आदमी सोचता क्या है…लेकिन होता वही है जो मंज़ूर-ए-खुदा होता है…मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ…कल दिल्ली में ब्लॉगर-ए-बहारा महफिल पर मैंने कल शाम साढ़े छह बजे तक ही रिपोर्ट लिख ली थी…लेकिन कल शाम से ही नोएडा में हमारे सेक्टर में ब्रॉडबैंड महाराज ऐसे रूठे कि मेरा बैंड बजा दिया…कल से आज रात तक मैं पोस्ट को देख-देख कर कुढ़ता रहा लेकिन ब्रॉडबैंड वालों को मेरे पर तरस नहीं आया…आज किसी तरह बीएसएनएल वालों को हाथ-पैर जोड़कर मनाया और अब ये रिपोर्ट आपको पेश-ए-नज़र कर रहा हूं…हर बार त्वरित रिपोर्ट देता हूं, इस बार लेटलतीफ रिपोर्ट ही सही…और सब रिपोर्ट पढ़ी, इसे भी पढ़ लीजिए…
ब्लॉगरों के दिलों की महफिल से आकर घर बैठा हूं…पहला काम जो देखा, जो सुना, जो हुआ…आप तक पहुंचाने की कोशिश कर रहा हूं…कहीं कागज कलम लेकर कुछ नोट नहीं कर रहा था…इसलिए जहां तक यादाश्त काम करेगी, वहां तक आपको बताने की कोशिश करूंगा…फोटो की कमी ज़रूर आपको खलेगी…लेकिन अजय कुमार झा भाई, अविनाश वाचस्पति जी, ड़ॉ टी एस दराल और अन्य उपस्थित ब्लॉगर बंधु जल्द से जल्द आप तक फोटो पहुंचाने की कोशिश करेंगे…
पूर्वी दिल्ली के निर्माण विहार मेट्रो रेलवे स्टेशन के बिल्कुल साथ मौजूद जीजी बैंक्वट हॉल में हुआ आज ये दिलों का मेल…पिछली 15 नवंबर को भी यहा झा जी के अभिनव प्रयास से इसी जगह दिनेश राय द्विवेदी जी, बीएस पाबला जी, इरफ़ान भाई (कार्टूनिस्ट) से मिलने का मौका मिला था…इस बार द्विवेदी जी ने तो पहले ही आने में असमर्थता जता दी थी, जहां तक इरफ़ान भाई का सवाल है उन्हें काका हाथरसी सम्मान मिला है, इसलिए शायद वो व्यस्तता के चलते नहीं आ पाए…खैर पिछली महफिल वालों में से मैं, अजय भाई, राजीव तनेजा, संजू तनेजा, विनीत उत्पल आज भी पहुंचे…
आज की महफिल के दूल्हा (मेहमान-ए-खुसुसी) जर्मनी से आए राज भाटिया जी रहे…महफिल में आए सभी ब्लॉगर राज जी के शुक्रगुज़ार हैं कि उनकी वजह से सबको आपस में भी मिलने का मौका मिल गया…लेकिन मेरे लिए सबसे बड़ा सरप्राइज़ रहा…लंदन से आई कविता वाचक्नवी जी की मौजूदगी….अदब में जितना बड़ा नाम, उतनी ही रूआबदार शख्सीयत…इनके अलावा….
