धन ते नन… FM की सुनिए और गाईए…खुशदीप

आपने FM को सुना…अरे नहीं बाबा रेडियो का FM स्टेशन नहीं अपने देश के फाइनेंस मिनिस्टर प्रणब बाबू को…वो बजट भाषण दे रहे थे और मुझे विशाल भारद्वाज की फिल्म कमीने का ये गाना याद आ रहा था…

धन ते नन…
धन ते नन…
आजा आजा दिल निचोड़े
रात की मटकी फोड़ें,
कोई गुड लक निकालें,
आज गुल्लक तो फोड़ें,


है दिल दिल दारा,
मेरा तेली का तेल,
कौडी कौडी, पैसा पैसा,
पैसे का खेल…

धन ते नन, धन ते नन…


वाकई इस गाने में गुलजार के लिखे बोलों को देखा जाए तो बजट की सारी बाज़ीगरी छुपी है…कहने को प्रणब बाबू ने  किसान-गरीब-गुरबों के लिए बहुत कुछ किया है…और मध्यम वर्ग तो आयकर की छूट सीमा बीस हज़ार बढ़कर एक लाख अस्सी हज़ार होने से ही तृप्त है…लेकिन अब ज़रा प्रणब बाबू की असली धन ते नन का मतलब भी समझ लीजिए…

कॉरपोरेट सेक्टर के लिए टैक्स सरचार्ज को साढ़े सात से पांच फीसदी कर दिया गया है…पिछले साल भी इसमें ढाई फीसदी की कटौती की गई थी…

वहीं कृषि मशीनरी पर बेसिक कस्टम ड्यूटी को पांच से घटाकर साढ़े चार फीसदी किया गया है…और शोर ऐसा है जैसे कि किसानों को छप्पर फाड़ कर न जाने क्या दे दिया गया है…

प्रणब बाबू ने बताया है कि इस बार किसानों को कर्ज़ देने का टारगेट एक लाख करोड़ बढ़ा कर पौने पांच लाख करोड़ कर दिया है…लेकिन पिछले साल भी पौने चार लाख करोड़ कर्ज़ देने का टारगेट था तो देश में बीते साल बाइस हज़ार किसानों ने खुदकुशी क्यों की…इसका जवाब प्रणब बाबू के बजट भाषण में नहीं था…खुदकुशी करने वाले किसानों में से अस्सी फीसदी ऐसे ही थे जो कर्ज लेकर वापस नहीं कर पाए थे…बीस फीसदी ऐसे थे जिनकी फसल पूरी तरह चौपट हो गई थी और उन्हें कर्ज देने वाला कोई नहीं था…दरअसल बैंक किसान की माली हालत देखकर ही कर्ज देता है…ऐसे में जिसे सबसे ज़्यादा पैसे की ज़रूरत होती है वो सूदखोरों के जंजाल में ही फंसता है…

ये बात प्रणब भी मानते हैं कि मानसून पर भी बहुत कुछ देश की अर्थव्यवस्था की तंदरुस्ती निर्भर करती है…पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले इस साल मानसून अच्छा रहा तो जीडीपी की विकास दर नौ फीसदी होने की आस भी बंध गई…इसका असली कारण यही है कि इस साल कृषि की विकास दर पिछले साल के मुकाबले बहुत अच्छी रही है….दिसंबर को खत्म हुई तिमाही के आंकड़ों के अनुसार कृषि ने 8.9 फीसदी की दर से बढ़ोतरी की…पिछले साल इसी पीरियड में ये विकास दर माइनस 1.6 चली गई थी…यानि मानसून सही रहा तो सरकार को भी अपनी पीठ ठोंकने का मौका मिल गया…फिर मानसून ही देश का असली फाइनेंस मिनिस्टर है तो किसानों के कर्ज को भी मानसून से क्यों नहीं जोड़ दिया जाता…मानसून की स्थिति के मुताबिक ही किसानों से कर्ज की वसूली की जाए…

बजट से संकेत मिलता है कि किसानों के उत्पादों के स्टोरेज के लिए सरकार प्राइवेट सेक्टर की मदद लेने जा रही है…अब प्राइवेट सेक्टर किसी चैरिटी के लिए तो ये काम करेगा नहीं…मुनाफे का खेल यहां भी होगा…किसान से सस्ती से सस्ती कीमत पर उत्पाद खरीद कर खुदरा बाज़ार में ऊंची से ऊंची कीमत पर बेचे जाएंगे…यानी फसल के बाज़ार पर सरकार की नज़र है और वो इसका भी कॉरपोरेट के ज़रिए ही समाधान ढूंढना चाहती है…

