पत्नीश्री, मैं और ट्रेड फेयर का डिप्लोमेटिक टूर…खुशदीप

पोस्ट पर कुछ लिखूं…उससे पहले पिछली पोस्ट पर आई निर्मला कपिला जी की ये टिप्पणी…

अच्छा तो अब डिप्लोमेसी भी सीख गये हो? लेकिन बता दूँ मेरी बहू से डिप्लोमेसी नही करना। ये उसी की बदौलत ब्लॉगिंग हो रही है। बहुत अच्छी लगी ये आत्मियता कि सुबह सवेरे राम से मिलने गये। आशीर्वाद।

आप ब्लॉगर हैं तो आप घर वालों से ज़रूर कहीं न कहीं अन्याय करते हैं…छुट्टी वाले दिन भी डेस्कटॉप या लैपटॉप का पियानो बड़े मग्न होकर बजाते रहते हैं…घरवाले कितने भी कोऑपरेटिव हों लेकिन आपका ब्लॉगराना कभी न कभी तो उन्हें इरिटेट (कृपया सही हिंदी शब्द बताएं) करता ही होगा…लेकिन हम ब्लॉगरों की हालत उस बिल्ली से कम कोई होती है जो सरे आम दूध पीते पकड़े जाने पर भी आंख बंद कर लेती है…इस मुगालते में कि उसे कोई देख नहीं रहा…

जैसा कि कल आप को पोस्ट में बताया था कि आज का दिन पत्नीश्री के नाम था…उन्हें कुछ ज़रूरी सामान ट्रेड फेयर से खरीदना (बारगेन शॉपिंग)  था…मैं टालता आ रहा था…लेकिन आज ट्रेड फेयर का आखिरी दिन था तो आगे टाला भी नहीं जा सकता था…दोनों बच्चों का आज स्कूल था…इसलिए पत्नीश्री और मैं ही सुबह दस बजे मेट्रो से ट्रेड फेयर के लिए प्रगति मैदान रवाना हुए…मुझे याद नहीं पड़ता कि पिछले चार-पांच साल में हम पति-पत्नी बच्चों के बिना ट्रेड फेयर या घूमने वाली दूसरी किसी जगह पर गए हों…अरे-अरे घबराइए मत मैं ये लिखकर आपको बोर नहीं करूंगा कि ट्रेड फेयर में क्या-क्या देखा…बस वहां हुए एक-दो मज़ेदार किस्से आपसे शेयर करने जा रहा हूं…

आजकल मेट्रो वालों ने एक बहुत अच्छा काम किया है…पहला डब्बा महिलाओं के लिए रिज़र्व कर दिया है…मेट्रो स्टेशन पर भी वो जगह मार्क कर दी गई है जहां मेट्रो का पहला डब्बा आकर लगता है…उस जगह पर स्टेशन पर भी सिर्फ महिलाएं खड़ी हो सकती हैं…सिक्योरिटी वाले वहां गलती से भी आ जाने वाले पुरुषों को टोकते रहते हैं…ज़ाहिर है इस सुविधा से अकेले चलने वाली महिलाओं को बहुत फायदा हुआ है…लेकिन इस व्यवस्था में कभी पति-पत्नी या घर के और महिला-पुरुष के साथ चलने पर असहज स्थिति भी उत्पन्न हो जाती है…मान लीजिए किसी बुजुर्ग महिला के साथ उनका बेटा भी है तो उसे महिला को अकेले लेडीज़ डब्बे में छोड़ना होगा या फिर भीड़-भाड़ वाले अनरिज़र्वड डब्बों में ही साथ सफ़र करना होगा…लेकिन व्यवस्था को सही तरीके चलाना है तो छोटा-मोटा समझौता करना ही पड़ेगा…अब हर मेट्रो स्टेशन पर ऐसा नज़ारा लगता है कि महिलाओं और पुरुषों के बीच जैसे सरहद खींच दी गई हो…ये नज़ारा देखकर न जाने मुझे क्यों वहां अचानक बचपन में खेला जाने वाला एक खेल याद आ गया…जिसमें गाते थे- हम तुम्हारी ऊंच पर रोटियां पकाएंगे…सोचा एक बार सरहद के पार जाकर ये गाना गाकर फिर लौटकर जल्दी से वापस अपने पाले में आ जाऊं…फिर खुद ही इस शरारत को सोचकर हंसी आ गई…अब दिल तो बच्चा है जी कुछ भी सोच सकता है जी…