डॉ टी एस दराल जी
अविनाश वाचस्पति जी
एम वर्मा जी
सरवत जमाल जी
पं डी के शर्मा वत्स जी
सतीश सक्सेना जी
मसिजीवी जी
विनीत कुमार
मोइन शम्सी
मिथिलेश दूबे
प्रवीण पथिक
नीशू तिवारी
विनोद कुमार पांडेय
पदम सिंह
अमित गुप्ता (अंतर सोहेल)
नीरज जाट
तारकेश्वर गिरी
प्रतिभा कुशवाहा
कनिष्क कश्यप
मयंक सक्सेना
यशवंत मेहता
जहां तक मैं समझता हूं, सभी के नाम आ गए हैं…फिर भी कोई नाम छूट गया हो या मेरी कमअक्ली की वजह से गलत लिखा गया हो तो माफ कर दीजिएगा…और लगे हाथ कमेंट भेज कर भूल-सुधार भी करा दीजिएगा…हां तो अब शुरुआत से बताता हूं कि आज दिन भर हुआ क्या…
अजय भाई ने ग्यारह बजे से चार बजे तक का टाइम दिया था…सोचा अब तो नोएडा से सीधी मेट्रो जाती है…इसलिए कोई दिक्कत नहीं आएगी…घर के पास नोएडा का सेक्टर 18 स्टेशन सबसे नज़दीक पड़ता है…वहां तक पैदल ही गया और लक्ष्मी नगर स्टेशन का टोकन ले लिया…क्योंकि पता लक्ष्मी नगर डिस्ट्रिक्ट सेंटर का था…इसलिेए सोचा लक्ष्मी नगर स्टेशन ही उतरा जाए…यही मारे गए गुलफ़ाम…वो तो भला हो रास्ते में ही दिमाग की बत्ती जल गई…झा जी को फोन मिला कर पूछ ही लिया कि कौन सा स्टेशन सबसे पास है…झा जी ने बताया निर्माण विहार…बीच के ही एक स्टेशन से दस रूपये का फालतू चूना लगवा कर निर्माण विहार तक का टोकन लिया…निर्माण विहार स्टेशन पहुंच कर जान में जान आई…क्योंकि जी जी बैंक्वट हाल वहां से दो सौ कदम की दूरी पर ही था…पिछली बार का देखा हुआ था, इसलिए झट से पहुंच गया…
वहां पहुंचते-पहुंचते मुझे पौने बारह बज गए थे…लेकिन इस बार ज्यादातर ब्लॉगर टाइम से आ गए थे…राज भाटिया जी को पहली बार देखा, जैसा समझा था बिल्कुल वैसा ही पाया…सच्चे, खरे और मुंह पर ही सब कुछ साफ कह देने वाले…बिना कोई लाग लपेट…उनके साथ ही बैठे थे…अविनाश भाई और कविता जी….कविता जी से मिलना सुखद भी था और अप्रत्याशित भी…कविता जी का मेरे लिए कमेंट था…मैं ब्लॉग वाली फोटो में ज़्यादा यंग लगता हूं…मेरी वो फोटो एक साल पुरानी ही है…लेकिन शायद ब्लॉगिंग के लिए नींद के बलिदान का असर मेरे चेहरे पर दिखने लगा है…कुछ सोचना ही पड़ेगा…खैर छोड़िए मुझे…
वहीं राजीव तनेजा जी उसी गर्मजोशी से मिले जैसे कि हमेशा मिला करते हैं… हां, राजीव जी की बैटर हॉफ यानि संजू तनेजा जी को लेकर मैंने पिछली बार जैसी भूल नहीं की…पहले उन्हें ही अभिवादन किया…अजय भाई पिछली बार की तरह ही इस बार भी कभी फोन, कभी व्यवस्था के लिए निर्देश देने में व्यस्त और मेज का सबसे आखिरी कोना पकड़े बैठे थे…मैंने चुटकी ली…टंकी की तरह क्यों सबसे दूर बैठे हैं…अजय भाई चिरपरिचित ठहाके के साथ गले लगकर मुझसे मिले…चार-पांच चेहरों को छोड़ बाकी सभी से रू-ब-रू होने का मेरे लिए पहला मौका था..लेकिन यहां पिछली बार की तरह पाबला जी और द्विवेदी सर की कमी भी शिद्दत के साथ महसूस हुई…
