देश को पीएम की ज़रूरत ही कहां है…खुशदीप


पीएम की दुविधा, सोनिया की सुविधा…

मंत्रीमंडल में किसे शामिल करना है, किसे बाहर करना है, ये प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार होता है…हमारे देश का संविधान यही कहता है…कम से कम बचपन से पढ़ते तो हम यही आए हैं…लेकिन क्या पवन कुमार बंसल और अश्वनी कुमार के इस्तीफों को लेकर भी यही बात कही जा सकती है…कम से कम अश्वनी कुमार का इस्तीफा तो प्रधानमंत्री नहीं लेना चाहते थे…सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल ने शुक्रवार को पीएम आवास पर जाकर जब तक सुनिश्चित नहीं कर लिया कि अश्वनी कुमार इस्तीफ़ा दे रहे हैं, तब तक वहीं डेरा डाले रखा…

ख़बरें ऐसी भी छनकर आ रही हैं कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अश्वनी कुमार के मसले पर सोनिया गांधी से अपनी नाराज़गी भी जता दी है…यहां तक कि प्रधानमंत्री ने अपना ही इस्तीफ़ा देने की पेशकश भी कर डाली थी…मनमोहन की नाराज़गी इस बात को लेकर है कि मीडिया के ज़रिए कांग्रेस के कुछ सिपहसालारों ने ये संदेश देने की कोशिश की कि सोनिया की नाराज़गी के बावजूद प्रधानमंत्री ने दोनों मंत्रियों का इस्तीफ़ा लेने में देर लगाई…लेकिन जब संसद चल रही थी और विपक्ष ने बंसल-अश्वनी के इस्तीफे को लेकर बवाल काट रखा था, तब सोनिया गांधी ने ही संदेश दिया था कि विपक्ष के दबाव के आगे नहीं झुका जाएगा…यानि दोनों मंत्रियों को इस्तीफ़ा देने की ज़रूरत नहीं है…

इसी लाइन को बढ़ाते हुए सूचना और प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने गुरुवार को बयान भी दिया था कि कोयला घोटाला मामले में सुप्रीम कोर्ट में 10 जुलाई को सरकार को जवाब देना है, इसलिए उससे पहले अश्वनी कुमार पर कोई बात करने का मतलब हीं नहीं है…पवन बंसल पर भी मनीष तिवारी ने कहा था कि सीबीआई जांच जारी है और जब तक जांच का कोई नतीजा नहीं आता तब तक किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता…फिर अचानक शुक्रवार को क्या हुआ कि सोनिया गांधी खुद ही दोनों मंत्रियों का इस्तीफ़ा कराने के लिए पीएम आवास जा पहुंचीं…अगर इस्तीफे लेने ही थे तो पहले ही ले लिए जाते…संसद तो दो दिन चल जाती…साथ ही ज़मीन अधिग्रहण और खाद्य सुरक्षा जैसे अहम बिल भी नहीं लटकते…

अब ये तो तय है कि मनमोहन सिंह अगले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से पीएम पद के उम्मीदवार नहीं होंगे…राहुल गांधी तैयार हुए तो ठीक नहीं तो चिदम्बरम या एंटनी में से किसी को आगे किया जा सकता है…दलित सुशील कुमार शिंदे पर भी दांव लग सकता था लेकिन गृह मंत्री के तौर पर उनके प्रदर्शन को देखते हुए शायद ही उनका नंबर लगे…फिलहाल कांग्रेस के लिए मजबूरी है कम से कम अगले लोकसभा चुनाव तक मनमोहन ही प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाले रखें…अब ये मनमोहन पर निर्भर करता है कि वो ईमानदारी के मोर्चे पर अपने दामन को बेदाग़ रखने के लिए क्या करते हैं…कड़वा घूंट पीकर 10 जनपथ से वफ़ादारी निभाते रहते हैं या कोई ठोस फैसला लेकर अपने माथे से ‘कमज़ोर प्रधानमंत्री’ का टैग हटाने की कोशिश करते हैं…अब ये मनमोहन सिंह पर है कि वो इतिहास में खुद को किस रूप में दर्ज़ कराना चाहते हैं….

वैसे पीएम की दुविधा, सोनिया की सुविधा और कांग्रेस का अंर्तद्वंद्व सब का जवाब क्या इस सटीक कॉर्टून में नहीं छुपा है….

(साभार  मेल टुडे )

स्लॉग ओवर

नेहरू ने साबित किया कि एक अमीर आदमी देश का प्रधानमंत्री बन सकता है….