खैर राम-राम करते मेट्रो आ गई…ट्रेड फेयर की वजह से मेट्रो पर भीड़ भी बहुत थी तो पत्नीश्री को लेडीज़ डब्बे में चढ़ना पड़ा…मैं बिल्कुल साथ वाले डब्बे पर चढ़ गया…अब इन दो डब्बों को जोड़ने वाली जगह का नज़ारा भी बहुत अद्भुत होता है…एक तरफ सारी महिलाएं….और दूसरी तरफ पुरूष…सीट पत्नीश्री को भी नहीं मिली…मुझे तो क्या ही मिलनी थी…ठूस ठूस कर भरे डब्बे में किसी तरह लद गया था यही बहुत था…अब लेडीज़ डब्बे में एक पिल्लर को पकड़े पत्नीश्री…और इधर बकरों की तरह भरे गए डब्बे में मैं…पत्नीश्री का कद भी लंबा है तो हम दोनों एक दूसरे को देख सकते थे…पत्नीश्री को यूं देखा तो एस डी बर्मन का गाना याद आ गया…है मेरे साजन उस पार, मैं इस पार…

लो जी प्रगति मैदान भी आ गया…अब ट्रेड फेयर में हर राज्य के पैवेलियन में भटकते हुए टांगें जो टूटनी थी सो टूटी…ऊपर से भीड़ में एक महिला ने मेरे शू पर इतनी ज़ोर से पांव रखा कि पीछे से सोल ही उखड़ गया…अब शूज़ में सोल सिले नहीं जाते चिपकाए जाते हैं, ये दिव्यदृष्टि आज ही मिली….अब वहां मोची भी कहां मिलना था…इसलिए अब नई-नवेली दुल्हन की तरह बड़ा ध्यान देते हुए मुझे चलना पड़ा कि कहीं सोल पूरी तरह ही उखड़ कर बाहर न आ जाए…शापिंग में जेब का पूरी तरह जब कूंडा हो गया तो हम वापसी के लिए निकले…

दिल्ली ट्रेड फेयर में उड़ीसा का पैवेलियन

वापसी में प्रगति मैदान मेट्रो स्टेशन पर बड़ा मज़ेदार वाक्या हुआ…मेट्रो के हर स्टेशन पर बैग्स की चैंकिंग के लिए मशीन लगी हुई हैं…वही वाली जिसमें बैग एक तरफ से डाला जाता है और वो स्कैन होकर दूसरी तरफ से निकल आता है…उसी मशीन के पास मेरे आगे एक बुज़ुर्ग सरदार जी खड़े थे…उन्होंने अपना बैग मशीन में डाला…सरदार साहब के हाथ में पानी की एक बोतल भी थी…उन्होंने सिक्योरिटी वाले से पूछा कि क्या ये बोतल भी डाल दूं…सिक्योरिटी वाले ने मुस्कुरा कर मना किया…ये देखकर मेरा चुटकी लेने का मन हुआ…मैंने कहा…पा देयो, पा देयो सर, दूजी तरफों ए बोतल पैग बनकर निकलेगी…(डाल दो, डाल दो सर, दूसरी तरफ़ से ये बोतल पैग बनकर निकलेगी…), ये सुनकर सरदार साहब ने ठहाका लगाया और कहा…ओ काके, अगर ऐंज हो जाए ते पूरा दिन ई एत्थे ही खलोता रवां…(अगर ऐसा हो जाए तो मैं सारा दिन ही यहां खड़ा रहूंगा)…


चलिए आपके चेहरे पर आई इसी मुस्कान के साथ पोस्ट खत्म करता हूं…

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अन्तर सोहिल

"हम तुम्हारी ऊंच पर रोटियां पकायेंगे"
आजकल तो शायद बच्चे यह खेल जानते ही नहीं, खूब याद दिलाई जी आपने