एक बात और, महफूज अली जनाब पिछले एक महीने से मुझसे कहते आ रहे थे कि सात तारीख को आप सब से मिलूंगा…लेकिन मौका आया तो हुआ क्या…शताब्दी का रिजर्वेशन कराने के बावजूद आज सुबह टाइम पर उठ नहीं सके और ट्रेन मिस करनी पड़ी…अब जनाब को भी मलाल तो बहुत हुआ लेकिन क्या कर सकते थे…मुझे और अजय भाई को महफूज़ ने सुबह सुबह ही अपने इस कारनामे के बारे में बता दिया था…मैंने कहा भी कि महफूज़ को अब टाइम से उठाने वाली होम मिनिस्टर ले ही आनी चाहिए…किसी ने चुटकी ली…वो आ गई तो फिर महफूज़ मियां रात भर सो ही कहां पाएंगे…पाबला जी और ललित शर्मा भाई के आने की भी मुझे उम्मीद थी…लेकिन वो भी नहीं आ सके…एक और जनाब भी वादा पूरा न कर सके…वो थे बरेली वाले धीरू सिंह जी…पिताश्री की तबीयत नासाज होने की वजह से उन्हें अपना कार्यक्रम रद्द करना पड़ा…मैं मेट्रो पर ही था कि धीरू भाई ने फोन पर न पहुंच सकने की सूचना दे दी थी…
खैर अब मेज पर सब बैठ चुके थे…लेकिन यहां सिटिंग की व्यवस्था कुछ ऐसी थी कि असहजता महसूस हो रही थी…अविनाश भाई ने तत्काल खुले में राउंड सिटिंग अरेंजमेंट करा दिया…इसी बीच डॉ टी एस दराल भी अपने गरिमामयी व्यक्तित्व के साथ आ पहुंचे…दराल सर के हाथों में राज जी के लिए बड़ा प्यारा सा बुके था…फिर धीरे-धीरे जमावड़ा बढ़ता गया…विनोद कुमार पांडेय, विनीत कुमार, एम वर्मा जी, सतीश सक्सेना जी, मिथिलेश दूबे, नीशू तिवारी, मयंक सक्सेना, सब एक एक कर आते गए…लेकिन सबसे पहले विदा लेने वालों में कविता वाचक्नवी जी थीं….उनका दिल्ली में ही अन्यत्र कोई पूर्व निर्धारित कार्यक्रम था…लेकिन जाने से पहले कविता जी भारतीय संस्कारों के बारे में बहुत अच्छी अच्छी बातें बता गईं…उनकी मुझे एक बात और बहुत अच्छी लगी…वो थी हिंदी के प्रसार के लिए सभी ब्लॉगर हिंदी के श्रेष्ठ साहित्यकारों की रचनाओं को ब्लॉग पर लाने की कोशिश करें….कविता जी ने विदाई ली…लेकिन इससे पहले एक और अच्छी बात हुई कि राज भाटिया जी और कविता जी के बीच पहले कभी संवाद (विवाद नहीं) हुआ होगा, उस संदर्भ में दोनों ने बड़े अच्छे और प्रभावशाली ढंग से अपने-अपने रुख को साफ़ किया…
मसिजीवी जी को भी जल्दी जाना था, इसलिए उन्होंने भी विदा मांगी और कविता जी को उनके गंतव्य पर छोड़ने की पेशकश भी कर डाली…
इसके बाद राउंड टेबल पर सभी ने एक-एक कर परिचय देना शुरू किया…डॉ टी एस दराल हैं तो ठेठ देहलवी लेकिन पृष्ठभूमि हरियाणा की है…उन्होंने हरियाणा के एक ताऊ का मजेदार किस्सा भी सुनाया…दराल सर के मुताबिक जब वो एमबीबीएस कर रहे थे तो ताऊ ने उनसे पूछा कौन सी जमात में हो…डॉक्टर साहब ने कहा-एमबीबीएस…इस पर ताऊ ने कहा यो के होवे से…बारहवी से बड़ी होवे या छोटी…डॉक्टर साहब ने किसी तरह बारहवी और एमबीबीएस के पांच साल जोड़कर जमातों का हिसाब बताया…लेकिन ताऊ तब भी मुत्तमईन नहीं हो सका…ये ही कहता रहा कोई डीएसपी, कलक्टर वाला कोर्स करते तो ज़्यादा बढ़िया रहता…यहां मैंने भी जोड़ा कि डॉक्टर साहब पहले हरियाणवी दिखे जो बात का सीधा और सरल जवाब देते हैं…नहीं तो किसी से पूछो कि टाइम के होया से…हरियाणवी टाइम नहीं बताएगा उल्टे जो जवाब देगा वो ये होगा…फांसी चढ़ना के…
परिचय के दौरान सरवत जमाल जी और सतीश सक्सेना जी ने बड़े प्रभावी ढंग से ब्लॉग जगत में सौहार्दपूर्ण माहौल की आवश्यकता पर ज़ोर दिया…साथ ही गुटबाज़ी से बचते हुए अपने लेखन पर ही सारी शक्ति लगाने की बात कही…जमाल साहब का ग़ज़लों का ब्लॉग है…उनके ख्याल जानकर उन्हें नियमित पढ़ने की इच्छा जागृत हो गई…
