदगी में किसी व्यक्ति को ढूंढने की कोशिश न करें)

अरे सुरेश…रमेश…



रमेश…सुरेश…


ये पढ़कर आपको कुछ याद आया…

टीवी पर फाइव स्टार की एड…सुरेश और रमेश…दोनों दोस्त बरसों बाद एक दुकान पर मिलते हैं…एक दूसरे को पहचानते हैं…गले मिलते हैं…फाइव स्टार का एक-एक बाइट लेते हैं, फिर चॉकलेट के स्वाद में इतना खो जाते हैं कि सब कुछ भूल जाते हैं…फिर होश में आकर एक दूसरे को पहचानते हैं, फिर सुरेश-रमेश कह कर गले मिलते हैं…फिर चॉकलेट का बाइट, फिर एक दूसरे को भूल जाना..ये क्रम चलता रहता है और चॉकलेट बेचने वाला दुकानदार चकरा जाता है…

आप अब तक सोचने लगे होंगे कि कहीं मैंने अफ़ीम का अंटा तो नहीं चढ़ा लिया जो आएं-बाएं-शाएं बके जा रहा हूं…नहीं जनाब, नहीं…मैं पूरे होशोहवास में ही टाइप कर रहा हूं…लेकिन मेरी पोस्ट के सुरेश-रमेश चॉकलेटी दोस्त नहीं बल्कि ब्लॉगर हैं…सुरेश खरगोश प्रजाति का ब्लॉगर है और रमेश कछुआ प्रजाति का…दोनों का ब्लॉगिंग का अपना-अपना तरीका है…

सुरेश इन्सटेंट कॉफी पीता है,
रमेश फिल्टर कॉफी का शौकीन है…


सुरेश अपने घर से ज़्यादा दूसरों के घर की फ़िक्र करता है,
रमेश को अपना घर संभालने से ही फुर्सत नहीं…


पब्लिक रिलेशन और नेटवर्किंग में सुरेश का कोई सानी नहीं,
रमेश पोस्ट पर रोज़ नॉवल्टी देने की धुन में ही मरा रहता है…


सुरेश कभी किसी की बात का जवाब देना नहीं भूलता,
रमेश इतना नाशुक्रा है, कभी-कभार ही प्रत्युत्तर देता है…


सुरेश प्रकांड विद्वान है, जो कहा वही पत्थर की लकीर,
रमेश अल्पज्ञानी है, हर जगह फ़कीरी झाड़ता रहता है…


सुरेश की प्रकृति राजसी है, हर वक्त रत्नों की माला पहने रहता है,
दीनहीन रमेश तोहफ़े में मिले कांटे भी गले से लगाए घूमता रहता है…

सुरेश ईंटों को छुपा देता है, लेकिन जवाब पत्थर से ज़रूर देता है,
रमेश ईंटें भी सजा कर फूलों से जवाब देने की कोशिश करता है…


सुरेश दरवाजे पर ज़्यादातर सांकल चढ़ाए रखता है,
रमेश का घर खेल फर्रूखाबादी है, हर वक्त खुला…


सुरेश सुरेश है, रमेश रमेश है,
फिर भी दोनों में है तगड़ा याराना…


अरे ये क्या कह रहे हैं आप…
लंबी रेस में कंटेट इज़ किंग का रहेगा ज़माना…