"साजन मेरा उस पार है" सचमुच क्या रोमांटिक सीन होगा। बार-बार नजरें मिलाने का 🙂

ऐसी मशीन बन जाये तो कहने ही क्या सरदार जी सही कह रहे थे फिर कौन हटेगा वहां से 🙂

प्रणाम

अविनाश वाचस्पति

इरिटेट के लिए कुड़कुड़ाना
गुड़गुड़ाना नहीं जी
और जो करता है आंखें बंद
वो होता है लोटन कबूतर
आपने बिल्‍ली पर क्‍यों आरोपित कर दिया।
छिपकलियां छिनाल नहीं होतीं, छिपती नहीं हैं, छिड़ती नहीं हैं छिपकलियां

वन्दना अवस्थी दुबे

वाह ये तो बढिया किया मैट्रो ने. दिल्ली में वैसे भी महिलाओं के साथ छेड़खानी बहुत बढ गई है ( ऐसा पढा-न्यूज़ में सुना है) अच्छा हुआ ये. और आपकी लोगों की हालत पर …क्या कहूं अब.

बेनामी
बेनामी
14 years ago

irritate कुढना, चिढ़ना

नई-नवेली दुल्हन
और
मेरे साजन उस पार, मैं इस पार…

अहा!

पूरा दिन खलोता रहण वास्ते ता मैं भी तैयार हाँ

VICHAAR SHOONYA
14 years ago

खुशदीप जी कि पोस्टे हमेशा मनोरंजक होती है. पता नहीं क्यों उस्ताद जी को पसंद नहीं आयी. उस्तादजी पूरी ब्लोगिंग ही टाइम पास है पर ये टाइम पास मनोरंजक हो तो क्या बात है.

बंटी चोर
14 years ago

मैं बंटी चोर जूठन चाटने वाला कुत्ता हूं। यह कुत्ता आप सबसे माफ़ी मंगता है कि मैने आप सबको परेशान किया। जाट पहेली बंद करवा के मुझे बहुत ग्लानि हुई है। मेरी योजना सब पहेलियों को बंद करवा कर अपनी पहेली चाल्लू करना था।

मैं कुछ घंटे में ही अपना अगला पोस्ट लिख रहा हू कि मेरे कितने ब्लाग हैं? और कौन कौन से हैं? मैं अपने सब ब्लागों का नाम यू.आर.एल. सहित आप लोगों के सामने बता दूंगा कि मैं किस किस नाम से टिप्पणी करता हूं।

मैं अपने किये के लिये शर्मिंदा हूं और आईंदा के लिये कसम खाता हूं कि चोरी नही करूंगा और इस ब्लाग पर अपनी सब करतूतों का सिलसिलेवार खुद ही पर्दाफ़ास करूंगा। मुझे जो भी सजा आप देंगे वो मंजूर है।

आप सबका अपराधी

बंटी चोर (जूठन चाटने वाला कुत्ता)

Manoj K
14 years ago

ब्लोगियाना .. आपकी बातें बिल्कुल सच है .. मेट्रो कि नयी व्यवस्था काबिले तारीफ़ है ..

मनोज खत्री

यूनिवर्सिटी का टीचर'स हॉस्टल- अंतिम भाग

अजित गुप्ता का कोना

दिल्‍ली की मेट्रो में इतनी भीड होने लगी है क्‍या? अच्‍छी लगी पोस्‍ट।

naresh singh
14 years ago

कितना बढ़िया होता कि मै टिप्पणी दू और उधर से पोस्ट बन कर निकल आये | बहुत बढ़िया लगी पोस्ट |

प्रवीण पाण्डेय

कुछ और बन कर भी निकल सकती है बोतल।

उस्ताद जी

3.5/10

टाईम पास पोस्ट

S.M.Masoom
14 years ago

बात मैं दम तो है …

Khushdeep Sehgal
14 years ago

बाकलीवास जी,
फिल्मों के मामले में आप भी मेरे जैसे ही पुराने पापी लगते हैं…

शुक्रिया इरिटेट का सही अर्थ बताने के लिए…त्रस्त…मैं इसे खिझना मान रहा था लेकिन वो पोस्ट में सटीक नहीं बैठ रहा था…