शास्त्री ने साबित किया कि एक गरीब आदमी देश का प्रधानमंत्री बन सकता है…

इंदिरा गांधी ने साबित किया कि एक महिला देश की प्रधानमंत्री बन सकती है…

मोरारजी देसाई ने साबित किया कि स्वमूत्रपान  करने वाला शख्स देश का प्रधानमंत्री बन सकता है…

राजीव गांधी ने साबित किया कि प्रधानमंत्री बनना वंशागत खामी है…

वी पी सिंह ने साबित किया कि एक राजा देश का प्रधानमंत्री बन सकता है…

नरसिम्हा राव ने साबित किया कि एक चूका हुआ नेता भी देश का प्रधानमंत्री बन सकता है…

देवेगौड़ा ने साबित किया कि कोई भी देश का प्रधानमंत्री बन सकता है…

वाजपेयी ने साबित किया कि प्रधानमंत्री  के पास करने के लिए कुछ नहीं होता…

और…

मनमोहन सिंह ने साबित किया कि इस देश को प्रधानमंत्री की ज़रूरत ही नहीं है…

अत: इस देश का अगला प्रधानमंत्री कौन होगा…इस पर इतनी हाय-तौबा क्यों….

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अजित गुप्ता का कोना

ये राजनीति की बाते या तो राजनेता जाने या फिर पत्रकार। आम जनता भला कहां जानेगी। आपने तो वाजपेयीजी के कार्यकाल को कुछ नहीं करने वाला ही सिद्ध कर दिया, अब बेचारी जनता तो इस वाक्‍य को पढ़कर सन्‍न ही है।

anshumala
11 years ago

हद है अब तो मंत्री को हटाने का प्रताप भी सोनिया जी के ही खाते में जाने का पूरा इंतजाम किया जा रहा है , सही भी है जब बनाया उन्ही ने तो हटाने का काम भी उन्हें ही करना है , पर इस प्रताप लो के चक्कर में न संसद चली न बिल पास हुआ उस समय करती तो प्रताप विपक्ष ले जाता ,

sonal
11 years ago

🙂

Khushdeep Sehgal
11 years ago

It should not be hard for politicians to remember their duty towards nation and its people but what are we seeing is that they serve only to their kith and kin.

And that is really a pity.

Jai Hind

Shikha Kaushik
11 years ago

it's easy to criticize politicians but hard to be a politician .

Khushdeep Sehgal
11 years ago

राजन जी,

मीठा-मीठा गप-गप, कंड़वा-कड़वा थू-थू…

जय हिंद…

Khushdeep Sehgal
11 years ago

प्रवीण भाई,

वैसे दोष की राजनीति भी सही बैठ रहा है…

जय हिंद…

प्रवीण पाण्डेय

*देश

प्रवीण पाण्डेय

पता नहीं दोश की राजनीति को क्या देखना है?

राजन
11 years ago

हाँ और सोनिया जी ने साबित किया कि बिना प्रधानमंत्री बने भी प्रधानमंत्री बना जा सकता है।

Khushdeep Sehgal
11 years ago

राजेश जी,

उस वक्त ये नारा बड़ा लगता था…

राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है..

और क्या तकदीर बनाई थी देश की उस फकीर ने…

जय हिद…

Khushdeep Sehgal
11 years ago

ताऊ जी,

लेकिन ताऊ देवीलाल ने तो खुद की जगह वीपी सिंह को पीएम बना दिया था…

जय हिंद…

Khushdeep Sehgal
11 years ago

प्राण जी,

लेकिन यहां तो हर महंत खुद को ही सबसे अच्छा बताता है…

जय हिंद…

राजेश सिंह

वी पी सिंह ने साबित किया कि एक राजा देश का प्रधानमंत्री बन सकता है…

शायद यह कहना ज्यादा उपयुक्त होगा कि वी पी.सिंह ने साबित कर दिखाया कि लफ्फाजी और ढोंग को चालकी से साधकर भी कोई इस देश का प्रधानमंत्री बन सकता है

ताऊ रामपुरिया

आपकी सब बाते सही हैं पर स्लाग ओवर में लिखा है "अत: इस देश का अगला प्रधानमंत्री कौन होगा…इस पर इतनी हाय-तौबा क्यों…."

हाय तौबा इसलिये कि हर ताऊ को PM बनना है.

रामराम.

Unknown
11 years ago

हमारा दुर्भाग्य है कि वो मिल के नहीं मिलते ,जो हम चाहते हैं वो अब राजनीति में नहीं दिखते ..!
एक महंत वानप्रस्थ जाने लगे ,बुढ़िया जोर-जोर से रो रही थी,महंत जी से देखा न गया,उसने कहा – मेरे जाने के बाद हो सकता है, आने वाला मुझसे अच्छा हो.
बुढ़िया ने दुखड़ा बताया – हर जाने वाला महंत मुझसे यही कहता रहा है. पर होता उलटा है..!

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