सरकार असल में किसकी ज़्यादा खैरख्वाह है, इसका जवाब मनमोहनी इकोनॉमिक्स की इस दलील से ही मिलता है कि जब दुनिया भर में आर्थिक मंदी की मार थी तो भी भारत की अर्थव्यवस्था को बचाए रखा गया…तीन तीन स्टीमुलस पैकेज के ज़रिए अरबों डॉलर के बेलआउट इंडस्ट्री को दिए गए…साथ ही उसे बाज़ार को अपने मनमुताबिक चलाने की छूट दी गई…कमर बेशक आम आदमी की टूटी…चलिए जो हुआ सो हुआ…अब तो आप दावा कर रहे हैं कि अर्थव्यवस्था पटरी पर आ गई है…तो फिर इंडस्ट्री को जो स्टीमुलस (रियायतें) दी गईं थीं वो वापस लेने का ऐलान क्यों नहीं किया जा रहा…

इंडस्ट्री की सेहत की इतनी फिक्र है…काश थोड़ी सी फिक्र उन 22 हज़ार विधवाओं के लिए भी दिखा दी जाती जिनके किसान पतियों ने बीते साल खुदकुशी कर ली…भ्रष्टाचार के लिए सिर्फ ग्रुप आफ मिनिस्टर्स और काले धन पर पांच सूत्री कार्यक्रम के महज ऐलान भर से ही सरकार ने रस्म अदायगी कर दी है…

मैं अब उस दिन की सोच रहा हूं, जब रसोई गैस से आपको और हमें सब्सिडी देना सरकार बिल्कुल बंद कर देगी और सिलेंडर 700 रुपये में मिलेगा…फिर तो वाकई सड़कों पर होगी…

धन ते नन…

आप ये सब छोड़िए बस गाना सुनिए…

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Unknown
14 years ago

bajat ki yahi kahani hai

banane wala raja

aur jiske liya hai wah aam aadmi hai—-
jai baba banaras–

भारतीय नागरिक - Indian Citizen

जनता को निचोड़ते रहो…
वे किसान कौन हैं जिन्हें लोन मिलता है, नेता या अफसर.. वे किसान कौन हैं जिन्हें सब्सिडी का आनन्द मिलता है, नेता या अफसर.. वे किसान कौन हैं जिनके बड़े कर्जे माफ हो जाते हैं, नेता या अफसर.. वे किसान कौन हैं जिनके कारण खेती पर टैक्स नहीं है, नेता या अफसर
इसलिये झूम बराबर झूम..

Khushdeep Sehgal
14 years ago

डॉ अमर कुमार जी की ये टिप्पणी मेरे ई-मेल बॉक्स में तो दिख रही है लेकिन कमेंट बॉक्स तक नहीं पहुंची-

सही जा रहे हो, पार्टनर !

डा० अमर कुमार


सही जा रहे हो, पार्टनर !

शरद कोकास

हाय बजट ने इस बार भी छीन ली अपनी जवानी / खून सस्ता और महंगा है पानी ,,,

राज भाटिय़ा

अरे भाजी हुण की होया? इस सरकार को हमीं ने तो चुनी हे ना….. ओर बहुत खुशिया भी मनाई थी, सब खुश दे देश की बहू देश की बहू…. ईमान दार ईमान दार अब देख लो इन की ईमानदारी ओर देश की बहु के कारनामे.
मजा आ गया गाना सुण के

नीरज मुसाफ़िर

जलवा तेरा जलवा, एफएम साहब

Udan Tashtari
14 years ago

कुछ नौकरीपेशाओं से बात हुई फोन पर..प्रसन्न ही दिखे.

प्रवीण पाण्डेय

आम आदमी के चेहरे पर प्रसन्नता ही बजट की सफलता है।

निर्मला कपिला

आह बजट। गीत अच्छा लगा। शुभकामनायें।

डॉ टी एस दराल

बढ़िया है —-गाना !

anshumala
14 years ago

अब बजट बजट कम तकनीकि खेल ज्यादा हो गया है उसे इस तरह बनाया जाता है की आम आदमी पर बढ़ने वाला बोझ सुनाई न दे और सिर्फ दिखावे भर के लिए घोसनाये बड़ी बड़ी हो | जब सब कुछ बाजार के भरोसे ही है तो बजट का मतलब क्या है सिर्फ दिखावा भर रह गया है | बात चाहे किसान की हो या आम आदमी की हो सरकार जब समस्या को मानेगी तब तो उसे हल करेगी | कृषि मंत्री ये कहते है की उन्हें नहीं पता की किसान क्यों आत्महत्या कर रहे है सरकार तो उनके लिए सब कर रही है और मन्नू जी ये कहे की महंगाई है ही नहीं बस मिडिया का प्रोपेगेंडा है तो ऐसे लोगो से क्या उम्मीद करे |

Satish Saxena
14 years ago

वाकई बदकिस्मती है यार खुशदीप …..!!

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