इस बीच विनीत कुमार भाई ने भी बेबाक अंदाज़ में अपनी बात रखी…उनकी इस शैली का ही मैं बड़ा प्रशंसक हूं…मीडिया पर उनके शोध और गहरी पकड़ की वजह से मैं अपने को उनका शागिर्द मानता हूं…विनीत भाई की एक बात मुझे बहुत पसंद आई…उन्होंने कहा कि ब्लॉग बड़ा ही सशक्त माध्यम है…ज़रूरत है इसकी ताकत पहचानने की….विनीत भाई के अनुसार हमारा परिवेश तेज़ी से बदलता जा रहा है…जिस दौर में हमारा बचपन बीता…वो भी बड़ी जल्दी बीते दौर की बात हो जाएगा और शहरों के तेज़ी से विकसित होने की वजह से कई चीजों को हम नॉस्टेलजिया की तरह ही याद करेंगे…मसलन सिंगल स्क्रीन थिएटर की जगह अब महानगरों में मल्टीप्लेक्स ही दिखाई देने लगे हैं…स्कूलों की जगह फाइव स्टार स्कूल दिखाई देने लगेंगे…कस्बे, खेत-खलिहानों की सौंधी खुशबू सिर्फ किस्सों तक ही सीमित रह जाएगी, ऐसे में नॉस्टेलजिया को आधार मान कर लिखी जाने वाली पोस्ट को पाठकों का बड़ा दायरा मिलेगा…विनीत के अनुसार ब्लॉगिंग में विरोध के स्वरों की भी अपनी अहमियत है…इसे सकारात्मक ढंग से लिया जाना चाहिए…ये अपने विकास के लिए भी आवश्यक है…
इस मौके पर डॉ दराल ने एक बड़ी अच्छी सलाह दी कि ब्लॉगिंग में हम उतना ही टाइम का निवेश करें जितना कि हम आसानी से अफोर्ड कर सके…इसकी वजह से अपनी दूसरी ज़िम्मेदारियों को प्रभावित नहीं होने देना चाहिए...एक मसला बेनामी टिप्पणियों का भी उठा….इनसे निपटने के लिए अजय जी जल्द ही आसान भाषा में कुछ पोस्ट लिखेंगे…फेक आईपी का पता लगाना खर्चीला काम है…लेकिन इससे निपटने के लिए भी आज की बैठक में सहमति बनी…मेरा इस संदर्भ में सुझाव था कि अगर कोई बेनामी किसी पोस्ट पर जाकर खुराफात करता है तो हम सब का फर्ज बनता है कि उस पोस्ट पर जाकर बेनामी महाराज की खबर लेते हुए जमकर लताड़ लगाएं…मॉडरेशन से संबंधित तकनीकी जानकारी भी अजय जी और राजीव तनेजा भाई जल्दी ही अपनी पोस्ट में देंगे…
ये सब चल रहा था कि पहले पनीर टिक्का, फ्रेंच फ्राई और कॉफी का दौर चला…बातों में सब इतने मशगूल थे कि अविनाश भाई और अजय भाई को सबसे ज़ोर देकर लंच के लिए आग्रह करना पड़ा…खाना भी महफिल की तरह शानदार था….पापड़, सलाद, रायता, शाही पनीर, दम आलू, पालक कोफ्ता, गोभी-आलू, पुलाव, नान और मुंह मीठा करने के लिए गर्मागर्म गुलाब जामुन…सब प्लेट्स लेकर फिर राउंड टेबल पर आकर जम गए…साथ-साथ बातें चलती रहीं…
अजय भाई ने बताया कि समीर लाल जी समीर अप्रैल या मई में भारत आने वाले हैं…उनके आने पर कोई बड़ा आयोजन ज़रूर होगा…राज भाटिया जी ने भी कहा कि वो भी मई में भारत दोबारा आने की कोशिश करेंगे…इस मौके पर सभी ने समीर जी के व्यक्तित्व की जमकर तारीफ की…सबने ये इच्छा भी जताई कि जो भी प्रोग्राम रखा जाए उसमें समीर जी को ज़्यादा से ज़्यादा सुना जाए…उनके अनुभवों का लाभ उठाया जाए…नए ब्लागर्स ने एकसुर में कहा कि समीर जी जिस तरह हर नए ब्लॉगर को प्रोत्साहित करते हैं उसने उन्हें और अच्छा लिखने की प्रेरणा मिली …मैने भी कहा कि न तो मेरी समीर जी से आज तक ई-मेल पर कोई बात हुई है और न ही फोन पर…लेकिन मैंने जितना उनकी पोस्ट और टिप्पणियों को पढ़ते-पढ़ते सीखा है और सीख रहा हूं वो पूरी ज़िंदगी का फ़लसफ़ा है…