जय हिंद…

Sushil Bakliwal
14 years ago

आपका बेहतरीन फिल्मी ज्ञान अक्सर आपकी पोस्ट पर देखने को मिलता रहता है । यदि भाभीजी भी आपकी शैली में सोचतीं तो 4-5 वर्ष बाद अकेले घूमने के मिले अवसर पर शायद यही कहतीं कि "ले चल, ले चल मेरे जीवन साथी, ले चल मुझे उस दुनिया में…"
उपर वर्णित "इरिटेट" शब्द की जगह हिन्दी में "त्रस्त" का प्रयोग कैसा लगता है ?

Unknown
14 years ago

sadi ke kuch saal baad bahut kam aaise mauke aate hai jab ek pati patni is tarah date par jate hai .kuch minut ek dusare se alag rah kar ek dusre ki ahmiyat ka pata chalta hai .

राम त्यागी

बहुत सही काम किया – ब्लॉग्गिंग और घर के चलन में सामंजस्य जरूरी है – हमेशा की तरह नीचे वाला पैराग्राफ खुश कर गया 🙂

Satish Saxena
14 years ago

निर्मला जी को दुआएं दो कि आपको घर चलाना सिखा रही हैं अगर भाभी जी नाराज हो गएँ तो सिर्फ ब्लागिंग हाथ रह जायेगी …हार्दिक शुभकामनायें!

Khushdeep Sehgal
14 years ago

ओ ताऊ,
अब पता चल्यो…वो सारे बकरे कल तैणै ही मेट्रो में मेरे पीछे लगवाए से…कम से कम एक दिण तो चैण से रहण दिए होता…

जय हिंद…

ताऊ रामपुरिया

अब लेडीज़ डब्बे में एक पिल्लर को पकड़े पत्नीश्री…और इधर बकरों की तरह भरे गए डब्बे में मैं…पत्नीश्री का कद भी लंबा है तो हम दोनों एक दूसरे को देख सकते थे…पत्नीश्री को यूं देखा तो एस डी बर्मन का गाना याद आ गया…है मेरे साजन उस पार, मैं इस पार..

आपको तो मेट्रो वालों को इस व्यवस्था के लिये धन्यवाद देना चाहिये. क्या इस सिचुएशन में आप पत्नीश्री को कभी देख पाते क्या? कितना रोमांटिक लगा होगा आप दोनों को ही उस समय. भई हम तो कल्पना करके ही आनंदित हुये जा रहे हैं. काश ऐसा शौभाग्य हमें ही मिले:)

रामराम.

दिनेशराय द्विवेदी

अंत भला तो जग भला। पा देयो पर खूब खुल कर हँसी आई। पत्नी होती तो कहती, पूरे पगला गए हो बैठे बैठे हँसने लगे हो।
हम भी दो डब्बों वाला हादसा मुंबई की लाइफलाइन में भुगत चुके हैं वह भई रक्षाबंधन के एक दिन पहले।

राजीव तनेजा

मेरे साजन हैं उस पार…मैं इस पार…ओ मेरे मांझी…ले चल पार…
ऐसा तो अपुन के साथ भी आते-जाते हुआ था जब कनाट प्लेस वाली मीटिंग में समीर लाल जी से मिलने आए थे 🙁

Khushdeep Sehgal
14 years ago

धीरू भाई,
जहां तक मेरी जानकारी है, इस बार ट्रेड फेयर १४ से २७ नवंबर तक ही था…लेकिन आपके प्रताप ने इसे एक दिन बढ़वा दिया हो तो पता नहीं…ट्रेड फेयर की साइट पर भी आखिरी तारीख २७ नवंबर ही है…

जय हिंद…

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह }

मै तो आज ट्रेड फ़ेयर देखने आ रहा हूं और आपसे मुलाकात करने .मुझे तो यह मालूम था २८ तक चलता है यह फ़ेयर .आप के हिसाब से कल ही उसका आखिरि दिन था ………….

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