बातचीत के दौरान टिप्पणियों पर ये भी बात उठी कि उनका कोई अर्थ होना चाहिए…जैसे पोस्ट के ऊपर टिप्पणी देते वक्त आपके पास कोई उससे जुड़ी जानकारी है तो ज़रूर दें…पोस्ट का मर्म ज़रूर समझ लें…नहीं तो कभी कभी नाइस लिख देने से अर्थ का अनर्थ भी हो जाता है…
इस बीच अब सब की निगाहें अपने प्यारे मिथिलेश दूबे पर आ जमी थी…वो क्या कहते हैं…लेकिन मिथिलेश कम ही बोल रहे थे…हां प्रवीण पथिक ने ज़रूर मिथिलेश के बारे में बताया…पहली शिकायत ये थी कि मिथिलेश के सिर्फ मोहतरमा शब्द के इस्तेमाल करने पर ही उन्हें टिप्पणियों के ज़रिए इतना कुछ सुनाया गया…जबकि वरिष्ठ कहे जाने वाले ब्लॉगर्स गालियों का इस्तेमाल करने पर भी साफ बच निकलते हैं…उन पर कोई ऐतराज नहीं करता…इस मौके पर अजय भाई, मैंने, और भी ब्लॉगर भाइयों ने मिथिलेश से कहा कि सारे तुम से बड़ा प्यार करते हैं…ब्लॉगिंग में सबसे छोटा होने की वजह से सभी खास तौर पर चाहते हैं…इसलिए सभी ने हक मानते हुए मिथिलेश को सलाह देनी चाही…मिथिलेश से मैंने ये भी कहा कि तुम्हारी संस्कृति और कई विषयों पर इतनी अच्छी पकड़ है, उस पर जमकर लिखो…चाहे हफ्ते में सिर्फ दो पोस्ट दो…लेकिन वो हो इतनी शानदार कि सभी को पढ़ने में मज़ा आ जाए…अजय कुमार झा जी ने बड़े भाई के अंदाज में मिथिलेश को आदेश दिया…जाते ही सबसे पहले पोस्ट लिखने का काम करना…लेकिन मिथिलेश फिर भी थोड़ी दुविधा में दिखे…अब देखना है कि मिथिलेश कब अजय भाई और सबकी बात का मान रखते हुए पोस्ट डालते हैं…
हां, इस बीच महफूज़, दीपक मशाल, अनिल पुसदकर भाई के फोन भी आते रहे…कई ब्लॉगर से उनकी बात हुई…फोटो भी धड़ाधड़ खींचे जा रहे थे…वो सभी आपको जल्दी देखने को मिलेंगे…बातों में कब चार बज गए किसी को पता ही नहीं चला…हां, एक बात और मयंक सक्सेना की…वो कभी मेरे साथ काम कर चुके हैं…आते ही उन्होंने मुझे याद दिलाया…मयंक ने भी कई मुद्दों पर असरदार ढंग से बात रखी..पदम जी ने कम टिप्पणियों से नए लेखकों का हौसला टूटने का मुद्दा उठाया…इस पर दराल सर ने समझाया कि शुरू में सबको दिक्कत आती है…लेकिन अच्छा लिखा जाए तो धीरे-धीरे टिप्पणियां भी बढ़ने लगती हैं…
हां, बैठक में मेरे फेवरिट नीरज जाट जी महाराज भी पधारे थे…एक तो मेरे मेरठ के और ऊपर से वृतांत लिखने की उनकी शैली…घुमक्कड़ी लेखन में नीरज जाट जैसा लेखन मैंने कहीं और नहीं देखा है, ये मैं दावे से कह रहा हूं…एक बात और मिथिलेश दूबे हो या नीरज जाट, यशवंत मेहता हो या मयंक सक्सेना, नीशू तिवारी हो प्रवीण पथिक..विनोद पांडेय हो या विनीत उत्पल…सभी का युवा जोश देखकर लगा कि हिंदी ब्लॉगिंग को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता…साथ ही हमारे भारत को…
चलिए अब विदा लेता हूं…जितना याद रहा सब आप तक पहुंचाने की कोशिश की…कुछ छूट गया हो तो आज की महफिल में मौजूद रहे सभी साथियों से फिर माफी चाहता हूं…
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